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लाल चावल के लिए संजीवनी साबित हुआ कृषि विभाग, हिमाचल के बाजार हुए गुलज़ार

हिंदी कविता की एक पंक्ति है कि “मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है.” इस कविता को सच कर दिखाया है हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने. जिस मर चुके लाल चावल की खेती के बारे में सोचना भी मुश्किल था

सिप्पू कुमार
Red Rice Farming
Red Rice Farming

हिंदी कविता की एक पंक्ति है कि “मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है.” इस कविता को सच कर दिखाया है हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने. जिस मर चुके लाल चावल की खेती के बारे में सोचना भी मुश्किल था, आज वो वहां लहलहा रही है. विलुप्त हो रही लाल चावल की पारंपरिक खेती की तरफ एक बार फिर वहां के लोगों का रुझान बढ़ने लगा है.

लाल चावल उत्पादन में बना रिकॉर्ड (Record made in red rice production)

प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस साल प्रदेश में लगभग 1000 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्रफल में लाल धान की खेती हुई है, जोकि अपने आप में एक रिकॉर्ड है. इन क्षेत्रों में मंडी, कुल्लु और कांगड़ा जैसे जिलों का नाम प्रमुख है. इस बार किसानों ने यहां नए किस्मों की जगह पारंपरिक किस्मों को ही महत्व दिया गया है.

ऐसा होता है लाल चावल का फसल चक्र (This is what happens in red rice crop rotation)

ध्यान रहे कि लाल चावल का उत्पादन सबसे अधिक पहाड़ी क्षेत्रों पर होता है, जून-जुलाई महीने में लगाई गई यह फसल अक्टूबर-नवंबर के महीने में तैयार हो जाती है. इस चावल में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने की असीम शक्ति होती है, जिस कारण इसकी मांग हाई रहती है.

लाल नहीं बल्कि भूरा होता असली रंग (The real color would have been brown, not red)

वैसे आपको बता दें कि इस चावल का असली रंग लाल नहीं, बल्कि भूरा होता है. लेकिन फिर भी आम तौर पर इसे लाल चावल के नाम से ही मार्केट में जाना जाता है. फिलहाल इसको लेकर कई तरह के रिसर्च चल रहे हैं, कई विशेषज्ञ कैंसर की दवाई के रूप में इसको देखते हैं, क्योंकि इसमें ऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होती है.

इस कारण विलुप्त होता गया लाल चावल (Red rice became extinct because of this)

पिछले 20 सालों पर गौर करने पर मालुम होता है कि इसकी खेती असामान्य रूप से कम होती गई है, जिसका एक बहुत बड़ा कारण है जल स्रोतों का सूखते जाना.हालांकि चावल उत्पादन में हिमाचल प्रदेश का नाम आज भी आगे है, यहां के मात्र दस जिलों से ही 130 हजार टन से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है, लेकिन बड़े क्षेत्रफलों से औषधीय गुणों वाला लाल चावल कैसे समाप्त होता गया इस तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया.

कृषि विभाग की मेहनत लाई रंग (Agriculture department's hard work paid off)

2014 के बाद से कृषि विभाग ने इस तरफ ध्यान देना शुरू किया और आज लगभग 6 सालों बाद वहां नई किस्मों की जगह किसानों ने पारंपरिक किस्मों को पसंद करना शुरू कर दिया. फिलहाल लाल चावल से किसानों को 150 से 300 रुपए तक की कमाई हो जाती है.

प्रचलन में वापस आने का मुख्य कारण (Main reason for coming back in vogue)

विशेषज्ञों की माने तो कृषि विभाग की मेहनत तो इसको वापस लाने में है ही, लेकिन उससे भी बड़ा कारण है लोगों का सेहत को लेकर सचेत होना. गौरतलब है कि इस चावल में कुल 16 से अधिक पोषक तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है.इतना ही नहीं, कई शोधों में ऐसा दावा किया गया है कि दूसरी किस्मों की तुलना में लाल चावल आयरन,जिंक, नियासिन, विटामिन डी, कैल्शि यम, फाइबर और राइबोफ्लेविन आदि पाए जाते हैं.

English Summary: this is how red rice cultivation again come in trend in himachal pradesh Published on: 17 December 2020, 11:51 AM IST

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