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जैविक उत्पाद: चौपाल से विश्व बाजार तक

जैविक खेती स्थानीय संसाधनों (बीज, जल, मृदा, मानव श्रम, वनस्पति) के सर्वोतम उपयोग से पर्यावरण संतुलित करने के साथ लागत कम करके खेती को लाभकारी बनाने व लम्बे समय तक भूमि की उर्वरता बनाये रखने का समन्वित प्रयास है. देश-विदेश में उपभोक्ता की स्वास्थ्य के प्रति जागृति से जैविक उत्पादों की मांग निरतंर बढ़ रही है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी यह एक उत्तम विकल्प माना जा रहा है.

KJ Staff
Organic
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जैविक खेती स्थानीय संसाधनों (बीज, जल, मृदा, मानव श्रम, वनस्पति) के सर्वोतम उपयोग से पर्यावरण संतुलित करने के साथ लागत कम करके खेती को लाभकारी बनाने व लम्बे समय तक भूमि की उर्वरता बनाये रखने का समन्वित प्रयास है. देश-विदेश में उपभोक्ता की स्वास्थ्य के प्रति जागृति से जैविक उत्पादों की मांग निरतंर बढ़ रही है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी यह एक उत्तम विकल्प माना जा रहा है.

जैविक खेती: भविष्य की खेती

  • नाईट्रोजन उर्वरक जैसे यूरिया, डी.ए.पी. आदि पेट्रोलियम से बनते हैं जिसके विश्व भण्डार आगामी 10-15 वर्ष बाद बहुत सीमित रह जायेंगे साथ ही सरकार की नीति के अनुसार पोषक तत्व आधारित सबसिडी होने से इनके मूल्य बढ़ने की संभावना है. नत्रजन उर्वरक का मात्र 25-30 प्रतिशत भाग फसल के काम आता है शेष, जल व वायु में मिलकर धरती का वातावरण गर्म कर जलवायु परिवर्तत करने में एक बड़ा कारक है. अतः जैव उर्वरक, कम्पोस्ट फसल चक्र आदि प्राकृतिक साधन ही लम्बे समय तक खेती व पर्यावरण को बनाये रख सकते है.

  • फास्फोरस व पोटाश खाद का अधिकांश भाग उत्तरी अफ्रीकी देशों से आयात होता है तथा वहां इनके भण्डार तेजी से समाप्त हो रहे हैं अतः इन तत्वों के प्राकृतिक विकल्प जैसे हड्डी की खाद, राख, कम्पोस्ट आदि को अपनाना पड़ेगा.

  • खेती में बाहरी आदानों (बीज, उर्वरक, कीटनाशक) पर अत्यधिक निर्भरता से इसे अलाभकारी बना दिया है और राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार 45% किसान खेती छोड़ना चाहते हैं. जैविक कृषि में सभी आदान खेत या ग्राम स्तर पर बताये जाते हैं अतः खेती की लागत कम होने से लाभकारी बन जाती है.

  • साक्षरता व स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तथा समृद्धि बढ़ने से उपभोक्ता की, रसायन अवशेष मुक्त, अच्छी गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ खरीदने में रूचि बढ़ रही है और ये सभी गुण जैविक उत्पाद में होते हैं.

  • रसायनिक उर्वरक के प्रयोग से भूमि की उर्वरता तेजी से घट रही है मृदा स्वास्थ्य एक बड़ी समस्या बन रहा है. दूसरी ओर जैव उर्वरक न केवल भूमि की उर्वरता बनाये रखते हैं वरन जल धारण क्षमता बढ़ाते हैं जो देश के 60 प्रतिशत बारानी कृषि के लिये बहुत जरूरी है.

  • कीटनाशक व खरपतवार नाशक रसायन, पर्यावरण व स्वास्थ्य दोनों पर हानिकारक प्रभाव छोड़ते हैं तथा बाजार में नकली माल की भरमार होने से किसान का धन खर्च होने पर भी रोग कीट नियन्त्रण नहीं होता है और कर्ज का बोझ बढ़ता है. जैविक कीट नियन्त्रण हानि रहित व कम लागत में हो जाता है.

