साइलेज उस पदार्थ को कहते हैं जिसे अधिक नमी वाले चारे को नियंत्रित किण्वन विधि द्वारा तैयार किया जाता है और जिसमें हरे चारे के पोषक तत्वों की उपलब्धता बनी रहती है. साइलेज निर्माण विधि में जिस भौतिक संरचना का प्रयोग किया जाता है उन्हें साइलोपिट कहते हैं. जब हरे चारे के पौधों को हवा की अनुपस्थिति में किण्वाकृत किया जाता हैं तो लैक्टिक आम्ल पैदा होता है, यह अम्ल हरे चारे को अधिक समय तक सुरक्षित रखने में मदद करता है. साइलेज बनाने और उसके सुरक्षित रख रखाव के लिए खई, गढ्ढ़ों या जमीन के ऊपर बने साइलों में भरा जाता है. किण्वीकरण का नियंत्रण या तो लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को बढ़ावा देकर या हरे चारे में कमजोर आम्ल के घोल को सीधा मिलाकर या सोडियम मेटा बाईसल्फाइट जैसे परिरक्षक को मिलाकर किया जाता है.
साइलेज बनाने की प्रक्रियाः
साइलेज बनाने के लिए चारा फसल की महीन काटकर गड्ढे में खूब अच्छी तरह से दबा-दबा कर भर दें और समय-समय पर इसमें नमक डालते रहें. नमक एक परिरक्षक का कार्य करता है. जब गड्ढा खूब अच्छी तरह से भर जाए तो इसमें ऊपर से हरी घास डाल दें और अंत में मिट्टी से गड्ढे को खूब अच्छी तरह से ढक दें. कुछ दिनों में गड्ढे के अन्दर हवा की अनुपस्थिति में चारे का किण्वन होना शुरू होने लगता है और धीरे-धीरे चारा नीचे की तरफ बैठने लगता है. दो से तीन महीने के भीतर साइलेज बनकर तैयार हो जाती है. तैयार साइलेज से एक विशेष प्रकार की सुगन्ध आती है. अब आप इसे अगले तीन चार महीने तक पशुओं को खिला सकते हैं.
साइलेज बनाने में सावधानियांः
साइलेज बनने के प्रक्रिया बहुत धीरे होती है. इसमें समय देकर गड्डे में चारे को भरना चाहिए. साइलेज का कम से कम 1/6 भाग प्रतिदिन भर जाना चाहिए, जिससे कि यह अगले आठ से दस दिनों में पूरा भर जाए.
गड्डे को भरते समय कटे हुए चारे की पूरे क्षेत्रफल में पतली-पतली एक समान परतों में फैलाकर व दबा-दबाकर अच्छी तरह से भरना चाहिए ताकि अधिकांश हवा बाहर निकल जाए.
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साइलेज के अन्दर हवा व पानी बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिए. पोलीथीन की चादर से चारों तरफ से ढककर उसके ऊपर 30 सेमी. मोटी गीली मिट्टी की परत डालकर दबा दें, ताकि कोई हवा वहां तक ना पहुंच सके और ऐसा करने से किण्वन की क्रिया के फलस्वरूप चारे में संकुचन होता है.
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