देश में कपास की खेती को महत्वपूर्ण नगदी फसल माना जाता है. वैसे इसकी खेती देशभर के कई हिस्सों में होती है, लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसान कपास की खेती को ज्यादा प्रमुखता देते हैं. कपास से कपड़े बनाए जाते है, साथ ही इसका तेल भी निकाला जाता है. इसकी खेती से वस्त्र उद्योग के लिए बुनियादी कच्चा माल उपलब्ध होता है. इसके व्यापार पर कई लोगों की जीविका निर्भर होती है. ऐसे में किसानों को कपास की खेती में काफी सावधानी बरतनी चाहिए. आज हम किसानों को कुछ प्रमुख बिंदुओं पर खास जानकारी देने वाले हैं इसलिए इस लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ें.
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बीज की मात्रा
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बीजों का उपचार
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बुवाई की विधि
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खाद और उर्वरक
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सिंचाई
कपास के बीज की मात्रा
अगर किसान कपास के संकर या बी.टी. किस्म की बुवाई कर रहे हैं, तो प्रति हेक्टेयर लगभग 4 किलो प्रमाणित बीजों को डालना उचित रहता है. अगर देशी और नरमा किस्मों की बुवाई कर रहे हैं, तो इसके लिए लगभग 12 से 16 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए. ध्यान दें कि बीजों की बुवाई लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर ही करें.
कपास के बीजों का उपचार
कपास की खेती में बीज उपचार बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है, क्योंकि इस पर फसल का उत्पादन और गुणवत्ता, दोनों पर निर्भर है. किसान भाई इन 6 प्रक्रियाओं में बीज को उचारित कर सकते हैं.
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बीज को धूमित करने के लिए एल्युमिनियम फॉस्फॉइड की एक गोली बीज में डाल दें. इसको हवा रोधी बनाकर लगभग 24 घंटे के लिए बंद कर दें. इससे बीजों में छुपी गुलाबी सुंडियां खत्म हो जाती है.
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अगर धूमित न कर पाएं, तो बीजों को तेज धूप में पतली तह के रूप में फैलाकर लगभग 5 से 6 घंटे के तक रख दें.
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एक मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में बीज लें. इसमें लगभग 1 लीटर व्यापारिक गंधक वाला तेजाब डाल दें. इसको 1 से 2 मिनट तक लकड़ी से हिलाते रहें. जब बीज काला पड़ जाए, तो बीज को बहते पानी में धो लें. इससे ऊपर तैरते हुए बीज को भी अलग कर दें. इस तरह बीजों से रेशे हट जाते हैं, साथ ही बीज का अंकुरण अच्छा होता है.
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बीजों को रोग से बचने के लिए लगभग 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का घोल तैयार कर लें. इसमें बीजों को लगभग 8 से 10 घंटे तक भिगा कर रखें. इसके बाद बीजों को सुखा लें.
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रेशे रहित बीजों को आवश्यकतानुसार इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस या थायोमिथोक्साम 70 डब्ल्यू एस से उपचारित कर लेना चाहिए. इससे पत्तियों में रस चूसक हानिकारक कीट लगने का खतरा कम हो जाता है.
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अगर असिंचित क्षेत्र में कपास की खेती कर रहे हैं, तो बीजों को आवश्यकतानुसार एजेक्टोबेक्टर कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए. इससे फसल की पैदावार बढ़ती है.
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कपास की बुवाई
कपास के देशी किस्म की बुवाई करने के लिए दो कतारों के बीच लगभग 40 सेंटीमीटर की दूरी रखना चाहिए और दो पौधों के बीच लगभग 30 से 35 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. अगर अमेरिकन किस्म है, तो कतारों की दूरी लगभग 50 से 60 सेंटीमीटर की हो, साथ ही पौधों के बीच की दूरी लगभग 40 सेंटीमीटर की हो. एक बार फिर बता दें कि एक एकड़ में लगभग 4 किलो बीज लगाना चाहिए. इन बीजों को ज़मीन के अंदर लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर नीचे डाला जाता है.
कपास की खेती में खाद और उर्वरक
कपास के बीजों की बुवाई से 3 या 4 सप्ताह पहले खेत की जुताई कर देना चाहिए. इसके लिए सबसे पहले लगभग 25 से 30 गाड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलानी चाहिए. इसके बाद खेत की जुताई करना चाहिए. ध्यान दें कि देसी, बीटी और अमेरिकन किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर नत्रजन और फास्फोरस की आवश्यकता पड़ती है.
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कपास की सिंचाई
इसकी खेती में पानी की ज़रूरत कम पड़ती हैं. अगर खेती के समय बारिश ज्यादा हो जाए, तो शुरुआती सिंचाई नहीं करनी पड़ती है. अगर बारिश न हो, तो इस स्थिति में पहली सिंचाई लगभग 45 से 50 दिन बाद कर दजेनी चाहिए. इसके अलावा पत्तियां मुरझाने पर सिंचाई कर सकते हैं.
कपास में पानी देने का समय
महीना |
सिंचाई करने का समय |
मई |
2 घंटे के लिए |
जून |
2 घंटे 30 मिनट के लिए |
जुलाई |
लगभग 3 घंटे के लिए |
अगस्त |
3 घंटे 30 मिनट के लिए |
सितम्बर |
2 घंटे 20 मिनट के लिए |
अक्टूबर |
1 घंटे के लिए |
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