छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के परलकोट में कुछ किसान ऐसे है जिनकी सोच हमेशा से ही यूनिक होती है. इस इलाके में मक्का और धान के बाद अब रूझान एक नई फसल की ओर है. यही कारण है कि यहां के एक किसान ड्रैगन फ्रुट की फसल को लेने लगे हुए है. खेती किसानी में कुछ नया करने के लिए यहां पीवी -122 निवासी किसान विद्युत मंडल ने ड्रैगन फ्रुट की फसल करने की ठान ली है. आज मंडल की 30 डिसमिल मेंड्रैगन फ्रुट के पौधे लोगों को आकर्षिक करने लगे है. जो भी लोग आते है वह पूछते है कि यह कौन सी फसल है.
थाईलैंड से बांग्लादेश होकर आया बीज
किसान ने बताया कि इस फसल को लगाने की चाहत 10 साल से ही थी मगर कोई भी जरिया नहीं मिल रहा था. इस बात की भी जानकारी नहीं थी कि इसका बीज कहां से मिलेगा. तब एक मित्र ने बताय़ा कि इसका बीज थाईलैंड से ही प्राप्त होगा. उनहोंने मित्र से संपर्क करने के बाद थाईलैंड से बीज को मंगवाया है. किसान ने बताया कि 30 डिसीमल में दो साल तक बीज को लगाया लेकिन पौधे नहीं बढ़ रहे है. इस साल अच्छे से पौधे भी बढ़ रहे है और फूल भी आने लगे है. उन्होंने बताया कि अब तक लगभग दो -तीन लाख रूपये खर्च हो गया है. लेकिन आने वाले दिनों में फलों से बेहतर आमदनी होने की उम्मीद है.
पौधा आकर्षक और फल स्वाद भरपूर
ड्रैगन फ्रुट एक पौराणिक फल है. इसका तना बेल रस्सी की तरह ही लंबा होता है. इसकी खेती के लिए पर्याप्त जगह की आवश्यकता होती है. इसीलिए प्रत्येक पौधे पर खंभे या फिर लकड़ी के सहारे चढ़ना पड़ता है वरना फसल को बचा पाना संभव नहीं होता है. यह सुगंधित पौधा होता है. यह पौधा देखने में आकर्षक और स्वादिष्ट होता है. ड्रैगन फ्रुट को ड्रैगन मोतीफल और पिताया भी कहा जाता है. ड्रैगन फ्रुट खास कर की अमेरिका, चीन, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों में बेहद बड़े पैमाने पर लिया जाता है. भारत के कई प्रदेशों में इसकी खेती होती है. पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों में इसकी फसल को लिया जा सकता है.
300 डिसमिल में ले रहे फल
किसान मंडल बताते है कि फिलहाल 30 डिसमिल में फसल लगाया है. यहां की जमीन ड्रैगन फ्रुट की खेती के लिए पूरी तरह से उपयुक्त है. इसमें सिंचाई की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है. उन्होंने पहली बार ही इसके पौधों को लगाया है. अगर इसका उत्पादन बेहतर रहा तो इसको अगली साल ज्यादा रकबे में लगाएंगे.
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