अजवाइन के पौधे के विकास के लिए सर्दी के मौसम की जरूरत होती है. यह एक रबी की फसल है और इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की आवश्यकता नहीं होती है. अजवाइन का उपयोग मसाले के साथ-साथ औषधी बनाने में भी किया जाता है. यह एक झाड़ीनुमा दिखने वाला पौधा है, जिसकी लम्बाई एक मीटर तक होती है. अजवाइन के दानों में कई तरह के खनिज तत्व पाए जाते हैं जो हमारे शरीर के लिए काफी लाभकारी होते हैं. अजवाइन पेट की समस्याएं जैसे की पेचिस, बदहजमी, हैजा, कफ, ऐंठन आदि रोगों के लिए काफी लाभदायक होता है. इसको गले में खराबी, आवाज फटने, कान दर्द, चर्म रोग, दमा आदि रोगों की औषधि बनाने के लिए भी काम में उपयोग किया जाता है.
अजवाइन की खेती का तरीका-
जलवायु
अजवाइन की खेती के लिए सर्दी का समय उत्तम माना जाता है. अधिक सर्दी और पाला गिरने से फसल को नुकसान हो सकता है. हल्का शुष्क मौसम फसल के लिए काफी किफायती होता है. अजवाइन की बुआई बारिश के समय शुरू हो जाती है. सर्दी का मौसम आते-आते इसके पौधों में फूल आना शुरू हो जाते हैं. भारत के मुख्य राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, पंजाब, और पश्चिम बंगाल में इसकी खेती की जाती है.
खेत की तैयारी-
अजवाइन की खेती के लिए नरम और भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है. जुताई से पहले कंपोस्ट खाद को मिट्टी में बिखेर दें और इसे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से जुताई कर मिला दें. जुताई से खेत में मौजूद खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं. ध्यान रखें कि खेत में पानी ना भरे और वहां पर जल निकासी की उचित व्यवस्था हो, जिससे फसल के खराब होने की आशंका ना बनी रहे.
खाद
खेत में वर्मी कंपोस्ट डालने के बाद नाइट्रोजन फिक्सेशन बैक्टीरिया, फास्फोरस बैक्टीरिया, पोटाश मोबेलाइज बैक्टीरिया का छिड़काव कर दें, जो मिट्टी में अपनी संख्या बढ़ा कर इन सारे पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है.
कटाई
अजवाइन की फसल को तैयार होने में 140 से 150 दिन लग जाते हैं. जब फसल का रंग हल्का भूरा होने लगे तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए. कटाई के बाद फसल को 2 से 4 दिन छांव में सुखाकर फिर डंडे से पीटकर या मशीन की सहायता से अजवाइन के दानों को अलग किया जाता है.
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पैदावार
अजवाइन की पैदावार सामान्य रुप से 6 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. इसकी बाजार में कीमत 15000 से 25000 प्रति क्विंटल होती है. जो आर किसान भाईयों के लिए एक अच्छी आमदनी का स्त्रोत हो सकता है.
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