धान सिर्फ दरभंगा जिला का ही नहीं बल्कि पूरे बिहार राज्य की एक महत्वपूर्ण खरीफ फसल है. इस राज्य में धान का आच्छादन, उत्पादन एवं उत्पादकता क्रमशः 3.31 मिलीयन हेक्टेयर, 8.09 मिलीयन टन एवं 24.47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है जबकि धान का राष्ट्रीय आच्छादन, उत्पादन एवं उत्पादकता 43.77 मिलीयन हेक्टेयर, 112.76 मिलीयन टन एवं 25.76 क्विंटल प्रति हेक्टेयर क्रमशः है.
यदि इन आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो बिहार राज्य में धान की फसल की उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने की अपार संभावनाएं एवं संसाधन उपलब्ध है. राज्य में धान की उत्पादकता राष्ट्रीय उत्पादकता से कम होने का मुख्य कारक है - उचित प्रभेद के चुनाव का अभाव, विलम्ब से रोपाई, अनुशंसित पौधों/ कल्लों की संख्या प्रति वर्गमीटर में नहीं होना, असंतुलित एवं अपर्याप्त खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग, समय से एवं उचित विधि से खरपतवार नियंत्रण का अभाव, रोगों एवं कीटों के प्रकोप, गत् कई वर्षों से सामान्य से कम वर्षा एवं पटवन की लागत मूल्य बढ़ जाना इत्यादि.
अगर इस जिला /राज्य के किसान भाई-बहन धान की उन्नत एवं वैज्ञानिक पद्धति से खेती करें तो इस फसल की उत्पादकता में आशातीत वृद्धि हो सकती है. धान की उत्पादकता की कमी के उपरोक्त उल्लेखित विभिन्न कारकों में, वैज्ञानिक विधि से खरपतवार नियंत्रण का आभाव एक महत्वपूर्ण कारक है, इसलिए ससमय एवं उचित विधि से खरपतवार नियंत्रण किया जाए तो धान की उत्पादकता में 20 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती है. दोनों ही स्थिति में, नर्सरी हो या रोपित धान का खेत हो, खरपतवार एक बड़ी समस्या है.
ईकाईनोकलोवा क्रुसगेली (सांवक) एवं पेनिकम क्रुसगेली (छोटी सांवक), इस फसल के मुख्य खरपतवार हैं. नर्सरी में लगे धान के पौधे से, खरपतवार वृद्धि के कारकों के लिए न सिर्फ नकारात्मक प्रतिस्पर्धा करते है, अपितु देखने में समानता होने के कारण धान के पौधों के साथ मुख्य खेत में इनकी रोपाई भी हो जाती है.
अगर इन रोपित खरपतवारों को मुख्य खेत में नियंत्रित नहीं किया जाता है तो ये खेतों में बड़ी संख्या में बीज उत्पादित करते है और खेतों में बीज बैंक के रूप में पड़ें रहते हैं, जो अगले वर्ष बड़ी संख्या में अंकुरित होकर, धान के खेत को संक्रमित करते हैं एवं उत्पादकता को कम करने में मुख्य भूमिका अदा करते हैं. स्वस्थ बिचड़ा उत्पादन एवं खरपतवारों के बीज उत्पादन को रोकने के लिए, यह अति आवश्यक है कि धान के नर्सरी को खरपतवारों से मुक्त रखा जाए, जिसके लिए निम्न आवश्यक नियंत्रण विधि का अनुसरण करना चाहिए.
यदि इन आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो बिहार राज्य में धान की फसल की उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने की अपार संभावनाएं एवं संसाधन उपलब्ध है. राज्य में धान की उत्पादकता राष्ट्रीय उत्पादकता से कम होने का मुख्य कारक है - उचित प्रभेद के चुनाव का अभाव, विलम्ब से रोपाई, अनुशंसित पौधों/ कल्लों की संख्या प्रति वर्गमीटर में नहीं होना, असंतुलित एवं अपर्याप्त खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग, समय से एवं उचित विधि से खरपतवार नियंत्रण का अभाव, रोगों एवं कीटों के प्रकोप, गत् कई वर्षों से सामान्य से कम वर्षा एवं पटवन की लागत मूल्य बढ़ जाना इत्यादि.
