मुलेठी की खेती आज किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है. इसे करने में लागत कम और मुनाफा अधिक हो रहा है. शायद यही कारण है कि सरकार भी इसकी खेती को प्रोत्साहित कर रही है. आम बोलचाल की भाषा में ‘मीठी जड़’ के नाम से भी जाना जाने वाला मुलेठी, खाने के अलावा गले की खराश, खांसी एवं आयुर्वेदिक दवाइयों के रूप में इस्तेमाल होता है.इसकी झाड़ी को कफ निवारक एवं जलन रोधक कहा जाता है एवं कई बीमारियों के उपचार में इसका प्रयोग होता है. इतना ही नहीं त्वचा की समस्याओं, पीलिया, अल्सर, ब्रोंकाइटिस इत्यादि के उपचार में इस्तेमाल होने के कारण इसकी मांग बढ़ गई है. इसकी खेती के लिए राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड से आप 50 प्रतिशत तक का अनुदान प्राप्त कर सकते हैं. चलिए आपको इसकी खेती के बारे में बताते हैं.
मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा है
मुलेठी को सदाबहार झाड़ीनुमा पौधा कहा जाता है. इसकी औसत ऊंचाई लगभग 120 सेमी के आसपास हो सकती है, जबकि इसके फूलों का रंग जामुनी या सफेद नीले रंग का हो सकता है. फलों में बीजों की मात्रा अधिक होती है. स्वाद में इसके जड़ मीठे होते हैं. आज के समय में इसकी मुख्य तौर पर खेती पंजाब और हिमालयी क्षेत्रों में होती है.
जलवालयु एवं मिट्टी
इसकी खेती लगभग सभी तरह की मिट्टी पर हो सकती है, लेकिन रेतीली-चिकनी मिट्टी इसकी उपज के लिए उत्तम है. जलुवायु के हिसाब से देखा जाए तो भारत का उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त है.
बिजाई का समय
इसकी बिजाई जुलाई-अगस्त माह में आसानी से हो सकती है. बिजाई से पहले खेतों की जुताई कर उन्हें समतल करना जरूरी है. मिट्टी को नरम होने तक जोतकर, खरपतवारों को अच्छे से हटा दें. ध्यान रहे कि मिट्टी में पानी ना खड़ा होने पाएं.
प्रत्यारोपण
रोपाई का फासला 90x45 से .मी. तक होना चाहिए, जबकि बिजाई को सीधे या पनीरी लगाकर करना टाहिए. आप चाहें तो बीज में अन्तर प्रजातियों की फसलों को भी लगा सकते हैं.
सिंचाई
गर्मियों के मौसम 30-45 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें, जबकि सर्दियों में सिंचाई की जरूरत अनुसार करें. पौधों की जड़ों को गलन से बचाने के लिए पानी की स्थिरता को रोकना जरूरी है.
कटाई
ढ़ाई या तीन साल बाद पौधे उपज देने लायक हो जाते हैं. आप सर्दियों के नवंबर से दिसंबर में कटाई का काम कर सकते हैं. कटाई के बाद जड़ों को धूप में सुखाना चाहिए. अनुदान के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें.
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