भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां की लगभग 60 फीसद आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेती से जुड़ी हुई है जो की धीरे-धीरे अब कम हो रही है, इसकी सबसे बड़ी वजह खेती का घाटे का सौदा होना है. लेकिन इसी में कुछ किसान ऐसे है जो आधुनिक तरीके से खेती करके भारी मुनाफा कमा खेती को मुनाफे का सौदा बना रहे हैं. इन्हीं आधुनिक तरीके में से एक तरीका 'लो-टनल' विधि है.
दरअसल किसान धान, मक्का और गेहूं जैसे मोटे अनाज की परंपरागत खेती के दायरे से बाहर निकलकर 'लो-टनल' विधि का इस्तेमाल कर अगेती करेला, लौकी, तरबूज, तोरी को ऑफ सीजन में उगा भारी मुनाफा कमा रहे हैं. इसके लिए नवंबर माह में दीपावली के बाद बीज लगाए जाते हैं, ताकि फरवरी, मार्च, अप्रैल, जून व जुलाई तक फसल का लाभ लिया जा सके. नवंबर माह में लगभग सर्दी होने के चलते मैदानी इलाकों में किसान अगेती बेल वाली फसल नहीं लगाते हैं.
बता दे कि आम तौर पर फरवरी माह में बेल वाली फसल लगाई जाती है, लेकिन उच्च गुणवत्ता के बीज बाजार में आने के बाद किसानों का ऑफ सीजन फसलों की तरफ रूझान बढ़ने लगा है और लो-टनल विधि का इस्तेमाल करने लग गए हैं. इसके लिए ट्रैक्टर की सहायता से एक खास तरह की मशीन द्वारा पहले खेत में 3 फीट चौड़ी और 2 फीट गहरी नाली बनाई जाती है.
रस्सी या फीते की सहायता से नाली को सीधा बनाया जाता है. फिर इसमें जैविक खाद डालकर अच्छे से गुढ़ाई की जाती है. इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद बीज बोया जाता है. आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इसमें प्रति एकड़ तक़रीबन 1 KG लौकी या करेला, पेठा, तरबूज, तोरी सहित किसी भी अन्य फसल का रोपण किया जा सकता है. इस विधि से खेती करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसान तक़रीबन 30 से 40 दिन पहले फसल तैयार कर लेता है.
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