अब आलू की फसल के सहारे किसान अपनी आमदनी को ठीक कर सकते है. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने एक सफल प्रयोग करके आलू की तीन तरह की अलग-अलग किस्मों को तैयार करने का काम किया है. अनुसंधान का मानना है कि इन तीन किस्मों के विकसित होने से किसानों को सीधा लाभ पहुंचेगा.
वैसे तो आलू देशभर के अलग-अलग राज्यों में पैदा होता है और यह अलग-अलग जलवायु के हिसाब से विकसित होता है. इसीलिए केंद्रीय आलू अनुसंधान अलग-अलग किस्मों को विकसित करने का कार्य कर रहा है. संस्थान ने अभी तक कुल आलू की 51 प्रजातियों को अलग-अलग रूप से विकसित कर लिया है.
विकसित हो रही है अलग-अलग किस्में (Growing different varieties)
चूंकि देश में जलवायु भी काफी परिवर्तित होती रहती है और उसके जलवायु के हिसाब से आलू होता है. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, पंजाब और हिमाचल प्रदेश देश में आलू की खेती के प्रमुख राज्य माने जाते है. अगर राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश देश में सबसे ज्यादा आलू पैदा करने वाला राज्य है. इसके अलावा मध्य प्रदेश देश का एक ऐसा राज्य है जहां पर आलू का उत्पादन किया जाता है.
जो तीन प्रजातियां केंद्रीय आलू अनुसंधान ने विकसित की है उनमें कुफरी गंगा, कुफरी नीलकंठ और कुफरी लीमा ये शामिल है. संस्थान के मुताबिक ये तीनों ही आलू की किस्में मैदानी इलाकों के लिए मशहूर है. किसानों को सबसे बड़ा फायदा इसके आकार का होगा ताकि इसके सहारे वह बाजर में इसे बेचे तो ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सके.
यह है आलू की खास बात (This is the special thing of potato)
ये तीनों आलू की किस्में, जो विकसित की गई हैं वह आकार में तो बड़ी हैं ही परंतु साथ ही ये आलू पकने में काफी आसान होते हैं और इनका स्वाद भी काफी अच्छा माना जाता है. इन आलू की पैदावार कम समय में ही हो जाती है जिससे समय की भी बचत हो जाती है और अधिक मुनाफे के लिए समय भी मिल जाता है.
किसानों को कुफरी आलू के बीज भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. किसानों को आसानी से इस पर सब्सिड़ी भी मिलेगी जिसके बाद किसान आलू की पैदावार करके बड़ी आसानी से बंपर पैदावार कर सकते है.
जांच के आधार पर खाद का प्रयोग (Use of manure on test basis)
आलू की फसल में प्रति हेक्टेयर 120 किलो नत्रजन, 80 किलो फास्फेरस और 80 किलो की मात्रा में पोटाश की मात्रा को डालना चाहिए. इसके साथ ही उर्वरक की मात्रा भी जांच के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए. इसके अलावा अगर आलू की फसल आपने बोई है तो उसके आसापास जो भी खरपतवार आ जाती है तब इसे रोकने के लिए बुआई के सात दिनों के अंदर 0.5 किलोग्राम सिमैजिन, लिन्यूरोन का 700 लीटर की मात्रा में घोल डालना चाहिए.
इसके अलावा अगर आप आलू की फसल को बोते हैं तो पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 50 सेमी और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 20-25 सेमी होनी चाहिए. पहली सिंचाई में अधिकांश पौधों के उग जाने के बाद दूसरी सिंचाई उसके 15 दिनों के बाद आलू के बन जाने और फूलने की अवस्था में ही करें. पके हुए आलू की फसल की कटाई उस समय करनी चाहिए जब आलू के कंदों के छिलके सख्त पड़ जाएं. इससे फसल अच्छी पैदा होती है और जब किसान इसको बेचेंगे तो उन्हें ज्यादा मुनाफा भी होगा.
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