भारत और दुनिया के तमाम देशों में जैतून के तेल की भारी मांग है इसलिए भारत में अगर जैतून की बागवानी की जाए तो अर्थव्यवस्था को लाभ होने के साथ-साथ किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी. जहां एक तरफ जैतून का इस्तेमाल प्रीमियर खाद्य तेलों को बनाने में किया जाता है तो वहीं यह सौन्दर्य प्रसाधनों और दवाइयों के निर्माण में भी बहुत उपयोगी है. इतना ही नहीं, इसके तेल का इस्तेमाल हर शाही रेस्त्रांओं में किया जाता है जिसकी वजह से इसके दाम भी ऊंचे होते हैं. साथ ही जैतून फल का इस्तेमाल स्वादिष्ट व्यंजन बनाने में भी किया जाता है. वहीं जैतून का तेल कैंसर और पेट संबंधी बीमारियों में लाभदायक है क्योंकि इसमें एंटी आक्सीडेंट, विटामिन, एओलिक एसिड और फिनोल काफी मात्रा में पाए जाते हैं. इसके अलावा कोलेस्ट्रोल नियंत्रण और हार्ट संबंधित बीमारियों में भी यह कारगर है. पहले भारत में जैतून की बागवानी या खेती नहीं होती थी लेकिन अब यहां भी इसकी बागवानी करना संभव हुआ है. ऐसे में जैतून की बागवानी फायदे का सौदा हो सकता है. चलिए जानते हैं कि भारत में जैतून की बागवानी कैसे करें.
भारत में कहां होती है जैतून की बागवानी ?
वैसे तो दुनिया के कई देशों में जैतून की बागवानी की जाती है लेकिन भारत में राजस्थान के कुछ जिलों में इसका उत्पादन हो रहा है. आने वाले दिनों में राजस्थान के बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू और जैसलमेर जिलों में 200 हैक्टेयर में जैतून की खेती का लक्ष्य है. अन्य जिलों में प्रायोगिक तौर पर इसकी खेती की जा सकती है.
जैतून की बागवानी के लिए जलवायु (Climate for Olive Cultivation)
समुद्र तल से 650-2300 मीटर की ऊंचाई पर जैतून की बागवानी सफलतापूर्वक की जा सकती है. वैसे तो यह एक सदाबहार पौधा लेकिन फल की पैदावार के लिए पतझड़ी पौधों की तरह 400-2000 शीत घंटो की आवश्यकता होती है. जैतून का पौधा 12.2 डिग्री सेल्सियस तापमान सहन करने में सक्षम है. 15-20 डिग्री सेल्सियस तापमान में इसकी अच्छी पैदावार ली जा सकती है. कम तापमान इसके पौधों को नुकसान पहुंचाता है. साल में 100-120 सेमी. बारिश इसके लिए आदर्श है. बसंत ऋतु से पहले पड़ने वाला पाला इसकी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है.
जैतून की बागवानी के लिए कौनसी भूमि/मिट्टी चाहिए? (Selection of land for Olive Cultivation)
इसकी खेती के लिए 6.5 से 8.0 क्षारीय और अम्लीय पीएच मान वाली मिट्टी उपयुक्त है. इसके पौधे के विकास के लिए गहरी, उपजाऊ मिट्टी चाहिए. वहीं इसका पौधा बोरोन, कैल्शियम क्षारीय मिट्टी में ठीक से ग्रोथ करता है लेकिन उपज कम मिलती है. सख्त मिट्टी में इसके पौधे ग्रोथ नहीं कर पाते हैं. इसलिए सख्त मिट्टी वाली जमीन में इसकी खेती ना करें तो ठीक रहेगा.
जैतून की बागवानी के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for Olive Cultivation)
वैसे तो जैतून की कई किस्में मौजूद है लेकिन कुछ उन्नत किस्मों इस प्रकार हैं:
फ्रटियो- जैतून की इस किस्म में तेल की 26 फीसदी मात्रा होती है. वहीं इसके हर पौधे से 15-20 किलो की उपज होती है. देर से पकने वाली इस किस्म का फल आकार में मध्यम, शीर्ष गोलाकार होता है. पकने के बाद इसका फल बैंगनी रंग का हो जाता है.
कोराटीना- जैतून की कोराटीना किस्म के प्रत्येक पौधे से 10-15 किलोग्राम की पैदावार ली जा सकती है. तेल की मात्रा 22-24 प्रतिशत होती है. इस किस्म का फल देखने में बैंगनी और मध्यम आकार का होता है. यह किस्म अनियमित पैदावार देने के लिए जानी जाती है.
