माइक्रोग्रीन्स को युवा सब्जियां कहा जाता है, जो कुछ पौधों के शुरुआती पत्ते होते हैं और लगभग 2-3 इंच लंबे होते हैं ये सब्जियों और जड़ी बूटियों के अंकुर से उत्पादित होते हैं. साग के बेबी संस्करण, माइक्रोग्रीन्स को साग के पूर्ण विकसित संस्करणों की तुलना में स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. शलजम, मूली, ब्रोकोली, फूलगोभी, गाजर, चार्ड, लेट्यूस, पालक, अमरंथ, पत्तागोभी, चुकंदर, अजमोद और तुलसी सहित पौधों की कई किस्में को माइक्रोग्रीन के रूप में उगा सकते हैं. माइक्रोग्रीन्स में परिपक्व पौधों की तुलना में काफी अधिक मात्रा में लगभग 5 गुना विटामिन और कैरोटीनॉयड पाये जाते हैं, माइक्रोग्रीन की बहुत ही कम मात्रा बहुत अधिक पोषण देने के लिए काफी होती है, यदि रोजाना सिर्फ 50 ग्राम माइक्रोग्रीन का सेवन करें तो पोषण की सारी कमी दूर हो सकती हैं, इनमें फल और सब्जियां के मुकाबले करीब 40 गुना तक पोषण होता है. पोषण ज्यादा होने की वजह से इनकी डिमांड भी बहुत होती है इसलिए खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
क्या है माइक्रोग्रीन
बीज अंकुरित होने के बाद जब उनमें शुरुआत में सबसे पहले जो पत्तियां आती हैं. इन शुरूआती पत्तियों को ही माइक्रोग्रीन कहा जाता है, माइक्रोग्रीन में शुरूआती पत्तियों के साथ उसका तना भी शामिल रहता है.
कब लगाएं माइक्रोग्रींस
वैसे तो माइक्रोग्रीन को किसी भी सीजन में लगा सकते हैं लेकिन मौसम के हिसाब से लगाना खेती करना अच्छा माना जाता है, माइक्रोग्रीन का अच्छा उत्पादन आसपास के क्षेत्र की जलवायु पर भी निर्भर होता है. धनिया, सरसों, प्याज, मूली, पुदीना और मूंग जैसे पौधे खेती के लिए अच्छे होते हैं.
माइक्रोग्रीन की खेती
खेतों के माइक्रोग्रीन को घर पर भी उगाया जा सकता है. खेती के लिए ज्यादा जैविक खाद या मिट्टी की जरूरत होती है, इसके अलावा काफी माइक्रोग्रीन्स ऐसे भी होते हैं, जिन्हें उगने के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होती, वो पानी में भी उग जाते हैं. ऐसे किस्म के माइक्रोग्रीन्स को छत से लेकर बाल्कनी और बेडरूम्स तक में उगाया जा सकता है. जिसके लिए हर रोज की करीब 3 से 4 घंटों की नरम धूप काफी होती है. माइक्रोग्रीन की खेती के लिए काफी लोग फ्लोरोसेंट रोशनी का भी इस्तेमाल करते हैं, जिसकी मदद से फसल का अच्छा उत्पादन हासिल करने में मदद मिलती है. अगर खेती बड़े पैमाने पर करते हैं, तो फसल को तेज धूप से बचाने की जरूरत होगी.
माइक्रोग्रीन्स उगाने का तरीका
इसके लिए छोटे कंटेनरों की जरूरत होती है, ये कंटेनर 3 से 4 इंच गहरे होने चाहिए, मिट्टी की 3 से 4 इंच परत वाला कोई भी बॉक्स काम करेगा और यदि ट्रे उपलब्ध हो तो और भी अच्छा है, खेती के लिए बीज को मिट्टी की सतह पर फैला दिया जाता है और मिट्टी की एक पतली परत से ढक देते हैं और धीरे से थपथपाया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मिट्टी कंटेनर में अच्छी तरह से बैठ चुकी है, मिट्टी को नम रखने और सावधानी से पानी देने से 2 से 3 दिनों में बीज अंकुरित हो जाते हैं, इन अंकुरित बीजों को धूप में रखा जाता है और दिन में 2 से 3 बार पानी का छिड़काव करते हैं. माइक्रोग्रीन्स एक हफ्ते में तैयार हो जाता है, चाहें तो उन्हें 2 से 3 इंच से ज्यादा ऊंचाई पर बढ़ने दे सकते हैं, ठीक इसी तरह खेत में भी माइक्रोग्रीन्स को उगाया जा सकता है.
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सिंचाई
खुली या धूप वाले स्थान पर रखी ग्रोइंग ट्रे को दिन में कम से कम एक बार स्प्रे बोतल से पानी देना चाहिए. ध्यान रहे, बीजों को अंकुरित होने तक मिट्टी को नम रखें, ज्यादा पानी न दें. और माइक्रोग्रीन्स के बीज अंकुरित होने के बाद, दिन में एक या दो बार पानी का छिड़काव करना चाहिए. नल का ताजा पानी माइक्रोग्रीन्स के लिए फायदेमंद माना जाता है.
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