अगर इस जिला /राज्य के किसान भाई-बहन धान की उन्नत एवं वैज्ञानिक पद्धति से खेती करें तो इस फसल की उत्पादकता में आशातीत वृद्धि हो सकती है. धान की उत्पादकता की कमी के उपरोक्त उल्लेखित विभिन्न कारकों में, वैज्ञानिक विधि से खरपतवार नियंत्रण का आभाव एक महत्वपूर्ण कारक है, इसलिए ससमय एवं उचित विधि से खरपतवार नियंत्रण किया जाए तो धान की उत्पादकता में 20 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती है. दोनों ही स्थिति में, नर्सरी हो या रोपित धान का खेत हो, खरपतवार एक बड़ी समस्या है. ईकाईनोकलोवा क्रुसगेली (सांवक) एवं पेनिकम क्रुसगेली (छोटी सांवक), इस फसल के मुख्य खरपतवार हैं. नर्सरी में लगे धान के पौधे से, खरपतवार वृद्धि के कारकों के लिए न सिर्फ नकारात्मक प्रतिस्पर्धा करते है, अपितु देखने में समानता होने के कारण धान के पौधों के साथ मुख्य खेत में इनकी रोपाई भी हो जाती है.
अगर इन रोपित खरपतवारों को मुख्य खेत में नियंत्रित नहीं किया जाता है तो ये खेतों में बड़ी संख्या में बीज उत्पादित करते है और खेतों में बीज बैंक के रूप में पड़ें रहते हैं, जो अगले वर्ष बड़ी संख्या में अंकुरित होकर, धान के खेत को संक्रमित करते हैं एवं उत्पादकता को कम करने में मुख्य भूमिका अदा करते हैं. स्वस्थ बिचड़ा उत्पादन एवं खरपतवारों के बीज उत्पादन को रोकने के लिए, यह अति आवश्यक है कि धान के नर्सरी को खरपतवारों से मुक्त रखा जाए, जिसके लिए निम्न आवश्यक नियंत्रण विधि का अनुसरण करना चाहिए.
1. एक वर्षीय घास एवं सेंजेंज के रोकथाम के लिए, ब्यूटाक्लोर 50 प्रतिशत ई0सी0 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से, नर्सरी में पूर्व अंकुरित धान के बीज बुवाई के 7 दिनों बाद प्रयोग करें.
2. साफिट 30.5 ई0सी0 (प्रेटिलाक्लोर एवं सेफ्नर) 1.25 लीटर/हेक्टेयर (0.38 कि0ग्रा0 सक्रिय तत्व/ हेक्टेयर) बालू में मिला कर नर्सरी में पूर्व अंकुरित धान के बीज बुवाई के 3 दिनों बाद प्रयोग करना चाहिए. खरपतवार नाशकों का प्रयोग पारी-पारी से करना चाहिए.
3. इन खरपतवार नाशकों का प्रयोग नमी धारित मृदा में, कदवां करने अथवा पूर्व अंकुरित धान के बीज बुवाई के 3 से 7 दिनों पूर्व भी कर सकते हैं.
धान के खेत में निम्न महत्वपूर्ण खरपतवार सम्बद्ध पाया जाता है:-
1. घास
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इकाइनोक्लोआ कोलोनम (छोटा सांवक)
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इकाइनोक्लोआ क्रुसगल्ली (सांवक)
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डकटाईलाक्टिनियम अजीपसियम (मकड़ा)
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पास्पेलम डिस्टीकम (कोडा)
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इल्युसीन इंडिका (मंडुआ)
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बरकियारिया रेपटेन्स (खरवां)
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इराग्रोस्टीस जापोनिका (मुरमुर)
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इराग्रोस्टीस पाइलोसा (चिड़ियों का दाना)
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पैनिकम डाइकोटोमीफलोरम (बनसा)
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लेप्टोक्लोआ चाईनेसिस (भोयली)
2. चौड़ी पत्ती
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इक्लीप्टा एल्बा (केना)
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सैजुलिया एक्जिलारिस (थुजकर)
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कोम्मेलिना डिफ्युजा (केन)
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एजीरेटम कोन्जनोएडेस (बोका)
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कोककोरस ओलीटोरियस (पट)
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सैजिटेरिया लाटिफोलिया (पान पत्ता)
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स्फेनोक्लीआ जेलानिक (मिर्च बूटी/मिर्ची)
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अमनिया ग्रासिलिस (गंठजोड़)
