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जानिए राजगिरा की उन्नत खेती का तरीका और प्रमुख उन्नत किस्में

राजगिरा स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक खाद्यान्य होता है. छत्तीगढ़ राज्य के मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में ठंड के दिनों में इसकी खेती होती है. कहा जाता है कि राजगिरा पेन्ट्रोपिकल कास्मोपोलिटम नामक खरपतवार से उपजा है. इसे आम भाषा में अनार दाना, राम दाना, चुआ, राजरा और मारचू कहा जाता है. इसमें कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन और लाइसिन जैसे तत्वों के अलावा बीटा केरोटिन, लोहा और फोलिक एसिड प्रचुर मात्रा में होता है. तो आइए जानते हैं इसकी उन्नत खेती करने के तरीकों के बारे में-

श्याम दांगी

राजगिरा स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक खाद्यान्य होता है. छत्तीगढ़ राज्य के मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में ठंड के दिनों में इसकी खेती होती है. कहा जाता है कि राजगिरा पेन्ट्रोपिकल कास्मोपोलिटम नामक खरपतवार से उपजा है. इसे आम भाषा में अनार दाना, राम दाना, चुआ, राजरा और मारचू कहा जाता है. इसमें कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन और लाइसिन जैसे तत्वों के अलावा बीटा केरोटिन, लोहा और फोलिक एसिड प्रचुर मात्रा में होता है. तो आइए जानते हैं इसकी उन्नत खेती करने के तरीकों के बारे में-

भूमि की तैयारी

राजगिरा की उत्तम खेती के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी सही होती है. जिसका पीएचमान 6 से 7.5 होना चाहिए. बुवाई से पहले खेत को जुताई करके खेत को भुरभुरा और खरपतवार रहित बना लेना चाहिए.

जलवायु- इसके लिए ठंडी मौसम सर्वोत्तम माना जाता है. हालांकि इसे सूखे में मौसम में भी लगाया जा सकता है लेकिन ज्यादा पानी देने या हवा चलने में इसकी फसल गिर जाती है.

बुवाई का समय- इसकी बुवाई मैदानी भागों में अक्टूबर और नवंबर महीने में उचित होती है.

बीजदर- इसका बीज महीन और हल्का होता है. कतारों में लगाने पर प्रति हेक्टेयर 2 किलो बीज की जरूरत पड़ती है. वहीं छिटकवां विधि से बुवाई की जाती है तो 3 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लेना चाहिए. कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर और बीज की गहराई सेंटीमीटर रखना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक-

राजगिरा की अच्छी पैदावार के लिए खेत तैयार करते समय 10 से 12 टन गोबर की पकी खाद मिलाएं. इसके अलावा प्रति हेक्टेयर के लिए नाइट्रोजन 55-60 किलो, सुपर फास्फेट 35-40 किलो और पोटाश 20-25 किलो की मात्रा में लें.

कीट और बीमारी -

इसमें बग, कैटर पिल्लर और तना घुन जैसे कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके झुलसा रोग, विषाणु समेत अन्य कीटों का प्रकोप रहता है. अनुशंसित उर्वरकों को प्रयोग करके इन बीमारियों से निजात पा सकते हैं.

कब करें कटाई

इसकी फसल 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. जब फसल पीली पड़ जाए तब इसकी कटाई कर लेना चाहिए. इसके बाद फसल को तिरपाल पर अच्छी तरह सुखा लें और फिर कुटकर छंटाई कर लें.

राजगिरा की उन्नत किस्में

सुवर्णा- इस किस्म की खेती ओडिशा, गुजरात और कर्नाटक राज्य के लिए उपयुक्त है. यह 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 14 से 16 क्विंटल का उत्पादन हो जाता है.

 जीए-2- यह गुजरात राज्य के लिए उपयुक्त है. इसका पौधा 150 दिनों में पककर तैयार हो जाता है. इससे प्रति हेक्टेयर 14 से 15 क्विंटल की पैदावार होती है.

बीजीए 2- यह किस्म 140 से 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यह तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक राज्य के लिए उपयुक्त है. इससे प्रति हेक्टेयर 14 क्विंटल का उत्पादन होता है.

आरएमए 7- यह भी उन्नत किस्म है और ओडिशा, गुजरात और झारखंड राज्य के लिए उपयुक्त है. इससे प्रतिहेक्टेयर 145 से 150 क्विंटल की पैदावार होती है.

छत्तीगढ़ राजगिरा 1- यह छत्तीसगढ़ राज्य के लिए उपयुक्त है. 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. प्रति हेक्टेयर 14 क्विंटल की पैदावार होती है.   

English Summary: ramdana the peasant farming less water and in hard earn good profits Published on: 10 October 2020, 06:31 PM IST

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