यह सिंचाई की एक आधुनिक विधि है. सिंचाई की इस बीच में पानी पौधों को उनकी आवश्यकता अनुसार बूंद-बूंद करके पौधों के पास दिया जाता है. इस विधि का प्रयोग फल फूलों तथा सब्जी की फसलों के लिए अति उत्तम माना जाता है. ऐसे क्षेत्रों जहां पर सिंचाई के पानी की कमी हो, भूमि रेतेली हल्की अथवा दोमट किस्म की हो वहां पर इस विधि से सिंचाई करने से लाभ होता है.
ड्रिप सिंचाई के द्वारा पौधों को पानी प्लास्टिक पाइप ऊपर पौधों के पास डिपर लगा कर दिया जाता है. डिपर को पानी भाव की गति की दिशा की पानी की आवश्यकता अनुसार 2 से 10 लीटर प्रति घंटा की जा सकती है. इस बीच में पानी स्रोत से पंप द्वारा फिल्टर से होता हुआ मुख्य पाइप लाइन तथा द्वितीय लेटर लाइनों में जाता है. द्वितीय लाइनों में पानी का दबाव डिपर के आधार पर दशमलव 2 से 1 पॉइंट 75 किलोग्राम सेंटीमीटर तक हो सकता है। मुख्य लाइन में दबाव का अंतर ऊपरी तथा निचले शुरू में 10% से अधिक तथा लेटर लाइनों में 20% से अधिक होना चाहिए.
ड्रिप सिंचाई के लाभ
कम पानी से अधिक क्षेत्र में सिंचाई की जा सकती हैं .
सिंचाई के अन्य तरीकों से इसमें कम पानी की आवश्यकता होती है अर्थात पानी की बचत की जा सकती है.
अधिक उत्पादन अच्छी गुणवत्ता एवं फसल जल्दी तैयार हो जाती है.
सिंचाई रात में या किसी भी समय आसानी से की जा सकती है.
सिंचाई में खारे पानी का उपयोग भी किया जा सकता है.
ऊंची नीची जमीन में सिंचाई आसानी से की जा सकती है.
रिटेलिंग में फसलों की सिंचाई के लिए अति उत्तम विधि है.
इस विधि से सिंचाई करने पर कम मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है.
खारे पानी के उपयोग से भी अच्छी उपज ली जा सकती है.
रासायनिक खादों तथा संतुलित उर्वरकों को भी आसानी से पौधों को दिया जा सकता है.
भूमि विकास एवं भूमि को समतल करने में होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है.
खेतों में कम खरपतवार होने से खरपतवार नियंत्रण रखना भी आसान होता है.
कार में कोई बाधा नहीं होती है.
सिंचाई के लिए नालियां एवं बड़े बनाने की आवश्यकता नहीं होती जिससे भूमिका अधिक से अधिक उपयोग किया जा सकता है.
इस विधि से सिंचाई करने पर मिट्टी खराब नहीं होती है.
फलदार वृक्षों के लिए यह विधि अच्छी होती है.
इस विधि से मिट्टी का कटाव नहीं होता प्रदूषण भी नहीं होता और फसल पर कम बीमारियां लगती हैं.
ड्रिप सिंचाई के लिए उपयुक्त फसलें
बागवानी एवं फलों की फसल
आम पपीता संतरा केला नींबू मौसमी अनार बेर अमरुद अंगूर एवं विभिन्न प्रकार के फूलों के बगीचे
सब्जी वाली फसलें
टमाटर गोभी बेल वाली सब्जियां बैंगन तथा मिर्च आदि
लेखक: प्रोफेसर एच एस भदौरिया राजमाता विजय राजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर
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