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जैविक खेती और बागवानी के सहारे उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया जा सकता है. अगर राज्य के तीन मैदानी जिलों को छोड़ दें तो राज्य के ज्यादातर किसान लघु और मझोले किसान की श्रेणी में ही आते हैं. ऐसे में जैविक खेती इन किसानों की आय में वृद्धि कर सकती है. इसीलिए उत्तराखंड राज्य को जैविक बनाने हेतु राज्य सरकार की ओर से अहम फैसला लिया गया है. दरअसल 13 नवंबर को हुई कैबिनेट बैठक में उत्तराखंड जैविक कृषि विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी गई. जिसे आगामी विधानसभा सत्र में पेश कर पारित किया जाएगा. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, राज्य के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत मौजूदा वक्त में 2 लाख एकड़ जमीन में जैविक खेती की जा रही है. इसके अंतर्गत 10 ब्लाकों को जैविक ब्लॉक घोषित किया जाएगा. पहले चरण में इन ब्लॉकों में किसी भी तरह के केमिकल, पेस्टीसाइट, इन्सेस्टिसाइट बेचने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाएगा.
उन्होने आगे बताया, जैविक ब्लॉक में रासायनिक या सिंथेटिक खाद, कीटनाशक, खरपतवार नाशक या पशुओं को दिए जाने वाले चारे में रासायनिक खादों के इस्तेमाल पर रोक लगेगी. ऐसे में यदि कोई किसान इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसके लिए 1 साल के जेल और एक लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. 10 चिन्हित ब्लॉक में यदि ये प्रयोग सफल रहता है तो इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा . गौरतलब है कि कृषि मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि जैविक कृषि विधेयक का उद्देश्य राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देना और जैविक उत्तराखंड के ब्राण्ड को स्थापित करना है. ताकि राज्य के उत्पादों को देश-विदेश में मान्यता मिल सके.
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इसके साथ ही, जिन जैविक उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) केंद्र सरकार ने घोषित नहीं किया है, उत्तराखंड सरकार उनकी एमएसपी घोषित करेगी. ऐसा करने वाला उत्तराखंड राज्य देश का पहला राज्य होगा. किसान को अपने जैविक उत्पाद बेचने में दिक्कत न आए उसके लिए भी व्यवस्था की गई है. मंडी परिषद में रिवॉल्विंग फंड जनरेट करने का फैसला लिया गया है. फंड के ज़रिये मंडी परिषद किसानों के जैविक उत्पाद को खरीदेगी और उसकी प्रोसेसिंग करने के बाद मार्केटिंग करेगी. इससे होने वाला लाभ किसानों में बांटा जायेगा. सर्टिफाइड होने पर जैविक उत्पादों की कीमत बढ़ जाती है और उसे ब्रांड के रूप में स्थापित किया जा सकता है.
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