कद्दूवर्गीय सब्जियों में तोरई का स्थान महत्वपूर्ण है. इस सब्जी कई जगह पर तोरी भी कहा जाता है. एक बेल वाली ये कद्दवर्गीय सब्जी बड़े खेतों के अलावा छोटी गृह वाटिका में भी उगाई जाती है. हमारे देश में प्रायः ग्रीष्म (जायद) और वर्षा (खरीफ) ऋतु में इसकी खेती होती है.
मुख्य तौर पर इसका उपयोग सब्जी बनाने और सूखे बीजों से तेल निकालने के लिए किया जाता है. इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन ए का अच्छा स्रोत है, इसलिए सेहत के लिए भी इसे लाभकारी माना गया है. गर्मियों के दिनों में इसकी मांग सबसे अधिक होती है. चलिए आज आपको बताते हैं कि इसकी खेती में किस तरह की बातो का ख्याल रखा जाना चाहिए.
जलवायु एवं भूमि
इसकी खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में सबसे अच्छी हो सकती है. इसके लिए तापमान का 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक होना अच्छा है. वहीं अगर भूमि की बात करें तो इसकी खेती हर तरह की भूमि पर हो सकती है. हालांकि बलुई दोमट या दोमट मिटटी को ज्यादा उपयुक्त माना गया है.
खेत की तैयारी
तोरई फसल की अच्छी उपज के लिए सड़ी गोबर खाद की जरूरत पड़ती है. खेती से पहले इस खाद को खेतों में मिला देना चाहिए. आप चाहें तो फास्फोरस और पोटाश का भी उपयोग कर सकते हैं.
बुवाई का समय
ग्रीष्मकालीन तोरई की बुवाई मार्च में की जाती है, जबकि वर्षाकालीन फसल को जून से जुलाई में बोया जाता है. इसकी उपज सिंचाई पर निर्भर करती है. इसलिए गर्मियों के दिनों में इसकी सिंचाई 5-6 दिनों के अन्तराल पर होनी चाहिए. हालांकि वर्षाकालीन फसल को विशेष सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. हां, बारिश के न होने पर खेत में नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई की जा सकती है.
तुड़ाई और भंडारण
फलों की तुड़ाई मुलायम अवस्था में करनी चाहिए. ध्यान रहे कि फलों की तुड़ाई में देरी का मतलब है फलों में कड़े रेशों को आमंत्रण देना. इसकी तुड़ाई सप्ताह के अंतराल पर करनी चाहिए. फलों को को ताजा बनाए रखने के लिए ठण्डे छायादार स्थान का चुनना बहुत जरूरी है.
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