गर्मियों में बेल वाली यानी कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती व्यापक रूप से होती है. कद्दूवर्गीय सब्जियों में प्रमुख रूप से तोरई, लौकी, खीरा, ककड़ी, चप्पन कद्दू, टिंडा, पेठा, खरबूज, तरबूज शामिल हैं. कई बार इनकी फसलों को कीट और बीमारियां लग जाती हैं. इसकी वजह से फसलों को भारी नुकसान भी पहुंचाता है.
इनका प्रकोप फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को कम कर देता है. ऐसे में कद्दूवर्गीय सब्जियों के पौधों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए. इस लेख में आगे कद्दूवर्गीय सब्जियों में लगने वाले कीट और बीमारियों और उनकी रोकथाम के बारे में पढ़िए...
प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम (Major Pests and their prevention)
लालड़ी कीट- इस कीट की सुड़ियां क्रीम और पीले रंग की दिखाई देती हैं. यह प्रौढ़ पत्तियों में गोल सुराख कर देती हैं. इसके साथ ही जमीन में रहकर जड़ों को भारी नुकसान पहुंचाती हैं. इनका प्रकोप अप्रैल के पहले पखवाड़े और मध्य जून से अगस्त तक ज्यादा रहता है.
रोकथाम– कद्दूवर्गीय सब्जियों को इस कीट से बचाने के लिए आवश्यकता अनुसार कार्बोरिल 5डी में राख मिलाकर उपचार कर सकते हैं. इसके अलावा साइपरमेथ्रिन 10 ईसी या फेनवलरेट 20 ईसी को लगभग 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़क सकते हैं.
फल मक्खी- यह मक्खियां फलों के अंदर अंडे देती हैं. इसके बाद इनसे सुंडियां निकलती हैं. इससे फल खराब हो जाते हैं. इसका प्रकोप ककड़ी, घीया, खरबूजा, तोरी, टिंडा की फसल पर ज्यादा पड़ती है.
रोकथाम– इसके उपचार के लिए आवश्यकता अनुसार फेनिट्रोथियान 50 ईसी या मैलाथियान 50 ईसी, गुड़/शीरा को लगभग 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिन के अंतर पर छिड़क दें.
रस चूसने वाले कीड़े –यह कीड़े फसल के पौधों का रस चूस लेते हैं. इनके प्रकोप से पौधे कमजोर पड़ जाते हैं.
रोकथाम – इसके उपचार के लिए आवश्यकता अनुसार मैलाथियान 50 ईसी को लगभग 200 से 250 लीटर पानी में मिला लें. इसके बाद इसको 10 दिन के अंतर पर छिड़कते रहें.
प्रमुख बीमारियां और उनकी रोकथाम (Major diseases and their prevention)
पाउडरी मिल्डयू या चिट्टा रोग–यह रोग पत्तों, तनों और अन्य भागों पर फफूंद की सफेद आटे जैसी तह जमा देता है. यह रोग खुश्क मौसम में ज्यादा होता है.
रोकथाम –फसल को बचाने के लिए कई बार आवश्यकता अनुसार बारीक गंधक के धूड़ें को बीमारी लगे हर भाग पर धूड़ा दें. इससे बीमारी रुक जाती है. इस प्रकिया को सुबह या शाम में करना चाहिए.
एन्थ्रेकनोज या स्कैब –इस रोग में पत्तों और फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं. अगर अधिक नमी का मौसम है, तो धब्बों पर गोंद जैसा पदार्थ दिखाई देने लगता है.
रोकथाम –इस रोग से फसल को बचाने के लिए मैंकोजेब को लगभग 200 लीटर पानी में घोल लें. इसके बाद फसल पर इसका छिड़काव कर दें.
गम्मी कॉलर रॉट–फसलों पर इस रोग का प्रकोप अप्रैल से मई में होता है. यह रोगमें तना पीला पड़कर फटनें लगता है, जिसमें गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है.
रोकथाम –इस रोग का उपचार करने के लिए आप पौधों के तनों की भूमि के पास बाविस्टीन घोल से सिंचाई कर सकते हैं..
इसके अलावा आप कृषि वैज्ञानिक की सलाह से फसलों में कीटनाशक दवा भी डाल सकते हैं. ध्यान दें कि खरबूजे की फसल में चिट्टा रोग लगने पर गंधक का धूड़ा न करें. इसके लिए खरबूजे पर आवश्यकता अनुसार सल्फेक्स को पानी में मिलाकर छिड़क दें.
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