लैक्सिनो- देर से पकने वाली इस किस्म से प्रति पौधे से 10 से 15 किलो की पैदावार ली जा सकती है. इसका फल मध्यम आकार का और अंडाकार होता है. पकने के बाद इसका फल बैंगनी रंग का दिखाई देता है. यह फैलावदार प्रवृत्ति का पौधा है इस वजह से इसकी कांट छाट में विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है..
एस्कोटिराना- जैतून की इस किस्म से काफी अच्छी पैदावार ली जा सकती है. इसके एक पौधे से करीब 20 से 25 किलो जैतून प्राप्त हो सकता है. इसका फल मध्यम आकार और पकने के बाद बैंगनी रंग का होता है.
एस्कोलानो- इस किस्म का फल अधिक वजनदार और बड़े आकार का होता है. जो पकने के बाद बैंगनी रंग का दिखाई देता है. प्रति पौधे से 7 से 10 किलो की पैदावार होती है. इसके फल में 10 से 17 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है.
पैंडोलीनो- जैतून की इस किस्म के फल में 20 प्रतिशत तक तेल की मात्रा होती है. देर से पकने वाली इस किस्म का फल आकार में मध्यम और पकने के बाद बैंगनी रंग का होता है. इनके अलावा भी जैतून की कई अन्य किस्में हैं जैसे: कोरनियकी, बरेनिया, अरबिकुना, फिशोलिना और पिकवाल आदि.
जैतून की बागवानी के लिए परागण (Pollination for Olive Cultivation)
गुणवत्तापूर्ण और अधिक पैदावार के लिए परागण की मात्रा 11 प्रतिशत होना चाहिए. अच्छे परागण वाली प्रमुख किस्मों में एस्कोलानो, कोराटिना, फ्रंटियो और एस्कोटिराना है.
जैतून की बागवानी के लिए पौधा रोपण (Planting for Olive Cultivation)
उपजाऊ मिट्टी में पौधे से पौधे की दूरी 8 मीटर रखनी चाहिए. वहीं कम उपजाऊ भूमि में पौधे से पौधे की दूरी 6 मीटर रखें. इसके पौधों का रोपण जुलाई से अगस्त महीने में किया जाता है. सिंचाई की सुविधा होने पर दिसंबर से जनवरी माह में पौधे लगाए. पौधों के रोपण के बाद एक हल्की सिंचाई जरूर करें.
जैतून के पौधों की कटाई और छंटाई (pruning for Olive plant)
बरसात के समय जैतून के पौधों में फालतू की टहनियों का विकास हो जाता है अगर इनकी कटा-छांट ना हो ते पौधा झाड़ीनुमा हो जाएगा और दूसरे पौधों को प्रभावित करने के साथ-साथ अच्छे फल भी नहीं देगा. पौधों में निकलने वाले प्ररोह और रोग ग्रस्त शाखाओं को काट दें. छंटाई के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि फल वाले पौधों की कांट-छांट कम और ध्यानपूर्वक करें. वहीं इसके पौधों की सिधाई मौडिफाइड सैंट्रर लीडर विधि से करें.
रोग और रोकथाम (Disease and Pest Prevention)
एन्थ्रेक्नोज -यह रोग जैतून की पत्तियों और फलों पर लगता है. इस रोग के लगने पर पत्तियों में गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. वहीं फलों पर गोल आकार के भूरे रंग के गड्ढे बनने लगते है. जो बाद में काले धब्बों में तब्दील हो जाते हैं. इसके उपचार के लिए अनुशंसित कीटनाशकों को उपयोग करें.
जैतून की तुड़ाई (Fruit harvesting for Olive)
जैतून के फलों को तुड़ाई 4 से 5 पांच बार की जाती है. दरअसल, इसके पौधों में फल एक साथ नहीं पकते हैं. पेड़ों के नीचे कपड़ा या पॉलिथीन बिछाकर फलों को हाथ या डंडे से तोड़ना चाहिए.
जैतून की उपज या पैदावार (Yield of Olive)
एक हेक्टेयर में जैतून के तकरीबन 475 पेड़ लगाए जा सकते हैं. जिससे औसतन 20 से 27 क्विंटल तेल का उत्पादन होता है जो कि अन्य तिलहनी फसलों से काफी ज्यादा है.
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