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आज के समय में उन्नत फसलों के लिए किसान रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में पहले से कहीं आगे आ चुके हैं. साथ ही जब कई शोधों के बाद इनसे होने वाली हानियों के बारे में पता चला तो हमने इसको रोकने के भी कई प्रयास किए. आज के समय में भारत सरकार से लेकर कई अन्य कृषि शोध संस्थाएं भी उर्वरक के समाधान को खोजने में लगे हुई हैं. यही कारण है कि लोग आज फिर से प्राकृतिक खेती और जैविक खाद की तरफ अपने रुझानों को बढ़ा रहे हैं. ऐसा ही छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में देखने को मिला. पहले की अपेक्षा अब वे बहुत कम मात्रा में ही रासायनिक उर्वरकों पर अपनी निर्भरता को बनाए हुए हैं.
सरकारी खपत में 90 प्रतिशत तक की कमी
बिलासपुर के किसानों ने अब प्राकृतिक खेती के प्रति अपनी खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है. अगर सरकारी सूत्रों की मानें तो रसायनिक उर्वरक की सरकारी खपत में 90 प्रतिशत तक की कमी आई हुई है. अधिकारियों ने बातचीत के दौरान बताया कि 80 से 90 लाख रुपये की खाद की बिक्री होती थी लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा घट कर केवल 10 से 12 लाख पर पहुंच गया है.
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प्राकृतिक खेती के मॉडल के तहत प्रशिक्षण
बिलासपुर की 176 पंचायतों में प्राकृतिक खेती के मॉडल के तहत प्रशिक्षण किसानों को इस खेती को करने के सभी तरीकों के बारे में पूरी तरह प्रशिक्षित किया जाता है. अभी तक इन प्राकृतिक खेती के मॉडल के तहत प्रशिक्षित किसानों की संख्या 11,230 हो चुकी है. अब यह किसान रासायनिक खेती के स्थान पर प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं.
उत्पादों की बिक्री के लिए पोर्टल लांच
सरकार किसानों के हित और किसानों की दोगुनी आय के मिशन के तहत कई तरह की योजनाओं का संचालन कर रही है. किसानों के द्वारा बनाये जा रहे उत्पादों का उनको सही दाम मिल सके इसके लिए भी सरकार ने एक पोर्टल को लांच किया है.
जिसका नाम सितारा पोर्टल रखा गया है. अभी तक इस पोर्टल पर 3104 किसानों ने पंजीकरण कराया है.
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