झारखंड के घाघीडीह जेल में बाहर से सब्जी खरीदने की कोई जरूरत नहीं होती है. जेल परिसर में उगाई गई सब्जी से ही सारी जरूरतें पूरी हो जाती हैं. यह सब संभव हो पा रहा है कैदियों की खेती की वजह से. दरअसल, पूर्वी सिंहभूम के घाघीडीह सेंट्रल जेल में बंदियों को स्वरोजगार और स्वावलंबी बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस कार्य को करने के लिए उनको कई तरह के साधन भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. इससे जेल के कैदियों को भी काफी फायदा हो रहा है.
जेल के कैदी करते जैविक खेती
इस जेल की खास बात यह है कि जेल में बंदी सब्जियाँ उगा रहे हैं. इसके अलावा वह बागवानी का कार्य भी कर रहे हैं. जेल की साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. खास बात यह है कि जेल में सब्जी का उत्पादन जैविक खेती पर आधारित है. सब्जी का उत्पादन करके जेल प्रशासन अपने मेस का खर्चा भी मेनटेन कर रहा है. गोभी, पत्ता गोभी, पालक, मूली, बैंगन, टमाटर, हरा धानिया, मिर्च का उत्पादन भी किया जा रहा है. इन सब्जियों का उपयोग जेल के कैदियों के लिए खाना बनाने में भी किया जाता है. इससे उनके भोजन का स्वाद भी दुगना हो जाता है. जेल के कैदियों को प्रतिदिन हरी और ताजा सब्जियों से भरपूर खाना, सलाद मिल रहा है. वहीं जेल प्रशासन सब्जी का खर्च निकालने में भी अपने आप में पूरी तरह से सक्षम हैं. जेल प्रशासन कैदियों को सब्जी के उत्पादन के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षण भी दे रहा है. इससे उनको जेल में रोजगार भी मिल रहा है.
कटोरा और थाली बना रहे बंदी
घाघीडीह सेंट्रल जेल में बंदी एल्युमीनियम की कटोरी, थाली, और गमले बनाने का कार्य भी कर रहे हैं. इसके निर्माण के लिए जेल में कई तरह की अत्याधुनिक मशीनें भी लगी हैं. इन बर्तनों का उपयोग घाघीडीह सेंट्रल जेल के बंदी अपने लिए करते हैं. साथ ही इसकी आपूर्ति प्रदेश के सभी जेलों में होती है. बंदी जेल में फिनाइल और साबुन बना रहे हैं.
जेल में पावरोटी
जेल में सब्जियों के उत्पादन के साथ ही खाने पीने के अन्य आइटम जैसे- पावरोटी आदि का उत्पादन भी हो रहा है. इसके लिए जेल में ऑटोमेटिक मशीनें भी लगाई गई हैं. इन पावरोटी की बिक्री जेल के बंदियों के अलावा दूसरे जेलों में भी की जाती है. इसके अलावा जेल में प्रिटिंग, पेंटिंग, हस्तशिल्प, चित्रकारी का भी प्रशिक्षण दिया जाता है.
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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