नींबू की खेती से किसान हर साल अच्छी कमाई करते हैं. भारत में प्रमुख तौर पर नींबू की खेती महाराष्ट्र, गुजरात, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के कुछ इलाकों में होती है. इसकी खेती के लिए किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जिसमें रोग व देखभाल शामिल है. आज हम नींबू के फसलों में लगने वाले रोग व उनके प्रबंधन के बारे में बताने जा रहे हैं. तो आइए, उनपर एक नजर डालें.
सिट्रस कैंकर
फसल संबंधी विशेषज्ञ अनिल कुमार बताते हैं कि नींबू की फसलें कई रोगों से प्रभावित हो सकती हैं. जिसमें सिट्रस कैंकर रोग भी शामिल है. इसमें पत्तियों, तनों और फलों पर कार्कयुक्त घाव नजर आते हैं. इस बीमारी से फसलों को भारी नुकसान हो सकता है. इस रोग से पौधों को बचाने के लिए सबसे पहले संक्रमित पौधों के भागों को काटकर नष्ट करें. वहीं, कॉपर आधारित कीटनाशकों का उपयोग करें. इसके अलावा, गिरी हुई पत्तियों और मलबे को हटाकर पौधे के आसपास सफाई बनाए रखें.
साइट्रस ट्रिस्टेजा वायरस
इस रोग से प्रभावित होने के बाद नींबू की फसलों का विकास रुक जाता है. पत्तियां पीली नजर आने लगती हैं. इसके अलावा, फल उत्पादन भी कम हो जाता है. इससे बचाव के लिए वायरस-मुक्त रोपण सामग्री का उपयोग करें. एफिड वैक्टर को नियंत्रित करें और संक्रमित पेड़ों को हटाने का प्रयास करें.
यह भी पढ़ें- नींबू को रसीले व गुच्छों में उगाने के लिए इन उर्वरकों का करें उपयोग, 10 दिनों में देखें कमाल
सिट्रस ग्रीनिंग
इस रोग की चपेट में आने के बाद नींबू पत्तियों पर धब्बे और फल छोटे व टेढ़े-मेढ़े नजर आते हैं. इससे बचाव के लिए संक्रमित पेड़ों को हटाएं और नष्ट करें. कीट वाहकों (जैसे एशियाई साइट्रस साइलीड) को नियंत्रित करें. इसके अलावा, विशेषज्ञों की सुझाव से एंटीबायोटिक दवाओं और पोषण संबंधी स्प्रे का उपयोग करें.
अल्टरनेरिया ब्राउन स्पॉट
इस बीमारी में पत्तियों और फलों पर भूरे व धंसे हुए घाव नजर आते हैं. इससे बचाव के लिए मौसम सही रहने के दौरान कॉपर आधारित कीटनाशकों का इस्तेमाल करें. सिंचाई प्रबंधन की उचित व्यवस्था करें और संक्रमित पौधे के मलबे को हटा दें.
फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न
इस रोग से नींबू की फसलें मुरझाने लगती हैं. पत्तियों का पीला पड़ना और जड़ों का सड़ना आम हो जाता है. इससे बचाव के लिए मिट्टी की जल निकासी में सुधार करें, अधिक पानी देने से बचें और फॉस्फाइट युक्त फफूंदनाशकों का प्रयोग करें.
मेलेनोज
नींबू की फसलें जिन बीमारियों का शिकार हो सकती हैं. उसमें मेलेनोज भी शामिल है. इसमें फल पर काले व कार्कयुक्त घाव दिखते हैं. इससे बचाव के लिए संक्रमित पौधों के हिस्सों को काट-छांट कर नष्ट कर दें, फूल खिलने से पहले और कटाई के बाद की अवधि के दौरान कॉपर आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करें और बगीचे में स्वच्छता बनाए रखें.
ग्रीसी स्पॉट
ग्रीसी स्पॉट एक कवक रोग है जो आमतौर पर नींबू की पत्तियों को प्रभावित करता है. हालांकि, यह फल और तने को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसमें पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले-भूरे, तैलीय या चिकने धब्बे नजर आते हैं. वहीं, धब्बों के आकार धीरे-धीरे बढ़ते हैं और गहरे भूरे रंग में बदल जाते हैं. इससे बचाव के लिए गिरी हुई पत्तियों सहित संक्रमित पौधों को काटें और हटा दें. बगीचे को साफ और मलबे से मुक्त रखें. अच्छे वायु संचार के लिए पेड़ों के बीच उचित दूरी बनाए रखें. ग्रीसी स्पॉट से बचाव के लिए पेड़ों का नियमित निरीक्षण करें. ओवरहेड सिंचाई से बचें, क्योंकि यह फंगल बीजाणुओं के प्रसार को बढ़ावा दे सकता है. वहीं, पेड़ों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए संतुलित उर्वरक प्रदान करके उचित पोषण बनाए रखे.
निष्कर्ष- नींबू की फसलों को और अन्य रोग भी नुकसान कर सकते हैं. हमने जो नाम बताया है. वह कुछ ही रोगों के हैं. हालांकि, रोग व प्रबंधन के विषय में अलग-अलग विशेषज्ञों के भिन्न विचार हो सकते हैं.
Share your comments