सौंफ का उपयोग आचार बनाने में सब्जियों में महक और जायका बढ़ाने में किया जाता है. इसके साथ ही सौंफ औषधीय गुणों के कारण जानी जाती है. रबी सीजन की यह फसल कुछ रोगों और कीटों से ग्रसित होकर उपज प्रभावित करती है. इसलिए फसल को इनसे बचाव करने के साथ-साथ खरपतवार प्रबंधन (Weed management) करना भी आवश्यक हो जाता है. यहाँ कुछ उन्नत किस्म (Advanced varieties) के बारे में बताया जा रहा है जिसकी मदद से अपने क्षेत्र के लिए किस्म चुनाव किया जा सकता है.
सौंफ की उन्नत किस्में (Improved varieties of fennel)
आर.एफ.-101: यह किस्म के पौधे बड़े सीधे और मजबूत तने वाले होते हैं. यह किस्म 150-155 दिनों में पककर तैयार हो जाती है तथा इसकी औसत पैदावार (Average production) 15-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
आर. एफ.-125: श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय (SKNAU) से विकसित यह किस्म जल्दी पकने वाली है और उपज 17-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है.
गुजरात सौंफ-1: इस किस्म के पौधे लम्बे फैले हुए झाड़ीनुमा (Herb) होते हैं. यह किस्म शुष्क (Dry) परिस्थिति हेतु उपयुक्त है. इस किस्म को पकने (Maturity) में लगभग 200 दिन लगते हैं. पैदावार 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
गुजरात सौंफ-11: यह किस्म सिंचित खेती (Irrigated farming) के लिए उपयोगी है. इसकी औसत उपज 22-24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
अजमेर सौंफ-1: यह किस्म अजमेर के राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसन्धान केंद्र (NRCS) से विकसित की गई है. इस किस्म का पौधा बड़ी शाखाओं युक्त होता है. यह 180-190 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है.
अजमेर सौंफ-2: यह किस्म जल्दी बुवाई के लिए उपयुक्त है. इसका पौधा बड़ा एवं सीधा खड़ा होता है. यह ब्लाइट रोग (Blight disease) के प्रति सहनशील (Tolerant) किस्म है. इसकी पैदावार 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
खरपतवार नियंत्रण (Weed control)
यदि समय पर खरपतवारों का नियंत्रण न किया जाये तो फसल में लगभग 25-30 प्रतिशत तक उपज कम हो जाती है. सौंफ की बढ़वार शुरू में धीमी गति से होती है इसलिए इसको खरपतवारों से पोषक तत्वों, पानी और प्रकाश के लिए अधिक प्रतियोगिता (Competition) करनी पड़ती है. फसल को खरपतवारों से होने वाली हानि से बचाने के लिए कम से कम दो या तीन बार निराई-गुड़ाई करें. इसके लिए 25-30 दिन बाद तथा दूसरी निराई-गुड़ाई 60 दिन बाद करनी चाहिए.
सौंफ में रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 3 दिनों के बाद पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए. ताकि फसल में दोनों प्रकार के संकरी और चौड़ी पत्ती (Narrow & broad type leaves) के खरपतवार को उगने से पहले ही नष्ट किया जा सके.
सौंफ में कीट तथा बीमारियों को कैसे रोके (How to prevent pests and diseases in fennel crop)
मोयला/ माहू (Aphid):
एफीड सौंफ की फसल का एक प्रमुख कीट है और गंभीर क्षति के कारण फसल पैदावार व बीज गुणवत्ता में कमी होती है. इस कीट के भारी प्रकोप से फसल में 50 प्रतिशत तक उपज में नुकसान हो जाता है. निम्फ और वयस्क कोमल पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे वे कमजोर होकर सूख जाते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाने से दानों की गुणवत्ता व मात्रा दोनों ही प्रभावित होती है. फसल के पुष्पन अथवा पकने के समय आकाश में लम्बे समय तक बादल रहने से तथा हवा में अधिक नमी रहने से फसल में झुलसा बीमारी तथा माहू कीट के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है.
माहू कीट से नियंत्रण (Control of Aphid insect in Fennel crop):
इसकी रोकथाम के लिए उर्वरक और सिंचाई की सिफारिश की गई मात्रा ही देनी चाहिए क्योंकि ज्यादा नाइट्रोजन व सिंचाई की मात्रा से पौधा रसदार हो जाता है और एफीड कीट आक्रमण करते हैं. एफिड कीट से बचाव हेतु थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें. इसके अलावा जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करने से एफीड का नियंत्रण किया जा सकता है.