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मारसिलिया क्वाडिफोलिया (धन पापड़)
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लुडविजिया हाईसोपिफोलिया (गंठजोड़ बन पटुआ)
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मोनोकोरिया वैजिनालिस (नंनका)
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गालिनसोगा सिलियाटा (हेयरी गालिन सोगा)
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ट्राएथियम पोर्चुलौकस्ट्रम (संटी)
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लिंडेरनिया प्रोक्मबेस (प्रोस्टेट फाल्स पिपरतेल)
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फाइसेलिस मिनिमा (बटकुंडया)
3. नरकट
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साइप्रस इरिया (डिल्ला)
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साइप्रस रोटन्डस (मोथा)
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फिंमब्रिस्टाइलिस मिलिएसी (झिरुआ)
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स्कीरपस मैंरिटिमस (बुचड़)
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साइप्रस डिफोरमिस (नागरमोथा)
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सायानोटिक एाक्सीलेरिस (गारेंडा)
निराई - गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
धान के खरपतवारों को नष्ट करने के लिए खुरपी या पैंडीवीडर का प्रयोग करें. इस विधि से खरपतवार हटाने का कार्य दो बार करना चाहिए. पहला रोपाई के 20 दिनों के बाद (प्रथम यूरिया उपरिवेशन के पहले) एवं दूसरी बार रोपाई के 50-60 दिनों के बाद (द्वितीय यूरिया उपरिवेशन के पहले).
यह कार्य खरपतवारनाशक रसायनों द्वारा भी किया जा सकता है. रोपाई वाले धान में घास जाति एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु प्रेटिलाक्लोर 50 ई0सी0 1.5 लीटर या ब्यूटाक्लोर 50 ई0सी0 3 लीटर या पाइरेजोसल्फ्यूरान इथाईल 10 डब्लू0 पी0 200 ग्राम या पेण्डीमैथालीन 30 ई0सी0 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 0-3 दिन के अन्दर (प्री-इमरजेंस खरपतवार नाशक) प्रयोग करना चाहिए. ब्यूटाक्लोर का प्रयोग 3-4 से0मी0 पानी में किया जाए. इन खरपतवार नाशकों की क्षमता बढाने के लिए जरुरी है कि लगातार एक सप्ताह तक नमी खेत में बना कर रखा जाए. खरपतवार का इच्छित एवं बेहतर नियंत्रण के लिए जरुरी है कि धान में होनेवाले तीन मुख्य कार्य जैसे कंदवा, रोपाई एवं खरपतवारनाशक छिड़काव के बीच कम से कम अंतराल रखा जाए. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण के लिए, 2,4 डी0 सोडियम साल्ट का 625 ग्राम या मेंटसल्फ्यूरॉन 20 डब्लू0 पी0 20 ग्राम 500-600 लीटर पानी में घोल तैयार करके प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 20-25 दिनों के बाद करना चाहिए.
जिन धान के खेतों में मोंथा की समस्या हो तो इथॉक्सिसल्फ्यूरॉन 15 प्रतिशत डब्लू0डी0जी0 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. नवीन एवं सबसे ज्यादा प्रभावशाली खरपतवारनाशक बीसपाइयरीबैक सोडियम 10 एस0सी0 है, जिसका प्रयोग 200-300 मी0ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से खरपतवार की मौजूदगी के अनुसार रोपाई/बुवाई के 20-25 दिनों बाद धान के खेत में करें, जिससे सभी तरह के खरपतवारों के साम्राज्य का अंत निश्चित तौर पे हो सकेगा. इस खरपतवारनाशक के छिड़काव के पूर्व, धान के खेत में अगर पानी लगा है तो पानी को बाहर निकाल दें, ताकि बीसपाइयरीबैक सोडियम का इस्तेमाल करने पर, उससे खरपतवारों का सम्पर्क हो सके, एवं छिड़काव के 2-3 दिनों के बाद अगर संभव हो तो खेंत को पानी से भर दें और लगभग 7 दिनों तक खेंत में 3-8 से0मी0 का पानी का स्तर बनाये रखें.
नोटः- उद्भव के बाद (पोस्ट इमरजेंस) प्रयोग में आने वाले खरपतवारनाशकों के प्रयोग के समय एवं प्रयोग के उपरांत एक सप्ताह तक मृदा में नमी बनाकर रखना चाहिए, इससे इन रसायनों के पूरे कार्यक्षमता एवं दक्षता का पूर्ण लाभ मिल पाता हैं.