  • जलवायु परिवर्तन की दशा में भी स्थानीय प्रजाति की फसले व जैविक प्रबन्धन से उत्पादन में स्थायित्व लाया जा सकता है.

  • अतः भविष्य के विकास संभावनाओं को देखते हुऐ प्रकृति मित्र जैविक खेती ही एक मात्र विकल्प संबंध नजर आता है

जैविक उत्पाद की मांग

जैविक उत्पादों की माँग घरेलु व विदेशी दोनों बाजारों में बढ़ रही है विदेशों में उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए ज्यादा जागरूक है अतः वहाँ माँग ज्यादा है. देश के भीतर भी अप्रमाणिक जैविक उत्पाद ‘‘देशी’’ के प्रचलित नाम से सम्पूर्ण बाजार में उपलब्ध हैं. इन उत्पादों की लागत कम कर विक्रय कैसे बढ़ाया जाये ताकि जैविक पुनः जन-जन का आहार बन सके इसी का प्रयास करने की आवश्यकता है. अधिक पैदावार की बजाय गुणवत्ता बढ़ाने व कटाई से बाजार तक की हानियों को कम करने की तकनीक अपनाना भी जरूरी है.

चूँकि पश्चिमी देशों में साक्षरता और जागरूकता दोनों ही अच्छी है इसलिये वहाँ इसकी माँग प्रतिवर्ष 25-40 प्रतिशत तक बढ़ रही है. भारत में भी माँग बढ़ने का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि भारत सरकार के विभाग ‘‘एपीडा’’ ने जैविक खेती का चिन्ह जारी किया है कई योजनायें चलाई है देश के कई बड़े-बड़े व्यवसाइयों ने भी किसानों से अनुबंध करके जैविक खेती शुरू करी है. यदि उपभोक्ता की पसंद का प्रत्यक्ष प्रमाण देखना हो तो किसान को अपने मिलने वाले व्यापारी व अन्य लोगों के बीच यह घोषणा करके देखें कि इस बार गेहूँ-चावल या अन्य कोई खाद्य उसके खेत पर जैविक खेती से तैयार किया जायेगा. उसका तात्कालिक असर यह होगा कि उत्पाद के खरीदने हेतु लोग अग्रिम सौदा करेंगें. रसायनिक खेती का गेहूँ जो 8-9 रुपये तक बिकता है जबकि जैविक खेती का गेहूं 12-15 रुपये किलो तक लोग खरीदने को तैयार हो जायेंगे यह स्वयं अनुभव करके की बात है.

जैविक खेती-कम लागत अधिक लाभ

जब रसायनिक खेती से जैविक खेती में भूमि को परिवर्तित किया जाता है तो मृत भूमि को जैविक खाद द्वारा जीवित करने में 1-2 वर्ष लगते हैं क्योंकि जैविक खाद धीरे-धीरे असर करती है. 1-2 वर्ष बाद सब कुछ रसायनिक खेती से कई गुना अच्छा हो जाता है. अर्थात् शुरू के 1-2 वर्ष उपज 70-80 प्रतिशत तक हो सकती है उसके बाद जैविक खेती में रसायनिक खेती की अपेक्षा उपज अधिक ही होगी और वह भी लम्बे समय तक. दूसरे जैविक खेती की लागत रसायनिक खेती से कम होती है क्योंकि:-

  • सभी आदान (खाद, बीज, कीट नियंत्रण आदि) किसान या ग्राम स्तर पर बनाये जाते हैं अतः बाजार में मिलने वाली रसायनिक उर्वरक व कीटनाशकों से लागत बहुत कम होती है उदाहरण के लिये एक किलोग्राम (30 रुपये) राइजोबियम कल्चर से 800 रुपये की यूरिया के बराबर जमीन में नत्रजन स्थापित होती हैं.