कटुआ सूँडी (Cutworm insect):
इस कीट की लट्ट (सूण्डी) भूरे रंग की होती है, जो शाम के समय पौधों को जमीन की सतह के पास से काटकर गिरा देती है. इस कीट के लार्वा मिट्टी के अंदर पौधों की सतह के पास पाये जाते हैं. दिन में मिट्टी के नीचे छिपे रहते हैं और रात में मिट्टी की सतह से बहार आ जाते हैं. रात में ही ये लार्वा ऊपर आकर तने को खाते रहते हैं.
कटुआ सूँडी कीट से नियंत्रण (Control of Cur worm):
इसकी रोकथाम के नियमित रूप से खेत का निरीक्षण करना चाहिए. खेत और आसपास की जगह को खरपतवार मुक्त रखें. जैव-नियंत्रण के माध्यम से एक किलो मेटारीजियम एनीसोपली (कालीचक्र) को 50-60 किलो गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद में मिलाकर बुवाई से पहले खेत में मिला दें. इसके नियंत्रण के लिए रोपाई के समय कार्बोफ्यूरान 3% GR की 7.5 किलो मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत में मिला दें. या कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4% G की 7.5 किलो मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेर दे. या क्लोरपायरीफॉस 20% EC की 1 लीटर मात्रा सिंचाई के पानी के साथ मिलकर प्रति एकड़ की दर से दें. खड़ी फसल में कीट दिखाई देने पर क्लोरपायरीफॉस 20% EC @ 300 मिली या डेल्टामेथ्रिन 2.5 EC प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
तना गलन रोग (Collar rot of Fennel):
यह रोग उन क्षेत्रों में अधिक दिखाई देता है, जहां पानी का ठहराव पौधे के पास अधिक होता है. पौधों की जड़ के ऊपर भाग में गलन शुरू हो जाती है. पौधे पीले होकर नष्ट हो जाते है.
तना गलन से नियंत्रण (Control of Collar rot):
रोकथाम के लिए खेत में जल निकास (Drainage) की उचित व्यवस्था करनी चाहिए. ट्राइकोडर्मा विरिडी की 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधे के तने के पास दीजिये. या रासायनिक कार्बेन्डाजिम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर जमीन में तने के पास डालें.
रेमुलेरिया झुलसा (Ramularia blight of Fennel):
यह बीमारी रेमुलेरिया फोइनीकुली नामक फंगस (Fangus) से होती है. शुरु में छोटे-छोटे पीले धब्बे पत्तियों तथा बाद में पूरे पौधे पर दिखाई देते हैं. ये धब्बे बढ़कर भूरे रंग में बदल जाते हैं. गंभीर अवस्था में पूरा पौधा सूख कर मर जाता है.
रेमुलेरिया झुलसा से नियंत्रण (Control of Ramularia blight of Fennel):
इस रोग की रोकथाम के लिए प्रारंभिक अवस्था में लक्षण दिखाई देने पर मेंकोजेब 75% WP @ 500 ग्राम या या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें. अवश्यकता होने पर 15 दिनों बाद छिड़काव दोहराएं. 1 मिली साबुन का घोल (Soap solution) प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फफूंदनाशक की दक्षता (Efficiency) बढ़ जाती है.
अल्टरनेरिया झुलसा रोग (Alternaria blight disease)
इस रोग में भी पौधों पर शुरु में छोटे-छोटे पीले धब्बे पत्तियों तथा बाद में पूरे पौधे पर दिखाई देते हैं. ये धब्बे बढ़कर भूरे रंग में बदल जाते हैं. गंभीर अवस्था में पूरा पौधा सूख कर मर जाता है. फसल झुलसी हुई मालूम होती है.
अल्टरनेरिया झुलसा रोग का उपचार (Treatment of Alternaria blight): रोग नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 75% WP @ 500 ग्राम या प्रोपिकोनाज़ोल 25 EC @ 200 मिली प्रति 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव कर दे.
चूर्णिल आसिता या छाछ्या रोग (Powdery mildew disease)
इस रोग से पौधों पर सफेद चूर्ण या पाउडर जमा हो जाता है. इससे पौधे पीले होकर कमजोर हो जाते हैं और जल्दी पक (early maturity) जाते है, जिससे उपज में कमी कमी जाती है. अजवाइन के पौधों में यह रोग कवक के माध्यम से फैलता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर सफेद रंग के धब्बे (white spot) दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर धब्बों का आकार बढ़ जाता है और आखिर में पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है.
छाछ्या रोग का उपचार (Treatment of Powdery mildew disease):
इस रोग के नियंत्रण के लिए पौधों पर 0.2 प्रतिशत घुलनशील गंधक (Soluble sulphur) की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए. या फिर थिओफिनेट मिथाइल 75 WP 300 ग्राम या प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में छिड़काव (Spray) कर दें.
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