जब दुनियाभर साल 2020 में कोरोना महामारी और लॉकडाउन की मार झेल रहा था, तब संयुक्त अरब अमीरात में खेती को लेकर एक बड़ा प्रयोग पूरा हो रहा था. यह प्रयोग बहुत ही खास और अनोखा है, जिससे देश के हर किसान को जानना चाहिए और इसकी जानकारी हर किसान भाईयों तक पहुंचाने के लिए हम ये लेख लिख रहे हैं. दरअसल, इस तकनीक की मदद से मात्र 40 दिनों के अंदर बंजर ज़मीन का एक टुकड़ा मीठे रसीले तरबूजों से भर दिया गया है.
वो भी एक ऐसे देश के लिए, जो ताज़े फल और सब्जियों की ज़रूरत का 90 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है. यह एक खास उपलब्धि है, जिसमें मात्र मिट्टी और पानी मिलाने से अरब का सूखा तपता रेगिस्तान रसीले फलों में तब्दील हो गया. यह करना पाना आसान नहीं था, लेकिन यह "नैनोक्ले तकनीक" (Nanoclay Technology) की मदद से मुमकिन हुआ. दरअसल, मिट्टी को दोबारा उपजाऊ बनाने की इस तकनीक की कहानी यहां से 1,500 मील (2,400 किलोमीटर) पश्चिम में 2 दशक पहले शुरू हुई थी. 1980 के दशक में मिस्र में नील डेल्टा के एक हिस्से में पैदावार घटने लगी थी.
क्यों घटी पैदावार? (Why the reduced yields?)
गर्मियों के मौसम में हर साल नील नदी में बाढ़ आती है, जो मिस्र के डेल्टा में फैल जाती है. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जब बाढ़ का पानी अपने साथ खनिज, पोषक तत्व और पूर्वी अफ्रीका के बेसिन से कच्ची मिट्टी के कण लेकर आता है, तो पूरे डेल्टा क्षेत्र में फैल जाता था. वहां की ज़मीन को कीचड़ के ये बारीक कण उपजाऊ बनाते थे. फिर लो कण ग़ायब हो गए, क्योंकि 1960 के दशक में दक्षिणी मिस्र में नील नदी पर असवान बांध बनाया गया था. इस बांध ने बाढ़ के साथ आने वाले पोषक तत्वों को रोक लिया था.
क्या है नैनोक्ले तकनीक? (What is nanoclay technology?)
इस तकनीक का विकास नॉर्वे की कंपनी डेज़र्ट कंट्रोल द्नारा किया गया है. इसके मुख्य कार्यकारी ओले सिवर्त्सेन का कहना है कि यह वैसा ही है, जैसा आप अपने बगीचे में देख सकते हैं. किसान हजारों साल से कीचड़ का इस्तेमाल करके पैदावार बढ़ा रहे हैं, लेकिन भारी, मोटी मिट्टी के साथ काम करना ऐतिहासिक रूप से बहुत श्रम-साध्य रहा है. इससे भूमिगत पारिस्थिति को काफी नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि हल जोतने, खुदाई करने और मिट्टी पलटने से भी पर्यावरण को नुकसान होता है.
ऐसे काम करती है नैनो क्ले तकनीक (This is how nanoclay technology works)
इस तकनीक में फफूंद मिट्टी के खनिज कणों से जुड़ते हैं, साथ ही वह मृदा संरचना बनाए रखते हैं और क्षरण सीमित करते हैं. जब मिट्टी खोदने से संरचनाएं टूट जाती हैं और उन्हें दोबारा तैयार होने में समय लगता है, तब तक मिट्टी को नुकसान पहुंचने और पोषक तत्व ख़त्म होने की आशंका रहती है. इसके अलावा रेत में कच्ची मिट्टी का घोल कम मिलाएं, तो उसका प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन अगर इसे अधिक मिला दें, तो मिट्टी सतह पर जम सकती है. परीक्षण के बाद एक सही मिश्रण तैयार किया गया, जिसे रेत में मिलाने से जीवन देने वाली मिट्टी में बदल जाती है. उनका कहना है कि हर जगह एक ही फॉर्मूला नहीं चलता. हमें चीन, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान में 10 साल के परीक्षण ने सिखाया है कि हर मिट्टी की जांच कराना ज़रूरी है, ताकि सही नैनो क्ले का नुस्खा आजमा जा सके.
मिट्टी के घोल का संतुलन (Balance of soil solution)
नैनो क्ले रिसर्च द्वारा एक ऐसा संतुलित तरल फॉर्मूला तैयार किया गया है, जिससे स्थानीय मिट्टी के बारीक कणों में रिसकर पहुंच सके. मगर वह इतनी तेज़ी से न बह जाए, कि पूरी तरह खो जाए. इसका उद्देश्य पौधों की जड़ से 10 से 20 सेंटीमीटर नीचे की मिट्टी तक पहुंचना होता है.
आपको बता दें कि यह तकनीक क़रीब 15 साल से विकसित हो रही है, लेकिन पिछले एक साल से व्यावसायिक स्तर पर काम किया जा रहा है. सिवर्त्सेन का कहना है कि अब हमारे पास इसके वैज्ञानिक प्रमाण हैं. हम 40 फीट (13 मीटर) के कंटेनर में कई मोबाइल मिनी फैक्ट्रियां बनाना चाहते हैं. ये मोबाइल इकाइयां स्थानीय तौर पर तरल नैनोक्लो तैयार करेंगी, जिससे देश की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाएगा. बता दें कि इस तरह की पहली फैक्ट्री एक घंटे में 40 हजार लीटर तरल नैनो क्ले तैयार कर देगी. इसका उपयोग संयुक्त अरब अमीरात के सिटी पार्कलैंड में होगा. खास बात है कि इस तकनीक की मदद से करीब 47 प्रतिशत तक पानी की बचत हो पाएगी.
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