  • कई आदान जैसे खाद, कीट नियंत्रक आदि पशु अपशिष्ट या फसल अवशेष से बनाये जाते हैं जिनके लिये अलग से कीमत नहीं देनी होती है.

  • जैविक खेती के उत्पादों का बाजार में 10-25 तक अधिक मूल्य मिलता है अतः लागत कम व मूल्य अधिक होने से इकाई क्षेत्र से लाभ अधिक होता है.

जैविक खेती के उत्पाद को उपभोक्ता की पसंद कैसे बनाया जायें?

सूचना माध्यमों की उपलब्धता से आजकल उपभोक्ता में भी जागरूकता बढ़ी है और आज हर जागरूक व्यक्ति जानने लगा है कि रसायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रयोग से पैदा हुआ उत्पाद स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है. आज अक्सर लोग यह कहते हुए मिलते हैं कि उर्वरक से पैदा किये अनाज, फल सब्जी में स्वाद की कमी हो गयी हैं. सभी उत्पादों की मात्रा तो बढ़ी है पर गुणवत्ता घटी है. ऐसे समय में आज हर जागरूक उपभोक्ता यह चाहता है कि वह ऐसे खाद्य का प्रयोग करे जो उर्वरक-कीटनाशक के अवशेष से मुक्त हो अर्थात जैविक खेती से उत्पादित हो. फिर भी उपभोक्ता की पंसद को समझते हुऐ उत्पाद में सफाई ग्रेडिंग और सुन्दर पैकिंग करने से जैविक उत्पाद के मूल्य सामान्य से कई गुणा ज्यादा तक प्राप्त हो सकते हैं.

अधिक माँग वाले जैविक उत्पाद

वैसे तो जितनी भी खाद्यान्न वस्तुऐं जैविक खेती से उत्पादित होती हैं उन सभी की कम-ज्यादा माँग बाजार में रहती है इसमें भी फल और सब्जियों की माँग ज्यादा रहती है क्योंकि उनमें रसायनों के अवशेष ज्यादा होते हैं. आज ज्यादातर जागरूक उपभोक्ता फल और सब्जियों को जैविक खेती से उत्पादित ही खरीदना पंसद करने लगे हैं.

उपरोक्त उत्पादों को सीधे या संसाधित कर जैसे आम का रस, केले का रस या सूखा केला आदि भी निर्यात किया जा रहा है. उपरोक्त फसलों के उत्पादन पर विशेष जोर दिया जा सकता है. एक अन्य क्षेत्र जिसमें माँग बहुत तेजी से बढ़ रही है वह है औषधिय पौधे. इनका जैविक विधि से उत्पादन इनकी गुणवत्ता को बहुत बढ़ा देता है और आने वाले समय में ये बाकी सारे उत्पादों के निर्यात के पीछे छोड़े देंगे. औषधीय पौधों के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय बाजार को देखते हुए सन् 2001 में भारत सरकार ने औषधीय पादप बोर्ड की स्थापना की है और यह बोर्ड भी औषधीय पौधों की जैविक खेती को ही बढ़ावा देने में प्रयासरत है. औषधीय पौधों को रसायनिक खेती से अमृत की बजाय विष बनाने से बचाने के लिये यह आवश्यक है कि औषधीय पौधों की खेती सदैव जैविक विधि से ही की जाये.

