कंगनी जो पहाड़ी क्षेत्रों में एक पारंपरिक फसल है. इसमें विटामिन बी1, बी2, बी3, बीटा कैरोटीन, पोटेशियम, एल्कलॉइड, फेनोलिक्स, टॉनिन्स, फलवोनॉइड्स, क्लोरीन और जिंक जैसे पौष्टिक गुण होते हैं. आयरन कैल्शियम की भी भरपूर मात्रा है जो हड्डियों को मजबूत रखती है. शरीर का वजन कम करने के लिए भी लाभदायक है. नर्वस सिस्टम की समस्या है तो कंगनी का सेवन फायदेमंद है, साथ ही मधुमेह के रोगियों को कंगनी का सेवन रोज करना चाहिए, इससे लाभ होता है. इतना ही नहीं कंगनी में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट गुण कैंसर से लड़ने में सहायक है. सभी गुणों की वजह से इसकी मार्केट में मांग ज्यादा रहती है तभी खेती भी मुनाफे का सौदा साबित हो रही है.
खेत की तैयारी - खेती के लिए भूमि को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और फिर 2 से 3 बार देशी हल या हैरो से जोत लेना चाहिए. साथ ही दीमक की रोकथाम के लिए दीमक नियंत्रण का इस्तेमाल करना चाहिए. जुताई के बाद उस पर पाटा चला देना चाहिए, जिससे भूमि भुरभुरी और समतल हो जाए.
बीजोपचार - हल्के बीजों को निकालने के लिए 2 प्रतिशत नमक के घोल में डालकर अच्छी तरह बीजों को हिलाना चाहिए, इस दौरान घोल के ऊपर तैरते हल्के बीजों को निकाल दें और पेंदे में बैठे बीजों को साफ पानी से धोकर सुखा लेना चाहिए, इसके अलावा कवक जनित रोगों के लिए 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50 WP से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना करें.
बुवाई का समय - कंगनी फसल की बुवाई जून के आखिरी सप्ताह से मध्य जुलाई तक करनी चाहिए, क्योंकि तब खेत में पर्याप्त नमी होती है. बीज की मात्रा की बात करें तो 8 से 10 किलोग्राम प्रति हैक्टर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए.
बुवाई का तरीका - बीज को छिटक कर या फिर बिखेरकर होना चाहिए लेकिन अधिक उपज के लिए इन फसलों को 25 सेंटीमीटर दूरी पर कतारों में बोना चाहिए. बीज को लगभग 3 सेंटीमीटर गइराई पर बोना चाहिए.
सिंचाई - छोटे खाद्यान्न की फसल बारिश के समय बोई जाती है. इसलिए पानी संबंधी जरूरत बारिश से ही पूरी हो जाती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए खेत में जल निकास का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए. समतल खेतों में 40-45 मीटर की दूरी पर गहरी नालियां बना लेनी चाहिए जिससे बारिश का अतिरिक्त जल नालियों से खेत के बाहर निकल जाए.
निराई और गुड़ाई - कंगनी की अधिक अनाज की उपज के लिए फसलों में बुवाई के 30 से 40 दिन बाद कम से कम एक निराई-गुड़ाई और छंटाई करना जरूरी होता है.
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कीट और रोग नियंत्रण - छोटे खाद्यान्नों की फसल में हानिकारक कीट और रोग कम लगते हैं, लेकिन तना छेदक और ईल्ली रोग की रोकथाम के लिए उपयोग करना चाहिए.
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