खीरे की खेती देशभर में की जाती है. इसकी खेती रबी, खरीफ और जायद तीनों सीजन में की जाती है. हालांकि, गर्मी के मौसम में इसका बाज़ारों में बहुत ज्यादा मांग होती है, क्योंकि इसमें पानी की मात्रा ज्यादा पायी जाती है. ऐसे में आइये खीरे की उन्नत खेती कैसे करें, उसके तरीके के बारे में जानते हैं-
मिट्टी -
खीरे को रेतीली दोमट मिट्टी से लेकर भारी मिट्टी तक विभिन्न प्रकार की मिट्टी में बोया जा सकता है. लेकिन खीरे की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी वो होती है जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो और जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो. खीरे की खेती के लिए पीएच 6-7 के बीच सबसे उपयुक्त होता है.
भूमि की तैयारी-
खीरे की खेती के लिए भूमि का अच्छी तरह से तैयार और खरपतवार मुक्त होना चाहिए. मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए रोपण से पहले 3-4 जुताई कर लेनी चाहिए. इसके बाद खेत को समृद्ध करने के लिए मिट्टी में गोबर मिलाया जाता है. फिर नर्सरी बेड 2.5 मीटर की चौड़ाई और 60 सेमी की दूरी पर तैयार कीया जाता है.
बुवाई-
खीरे की बुवाई फरवरी - मार्च के महिने में की जाती है. प्रति बेड 2.5 मीटर चौड़ी जगह पर दो बीज बोएं और बीजों के बीच 60 सेमी की दूरी का दूरी रखें. बीजों को 2-3 सेमी की गहराई पर बोया जाता है. इसकी खेती सुरंग तकनीक से की जाती है. इस तकनीक का उपयोग गर्मियों की शुरुआत में खीरे की जल्दी उपज पाने के लिए किया जाता है. यह फसल को ठंड के मौसम यानी दिसंबर और जनवरी के महीने में बचाने में मदद करता है.
दिसंबर के महीने में 2.5 मीटर चौड़ाई के क्यारियां बनाकर बीज को बोया जाता है. बीज को क्यारी के दोनों ओर 45 सें.मी. की दूरी पर बोया जाता है. बुवाई से पहले मिट्टी में 45-60 सेमी लंबाई की सहायक छड़ें लगाई जाती हैं. सपोर्ट रॉड की मदद से खेत को प्लास्टिक शीट जो कि 100 गेज मोटाई की हो से ढक दिया जाता है. प्लास्टिक शीट को मुख्य रूप से फरवरी के महीने में हटा देना चाहिए. जब तापमान बाहर उपयुक्त हो. इसके साथ ही खीरे की बुवाई कई अन्य और तकनीक से भी की जाती है जैसे कि डिब्लिंग विधि, आधार विधि एंव रिंग विधि में लेआउट.
बीज-
बीज को बोने से पहले उन्हें रोग और कीटों से बचाने के लिए रसायनिक कैप्टन 2 ग्राम से उपचारित करना चाहिए.
खाद-
खीरे की उच्छी उपज प्राप्त करने के लिए हमें खेत में 20-25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलानी चाहिए. इसमें खाद की मात्रा े बहुत आवश्यक होती है.
नाईट्रोजन की 1/3 मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय दी जाती है. 1/3 नाईट्रोजन पौधों में 4-5 पत्तियों की अवस्था पर दी जाती है तथा 4/5 नाईट्रोजन की मात्रा उसके फल आने की प्रारम्भिक अवस्था पर दी जाती है.
खरपतवार नियंत्रण-
निराई-गुड़ाई से खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है और रासायनिक रूप से भी नियंत्रित किया जा सकता है. इसमें रसायन ग्लाइफोसेट का उपयोग 1.6 लीटर प्रति 150 लीटर पानी के साथ करें. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि ग्लाइफोसेट का प्रयोग केवल खरपतवारों पर करें न कि फसल के पौधों पर.
सिंचाई-
गर्मी के मौसम में इसमें बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है और बरसात के मौसम में इसमें सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. कुल मिलाकर इसे 10-12 सिंचाई की आवश्यकता होती है. बुवाई से पहले पूर्व सिंचाई की आवश्यकता होती है फिर बुवाई के 2-3 दिनों के बाद बाद की सिंचाई की आवश्यकता होती है, दूसरी बुवाई के बाद 4-5 दिनों के अंतराल पर फसलों की सिंचाई करें. इस फसल के लिए ड्रिप सिंचाई बहुत उपयोगी होती है.
तुड़ाई एंव उपज-
इसकी बुवाई के दो महीने बाद ही इसमें फल लगना शुरु हो जाते हैं, और जब फल पूरी तरह से मुलायम एंव पूर्ण रुप से अपने आकार में आ जाए तब इन्हें सावधानीपूर्वक डंगाल से तोड़ लेना चाहिए
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