जैविक खेती का बढ़ता क्षेत्रफल

वर्तमान में लगभग 36 लाख हेक्टेयर कृषि (2018-19) क्षेत्र में प्रमाणित जैविक खेती हो रही है. इसमें 13 लाख किसान सहयोगी है. जैविक उत्पादों का निर्यात 4700 करोड़ रू. का होता है. यह प्रतिवर्ष 10-15 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. इसका मुख्य उद्देश्य निर्यात हेतु जैविक उत्पाद तैयार करना है. इसके अलावा देश का लगभग 60 प्रतिशत कृषि क्षेत्र, जो मुख्यतः बारानी इलाकों में है जहां मृदा व जलवायु कारकों से किसान रसायनिक उर्वरक व कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाय परंपरागत तरीके से खेती करना ज्यादा उचित समझते हैं इस तरीकों को अप्रमाणित जैविक खेती कहते है तथा इसका भी क्षेत्र बढ़ रहा है पर्यावरण सुधार, छोटे किसान व देश की मांग को पूरा करने हेतु यह तरीका ज्यादा उपयुक्त है, किन्तु इसकी उत्पादकता बढ़ाने के लिये विज्ञान की प्रकृति मित्र तकनीकों का समन्विता प्रयोग करना आवश्यक है.


निर्यात बाजार

जैविक कृषि निर्यात बाजार भारत में जैविक कृषि का एक प्रमुख संवाहक है. भारत 31 जैविक उत्पादों का निर्यात करता है. ऐसा अनुमान है कि उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश से जंगली जड़ी-बुटियों को छोड़कर कुल जैविक उत्पादन का 85 प्रतिशत से अधिक हिस्सा निर्यात किया जाता है. भारत चाय के निर्यातक के रूप में काफी प्रसिद्ध हैं और कई अन्य उत्पादों की भी अच्छी निर्यात संभवतः है. अन्य जैविक उत्पादों, जिनके लिए भारत के पास एक प्रमुख बाजार है, में मसाले तथा फल शामिल है. चावल, कपास, सब्जी, कॉफी, काजू, तिलहन, गेंहू तथा दलहन की भी अच्छी मांग है. फल फसलों में केला, आम तथा संतरा सबसे पसंदीदा जैविक उत्पाद है.

 निर्यात महत्व की मुख्य जैविक मदों में फल एवं सब्जियां, तिल, बासमती चावल, फल गुदा, फल का रस, मसाले, काजू, चाय, कपास तथा गेंहू शामिल है. भारत को इनमें से अधिकांश उत्पादों में उत्पादन बढत प्राप्त है. विश्व का 50 प्रतिशत (77000 मी.टन) जैविक कपास का भारत उत्पादन कर विश्व में प्रथम स्थान पर है. देशी मांगः बाल्यावस्था में है किन्तु इसमें भरी वृद्धि संभावना है. वर्तमान में जैविक उत्पादों के लिए देशी मांग 12000 टन अनुमानित है और जैविक कृषि उत्पाद के लिए लगभग 2-3 मिलियन संभाव्य ग्राहक है और यह संख्या बढ़ रही है.

आयातक देशों में जैविक उत्पादों निर्यात मानक

विश्व में मुख्यतः तीन तरह के मानक हैं यूरोप, अमरीका और जापान जिनमें थोड़ा ही अंतर है, अतः प्रमाणीकरण कराते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस देश को निर्यात करना है वहां का मानक क्या हैं व कौन-सी प्रमाणीकरण संस्था को उस देश में मान्यता है. सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकांश मानक में खेती के लिये बनाये गये मानकों में विशेष अन्तर नहीं हैं. मानको का मुख्य अंतर प्रसंस्करण और खेत के बाद के रख रखाव व पैकिंग आदि से सम्बन्धित है. हमारे देश के लिये बनाये गये मानकों में उपरोक्त सभी मानकों का बहुत अच्छा समिश्रण हैं और इन मानकों के आधार पर उत्पादन करने से देश, विशेष की आवश्यकता के अनुसार थोड़ा फेर बदल करके निर्यात किया जा सकता है. यूरोप के फाइटोसेनेटरी मानक के लागू होने के बाद सिर्फ जैविक उत्पाद का ही निर्यात संभव हो सकेगा.