खरपतवारनाशकों के प्रयोग में सावधानियां
1. फसलों में उपस्थित खरपतवारों के प्रकार एवं अवस्था के अनुसार खरपतवारनाशकों का चुनाव करना चाहिए.
2. हमेंशा अनुशंसित खरपतवारनाशकों का प्रयोग करें एवं इनकी खरीदारी विश्वस्त स्रोत से करना चाहिए.
3. खरपतवार नाशकों का प्रयोग अनुशंसित मात्रा से कम या ज्यादा नहीं करना चाहिए.
4. खरपतवार नाशकों के छिड़काव के पूर्व पम्प को आवश्यकतानुसार समायोजित कर लेना चाहिए.
5. खाली पेट खरपतवार नाशकों का छिड़काव नहीं करना चाहिए.
6. खरपतवार नाशकों का छिड़काव की दिशा हवा के दिशा के विपरित नहीं होना चाहिए.
7. शरीर का कोई अंग या भाग खरपतवार नाशकों के सम्पर्क में कम से कम आना चाहिए, इसके लिए आवश्यक है कि छिड़काव करते समय दस्ताना, फुलपैंट, फुल कमीज एवं जूता पहनें.
8. प्रत्येक बार स्प्रे टैंक में खरपतवार नाशक के घोल को तैयार करते समय ठीक से हिला एवं मिला लेना चाहिए.
9. खरपतवार नाशकों के छिड़काव के समय धुम्रपान एवं खान-पान से बचना चाहिए.
10. छिड़काव कार्य सम्पन्न हो जाने पर कपड़ा बदल कर स्नान अवश्य कर लेना चाहिए.
11. खरपतवार नाशकों के प्रकार के अनुसार (प्री एवं पोस्ट इमरजेंस) पानी की मात्रा 100 से 200 लीटर प्रति एकड़ की दर से बदलता रहता है.
12. खरपतवार नाशकों के उत्तम परिणाम के लिए फ्लैट फैंन/फ्लड जेट नाजिल का प्रयोग करना चाहिए.
13. जहाँ तक संभव हो, खरपतवार नाशकों का छिड़काव उगे हुए खरपतवारों पर एक समान करना चाहिए, छिड़काव करते समय विशेष ध्यान देना चाहिए कि खरपतवार नाशकों को दुहराना नहीं है तथा कोई भी क्षेत्र छिड़काव से वंचित न रहें.
14. प्री इमरजेंस खरपतवार नाशकों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पानी लगता है तथा पोस्ट इमरजेंस के लिए कम पानी का प्रयोग होता है.
15. एक ही फसल के कुछ प्रभेद खरपतवार नाशक के प्रति संवेदनशील होते हैं, इसलिए आवश्यक है कि खरपतवार नाशक के चुनाव के समय इनका प्रभेद के प्रति प्रतिक्रिया एवं संवेदनशीलता को ध्यान में रखा जाय.
16. खरपतवार नाशकों को अदल-बदल कर प्रयोग करना चाहिए (खरपतवार चक्र अपनायें). लगातार एक ही खरपतवार नाशक के प्रयोग से खरपतवारों में खरपतवार नाशक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है, तथा पुराने खरपतवारों की जगह नये खरपतवार प्रगट हो जाते हैं एवं पुराने खरपतवारों की जगह ले लेते हैं.
17. छिड़काव के बाद खरपतवार नाशकों के बचे घोल को मुख्य खेत में न फेंके, अगर फेंकना हो तो बिना जोत वाले खेत में फेंके.
18. स्प्रे करने वाले पम्प को छिड़काव के बाद डिटर्जेंट से अवश्य धुल देना चाहिए.
19. बचे हुए खरपतवार नाशकों को चिप्पी लगाकर कीटनाशकों से दूर रखें.
नोट: कृषि रसायनों के प्रयोग के पूर्व वैज्ञानिक या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य ले.
लेखक: डॉ. राजीव कुमार श्रीवास्तव
सहायक प्राध्यापक एवं प्रभारी पदाधिकारी
क्षेत्रिय अनुसंधान केन्द्र
(डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर)
बिरौल, दरभंगा - 847 203 (बिहार)
डॉ. योगेश्वर सिंह
प्राध्यापक एवं प्रधान
सस्य विभाग
रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी - 284 003, उत्तर प्रदेश
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