किसानों को उनकी टमाटर की फसल से कम उत्पादन तथा कम आय प्राप्त होने के कई कारण है .
ऐसे में आइये जानते हैं टमाटर की फसल में कम उत्पादन तथा कम आय प्राप्त होने के कारण -
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अधिक उत्पादन देने वाली संकर किस्मों की खेती न करना जिसमें बीमारियों का प्रकोप कम होता हो .
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एक ही संकर किस्म की कई वर्षों से खेती करना जिसके कारण बीमारियों का अधिक प्रकोप तथा उत्पादन में कमी आ रही है .
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कम क्षेत्रफल में अधिक पौधों की रोपाई करना, जिसके कारण फसल बहुत घनी हो जाती है तथा वर्षा के मौसम में बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है .
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टमाटर की फसल में बीमारियों के नियंत्रण करने के लिए किसानों द्वारा फफूँद नाशकों का उचित मात्रा में सही समय पर छिडकाव नही किया जाता है .
टमाटर की संकर किस्में
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एन. एस. 585, अभिलाष, सवक्षम, हिमसोना, यू एस 2853 बीज दर
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एक एकड़ (4000 वर्ग मी०) क्षेत्रफल की लिए (15000 पौध के लिए) 50 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है .
पौधशाला (नर्सरी) में टमाटर की पौध में आर्द गलन (डंमपिंग ऑफ) बीमारी का प्रबधंन
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पौधशाला में बीज जमाव के बाद काबेन्डाजिम+मेंकोजैब फफूँदनाशक की 1 ग्राम मात्रा को प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर पौधों के उपर तथा पौधों की जड़ों में 6-7 दिनों के अन्तराल पर 3 छिड़काव करें .
टमाटर में पौधों की रोपाई कैसे करें
- रोपाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 60 से.मी. तथा पौध से पौध की दूरी 45 से.मी रखें .
- इस दूरी पर पौध की रोपाई करने पर एक एकड़ (4000 वर्ग मी०) में 15000 पौधों की आवश्यकता होती है .
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
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15000 पौध (एक एकड़ क्षेत्रफल या 4000 वर्ग मी) के लिए 75-80 कि.ग्रा. एन.पी.के. 12:32:16 का रोपाई से दो दिन पहले प्रयोग कर तथा खेत की जुताई करके मिट्टी में मिला दें .
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गोबर की सड़ी खाद 120-125 कुन्तल का प्रयोग 15000 पौध के लिए रोपाई से दो दिन पहले खेत की तैयारी के समय करें .
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रोपाई के 30 दिनों बाद एन.पी.के. 18:18:18 की 3.0 ग्राम मात्रा प्रति ली० पानी में घोल बनाकर एक सप्ताह के अन्तराल पर 4 छिड़काव करें .
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रोपाई के 60 दिनों बाद एन.पी.के. 18:18:18 की 5 ग्राम मात्रा प्रति ली० पानी में घोल बनाकर एक सप्ताह के अन्तराल पर 3 छिड़काव करें .
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रोपाई के 80 दिनों बाद एन.पी. के 18:18:18 की 5.0 ग्राम मात्रा प्रति ली० पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें तथा अगले सप्ताह एन.पी.के. 0:0:50 की 5.0 ग्राम मात्रा प्रति ली पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें . यह प्रकिया फसल के अन्त तक अपनाते रहें .
टमाटर की फसल में कीटों एवं बीमारियों का प्रबन्धन
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टमाटर की रोपाई के बाद कटवा कीट (कट वर्म) का प्रकोप होता है . इस कीट की सूडिंया भूरे रंग की होती है जो रात्रि में टमाटर के पौधों के तने को जमीन की सतह से काट देती हैं . इस कीट के नियंत्रण के लिए क्लेरोपाइरीफॉस टाइपरमथीन कीटनाशक की एक मि०ली० मात्रा प्रति ली० पानी में घोल बनाकर पौधों की जड़ों को सींच दें .
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एक ली孮० घोल में 5 पौधों की जड़ों की सिचाई करें .
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पहेती झुलसा बीमारी के प्रकोप से टमाटर के पौधों एवं फलों प भूरे एवं काले रंग के धब्बे हो जाते हैं . इस बीमारी के प्रकोप वर्षा के मौसम में अधिर होता है .
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पहेती झुलसा बीमारी के प्रबन्धन हेतु फफूँदनाशक (साईमोक्सानिल+मैकोलैब) की 2 ग्रा० मात्रा प्रति ली पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें इसके एक हफ्ते (लगभग 7-8 दिनों) बाद प्रोपिनेब फफूँदनाशक की 2 ग्राम मात्रा प्रति ली० पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें . फफूँदनाशक के घोल में स्टीकर अवश्य मिलाए . मौसम साफ होने पर ही छिड़काव करें .
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टमाटर की फसल में फल बेथक कीट के प्रबन्धक हेतु इन्डोक्साकार्ब या स्पेनिटोरम कीटनाशक की 0.5 – 1.0 मि०ली० मात्रा प्रति ली० पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसर छिड़काव करें . कीटनाशक में स्टीकर अवश्य मिलायें .
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पत्ती मोडक विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को खेत से सावधानी पूर्वक निकालकर नष्ट कर दें .
लेखक: पुष्पेन्द्र सिंह दीक्षित एस.आर.एफ.
सब्जी विज्ञान विभाग कल्यानपुर
चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर
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