जैविक खेती के उत्पादों का अच्छा मूल्य मिलना संभव

प्रमाणीकरण उपभोक्ता को दिलाया जाने वाला लिखित विश्वास है जिसके आधार पर उपभोक्ता बिना उत्पादक से सीधा संपर्क किये यह विश्वास कर सकता है कि वह जो उत्पाद खरीद रहा है, उसका उत्पादन जैविक खेती के मानकों के अनुसार ही हुआ है. यह लिखित विश्वास उन उपभोक्ताओं और आयतकों के लिये उपयोगी है जो दूसरे देशों में रहते है और हमारे देश में आकर उत्पादन को देख पाना व्यवहारिक नहीं है. अतः निर्यात के लिये बनाये गये उत्पादों का प्रमाणीकरण एक आवश्यकता हो सकती है किन्तु हमारे अपने देश के एक अरब उपभोक्ताओं को बिना प्रमाणीकरण के भी विश्वास पैदा किया जा सकता है. यह विश्वास निम्न उपायों को काम में लेकर पैदा किया जा सकता हैः-

  • विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को उत्पादन की प्रक्रिया दिखाकर.

  • सबसे पहले उन्हें उपभोक्ता बनाकर, जिनका आप पर विश्वास हो ताकि वे दूसरों को विश्वास दिलाने में सहायक हों.

  • सहकारी संघ बनाकर जिससे उस संघ के सभी किसान जैविक खेती करें और प्रचार किया जाये कि इस संघ के सभी उत्पाद जैविक विधि से तैयार किये जाते हैं. किसी एक किसान की बजाय संघ या संस्था पर उपभोक्ता को विश्वास करना आसान रहता है.

  • 4. बारानी क्षेत्रों में उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग बहुत कम होता है अतः वहां के उत्पादक इस बात का प्रचार कर सकते हैं कि उनके उत्पाद सिंचित क्षेत्रों के उत्पादों की अपेक्षा अधिक सुरक्षित हैं देश के 60% भाग में बारानी खेती ही होती है और वहां के किसान रसायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों के प्रयोग को बन्द कर बहुत शीघ्र ही बाजार और उपभोक्ता दोनों में विश्वास पैदा कर सकते हैं.

बड़े उत्पादकों के यहां उत्पादन भी अधिक होता है और इसलिये उन्हें अधिक उपभोक्ता ढूंढने पड़ते है और वे प्रमाणीकरण द्वारा अधिक उपभोक्ताओं तक कम से कम समय में पहुंच सकते है दूसरे वे प्रमाणीकरण का खर्च भी वहन कर सकते हैं. छोटे किसान का उत्पादन भी कम होता है अतः कम उपभोक्ता ढूंढने पड़ते है और प्रमाणीकरण का खर्च भी वहन नहीं कर सकते. चूंकि प्रमाणीकरण में भी 3-4 वर्ष लगते है और यदि छोटे किसान व्यक्तिगत संपर्क द्वारा अपने सीमिति उपभोक्ताओं में विश्वास पैदा करने में लगाये तो अवश्य ही सफलता मिलेगी. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में किसान जैविक खेती से उत्पादित फल सब्जियों को स्वयं मण्डी में अलग दुकान लगाकर बेचते है ओर उनका उत्पाद बहुत शीघ्र ही बिक जाता है इस प्रकार धीरे उनकी पहचान बन रही है. खादी भण्डार भी देशी आहार के नाम से इसी प्रकार जैविक उत्पादों का महानगरों में विक्रय कर रहा है. विश्वास पैदा करने में 2-3 वर्ष लगते है और उतना ही समय प्रमाणीकरण में, क्यों न छोटे और मध्यम किसान विश्वास पैदा करने का तरीका अपनाये जो न केवल सस्ता है वरन् खरीददार भी सुनिश्चित करता है और खेती को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाता है.  

लेखक:
अरूण के. शर्मा
वरिष्ठ वैज्ञानिक
केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर (राजस्थान)342008
ई-मेलः[email protected]
मोबाईलः- 09414172436

English Summary: Organic product demand from Chaupal to the world market Published on: 08 March 2021, 05:37 PM IST

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