आम एक प्रकार का रसीला फल है जोकि लोगों के बीच सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. आम को फलों का राजा भी कहा जाता है. इसकी मूल प्रजाति को भारतीय आम कहते है. इसका सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में ही होता है. आम को भारत फिलींपीस में राष्ट्रीय फल माना जाता है. बांग्लादेश में आम के पेड़ को राष्ट्रीय पेड़ का दर्जा प्राप्त है. आम की प्रजाति पहले भारतीय उपमहाद्वीप में ही मिलती थी बाद में यह धीरे-धीरे अन्य देशों में भी फैलने लगी है. यह स्वाद में काफी मीठा होता है.
आम का इतिहास
अगर हम आम के इतिहास की बात करें तो भारतीय उपमहाद्वीप में कई हजार वर्ष पूर्व आम के बारे में लोगों को पता चला. चौथी से पांचवी शताब्दी पूर्व ही यह एशिया के दक्षिण पूर्व तक पहुंच गया है. 14वी शताब्दी के दौरान ब्राजील, बरमूडा, वेस्टइंडीज तक पहुंच गया है. संस्कृत में इसको आम्र कहा जाता है. इसको हिंदी, मराठी, बंगाली, मैथिली, भाषाओं में इसका नाम आम पड़ गया है. मलयालम में इसका नाम मात्र है. पुर्गाली लोग इसको अपनी भाषा में मांगा बोलते थे. अगर विश्व की बात करें तो लगभग 4 करोड़ 30 लाख टन आम का उत्पादन किया जाता है.
आम की किस्मे
आम अपने स्वाद के लिए काफी मशहूर माना जाता है. आम की अलग-अलग देशों में कई तरह की वैरायटी पाई जाती है. अगर हम इसकी भारतीय किस्मों की बात करें तो आम की किस्मों में मुख्य रूप से बंबइया, तोतपरी, मालपरी, सुवर्णरेखा, सुंदरी, लगड़ा, राजापुरी, आम्रपाली, बादामी, अल्फांसों, फजली, सफेद लखनऊ आदि इसकी प्रमुख किस्में है. यह काफी ज्यादा मशहूर है.
आम की खेती
आम की खेती को लगभग पूरे देश में किया जाता है. इसीलिए इसकी खेती भी अलग-अलग तरह से की जाती है. बता दें कि आम की खेती उष्ण और शीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु में की जाती है. इसकी खेती समुद्र तल से 600 मीटर की ऊंचाई तक सफलतापूर्वक होती है. इसके लिए 23 से 26 डिग्री तक का तापमान अति उत्तम होता है. इसकी खेती को प्रत्येक किस्म की खेती में किय़ा जा सकता है. बुलई, पथरीली, क्षारीय भूमि इसे उगाना उचित नहीं है.
आम के बीज
आम के बीज पौधे तैयार करने के लिए आम की गुठलियों को जून और जुलाई के महीने में बुवाई कर दी जानी चाहिए. आम की प्रवर्धन की विधियों में भेट कलम, सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग, प्राकुंर कलम, और बांडिंग इसमें प्रमुख है. विनमिमय और साफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा अच्छे किस्म के पौधे को कम समय के भीतर ही तैयार कर लिया जाता है.
खाद व उर्वरक
आम के बागों में दस साल की उम्र तक प्रतिवर्ष उम्र के गुणांक में नाइट्रोजन, पोटाश, फास्फोरस प्रत्य़ेक को 100 ग्राम प्रति पेड़ जुलाई में पेड़ के चारों तरफ नाली में देनी चाहिए. इसके अलावा अतिरिक्त मृदा की भौतिक और रासायनिक दशा में सुधार हेतु 25 से 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति पौधा देना सही पाया गया है.
सिंचाई
आम की फसल में सिंचाई के लिए बाग लगाने के प्रथम वर्ष सिंचाई 2-3 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए. दो से चार वर्ष के अंतराल पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए. आम के बागों में पहली सिंचाई फल लगने के पश्चात, दूसरी सिंचाई फलों की कांच की गोली के बराबर अवस्था में और तीसरी फलों की पूरी तरह की बढ़वार की पैदावार पर करनी चाहिए.
गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण
आम की फसल में निराई और गुड़ाई वर्ष मे दो बार जुताई कर देनी चाहिए और इसके जरिए खरपतवार और भूमिगत कीट पूरी तरह से नष्ट हो जाते है और इसके अलावा समय -समय पर घास को निकालते रहना चाहिए.
फलों को तोड़ने का समय
आम की पारंपरिक फसल की तुडाई 8 से 10 मिमी लंबी डंठल के साथ ही करनी चाहिए. इससे फलों में स्टेम राट नाम की बीमारी लगने का खतरा नहीं रहता है.इसकी तुड़ाई के समय फलों को किसी भी तरह से चोट और खरोच नहीं लगने देना चाहिए. साथ ही इनको मिट्टी के संपर्क से बचाए रखना चाहिए. आम के फलों का श्रेणीक्रम उनकी प्रजाति, आकार, भार, रंग और परिपक्वता के आधार पर ही होना चाहिए.
उपज
आम की फसल पर रोग और कीटों के प्रबंधन पर प्रति पेड़ लगभग 150 किलोग्राम से 200 किलोग्राम तक की उपज आसानी से पास हो जाती है. लेकिन प्रजातियों के आधार पर अलग-अलग तरह की किस्में यहां पर पाई जाती है.
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