हल्दी जिंजिवरेंसी कुल का पौधा हैं, जिसका वानस्पतिक नाम कुर्कमा लांगा हैं. भारत में इसका उपयोग बहुत प्राचीन काल से अलग-अलग कामों के लिए किया जाता रहा है. अपने रंग, महक एवं औषधीय गुणों के कारण हल्दी सदैव मांग के मामले में बाजार में पकड़ बनाए रखती है.
मसालों और औषधीयों समेत समाज के सभी मंगल शुभकार्यों में इसका उपयोग किया जाता है. वर्तमान समय में प्रसाधन के सर्वोत्तम उत्पादों में इसके उपयोग से भी इसकी मांग बढ़ी है. वैसे आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि हल्दी के उत्पादन में हम विश्व में सबसे पहले स्थान पर आते हैं. चलिए आपको बताते हैं कि इसकी खेती कैसे की जा सकती है.
जलवायु
हल्दी की खेती के लिए ऐसे क्षेत्र उपयुक्त हैं, जहां 100 से 120 दिनों में 1200 से 1400 मि.मी. वर्षा होती है. इसी तरह अगर आपका क्षेत्र समुद्र सतह से 1200 मीटर की ऊंचाई पर है, तो आप वहां हल्दी उत्पादन कर सकते हैं.
मृदा
इसका उत्पादन सभी प्रकार की मिट्टी में हो सकता है, लेकिन खेतों को इस प्रकार तैयार करें कि वहां जल निकासी की सुविधा हो. इसकी खेती के लिए पीएच 5 से 7.5 वाली मिट्टी सबसे अच्छी है.
खेत की तैयारी
खेतों की बुवाई से पहले 4 से 5 जुताई करें, फिर पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर लें. पूर्व फसल के अवशेषों को अलग करने के बाद हल्दी रोपण हेतु 15 से.मी. ऊंची, एक मीटर चौड़ी तथा सुविधानुसार लम्बी (3-4 मीटर) क्यारियों का निर्माण करें.
सिंचाई
हल्दी की फसल को 20-25 हल्की सिंचाई की जरूरत होती है, गर्मियों में सात दिनों के अंतराल पर और शीतकाल में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
फसल की खुदाई
हल्दी की फसल 7 से 10 माह में तैयार हो जाती है. आम तौर पर इसकी खुदाई जनवरी से मार्च के मध्य खुदाई की जाती है. ध्यान रहे कि 7 से 10 माह बाद जब पत्तियां पीली पड़ जाये तथा ऊपर से सूखना प्रारंभ कर दे, तो आपकी हल्दी खुदाई के लिए तैयार है.
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