छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में किसान आमतौर पर धान की फसल का उत्पादन करने के लिए रोपा पद्धति का उपयोग करते है. इसी तर्ज पर वह गन्ने की फसल लेने का कार्य भी करते है. वह इसी तर्ज पर गन्ने की फसल भी ले सकते है. दरअसल राज्य में पहली बार गन्ने की खेती रोपा पद्धति से किए जाने वाले तीन जिलों में रिसर्च हुआ है. इसमें छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिला, अंबिकापुर और बस्तर शामिल है, इस रिसर्च की जिम्मेदारी यहां के शासकीय संत कबीर कृषि कॉलेज एवं अनुसंधान केंद्र को सौंपी गई थी.
पॉली बैग के सहारे हो रहा गन्ना
गन्ने पर यह रिसर्च को वर्ष 2017-18 में शुरू किया गया था. यहां पर रिसर्च के लिए पॉली बैग भी लगाया गया है.पॉली बैगल में गन्ने के छोटे-छोटे पौधे को नर्सरी में 30 से 40 दिन तक रखा और वह तैयार हो गए. बाद में इन सभी को खेत में लगाया गया है. इससे दोगुना फायदा होगा. कॉलेज परिसर में ही पॉली बैग पद्धति के सहारे गन्ने की फसल को उगाया गया है. साथ ही इसको लेकर स्टूडेंटस को भी जानकारी प्रदान की जाती है.
किसानों को बेची जाएगी फसल
यहां पर दो वर्ष में इस प्रोजेक्ट को लेकर कॉलेज में रिसर्च किया गया है. यहां पर कॉलेज में ही पॉलीबैग में गन्ने के पौधों को तैयार किया गया है. इससे पहले बीते वर्ष नवंबर-दिसंबर में पॉली बैगों में पौधों को तैयार करके पौधों में लगाने का कार्य किया गया है. इन सभी पौधों को 30 से 40 दिनों के भीतर ही तैयार किया गया है. आज वर्तमान समय में करीब एक एकड़ क्षेत्र में भूमि में फसल को तैयार किया गया है. इसी फसल को जिले के किसान को 300 रूपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा जाएगा. इस पर 7 लाख रूपए भी खर्च हुए है.
गन्ने की अलग-अलग प्रजाति पर रिसर्च हुआ
राज्य में कबीरधाम जिले में दो शक्कर के कारखाने है. यहां पर गन्ना का उत्पादन भी काफी ज्यादा है. किसान आमतौर पर 24 प्रकार के गन्ना के प्रजाति अपने खेत में लगाते है. इन्हीं 24 प्रजातियों को पॉली बैग की खेती के रिसर्च में शामिल किया गया है. रिसर्च में 6 इस तरह की प्रजाति मिली है जो कि पॉली बैग की खेती के लिए सबसे बेहतर होती है. इसमें दामोदर, एमएस 10001, सीओ 90004, अमृता शामिल है. ये गन्ने की ऐसी प्रजाति है जो कि कम पानी में तैयार हो सकती है. इसमें कीट लगने की संभावना भी कम है.
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