जहां आज के समय में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले में बहुत ही दिलचस्प तरीके से यह खेती की जा रही है. खेती करने वाली कुछ महिलाएं धान का उत्पादन (rice cultivation) एक अनोखे अंदाज़ में करती हैं. कहने को ये महिलाएं भी बाकी लोगों की तरह ही बिना किसी केमिकल या कीटनाशक के धान उगाती हैं लेकिन इनका तरीका थोड़ा अलग है. ये महिलाएं अपनी खेती में बतख का सहारा लेती हैं. जी हां, महिला किसानों ने फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का सफ़ाया करने के लिए ये जुगाड़ निकाला है.
धान की खेती के साथ ही बतख पालन
ये महिलाएं धान की इस जैविक खेती (organic farming) के लिए ही बतखों का इस्तेमाल करती हैं. ऐसे में वे बतख पालन भी करती हैं. इससे उन्हें जहां धान की जैविक खेती (organic farming of rice) के लिए मुनाफ़ा मिल रहा है, वहीं बतख पालन से भी वे पैसे कमा रही हैं.
इस तरह बतखें हैं खेती में सहायक
महिलाओं के मुताबिक ये बतखें धान के खेतों (paddy fields) से अनावश्यक कीट और वीड को खा लेती हैं. इसके साथ ही जब खेतों में इन बतखों को छोड़ा जाता है, तो जगह-जगह फैली हुई इनकी बीट भी एक जैविक खाद का काम करती है. इससे मिट्टी भी उपजाऊ (soil fertility) बनती है. इस तरह इन महिला किसानों को किसी भी तरह की रासायनिक खाद , कीटनाशक (pesticides) या हर्बीसाइड (herbicides) का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है. इससे उनके पैसों की बचत भी होती है.
Duck Farming में इस बात का रखें ध्यान
इस 'डक फ़ार्मिंग' तकनीक में ध्यान देने वाली बात यह है कि धान लगाने के लगभग 20 से 25 दिनों तक बतखों को खेत में नहीं छोड़ना चाहिए, नहीं तो फसल खराब होने का खतरा भी रहता है. महिलाओं का कहना है जबतक धान की जड़ें मिटटी में पूरी तरह से अपनी पकड़ न बना लें, बतखों को उनसे दूर ही रखना चाहिए.
छोटे स्तर पर खेती करने वाले किसानों के लिए उपयुक्त है यह तकनीक
धान की यह जैविक खेती उन किसानों के लिए है जो छोटे स्तर पर खेती करते हैं. इसमें न केवल फसल को फ़ायदा पहुंचता है, बल्कि बतखों को भी धान के खेतों में अपना आहार कई तरह के कीटों और वीड के रूप में मिल जाता है. इस तरह ये महिलाएं अपने धान की पैदावार को लगभग 20 फीसदी तक बढ़ा लेती हैं.
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