भारत में होने वाली फसलों की खेती में सोयाबीन का नाम काफी ऊपर आता है, जिसे गोल्डन बीन्स भी कहा जाता है. सोयाबीन का संबंध लेग्यूम परिवार यानी फलियों वाली फसल से माना जाता है. यह फसल भारत में लगभग 18 प्रतिशत तेल की पूर्ति करती है.
किसान भाई खरीफ सीजन में सोयाबीन की खेती करते हैं. यह काफी लाभदायक फसल है, जिसकी खेती से अच्छा रिटर्न मिलता है. सोयाबीन का उपयोग तेल के अलावा, खाद्य पदार्थ सोया मिल्क, सोया आटा, जैव ईंधन, पशु आहार आदि में किया जाता है.
सोयाबीन की खेती से जुड़ी जानकारी (Soybean farming information)
अधिकतर राज्यों के किसान सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) की तरफ रूख कर रहे हैं. इसकी खेती सोयाबीन की खेती अधिक हल्की, हल्की व रेतीली भूमि को छोड़कर सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है. मगर चिकनी दोमट मिट्टी ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है. मगर इसकी खेती में एक आम समस्या हर किसान के सामने खड़ी होती है. यह समस्या है सोयाबीन की फसल में लगने वाले पीला मोजेक रोग की है. अक्सर सोयाबीन की फसल को पीला मोजेक रोग काफी नुकसान पहुंचाता है. आइए आपको सोयाबीन की फसल में लगने वाले मुख्य रोग पीला मोजेक रोग (Yellow Mosaic Disease) की कुछ अहम जानकारी देते हैं.
क्या है पीला मोजेक रोग? (What is Yellow Mosaic Disease?)
यह एक वायरस जनित रोग है, जो मुख्यतः सफेद मक्खी (White Fly) के चपेट में आने से लगता है. दरअसल, यह मक्खी पौधे के तने पर अंडे देती है. इस कारण तने में एक इल्ली उत्पन्न होती है, वह तने के अंदर के जाइलम (xylem) को नष्ट कर देती है. इससे पौधा पीला पड़ जाता है और धीरे-धीरे पौधों का विकास रूक जाता है.
पीला मोजेक रोग के लक्षण (Symptoms of Yellow Mosaic Disease)
यह रोग शुरुआत में कुछ ही पौधे पर दिखाई देता है, लेकिन धीरे-धीरे भयंकर रूप धारण कर लेता है. जब सोयाबीन की फसल पीला मोजेक रोग (Yellow Mosaic Disease) लगता है, तब कुछ पौधों में चितकबरे गहरे हरे पीले धब्बे दिखाई देते हैं. संपूर्ण पौधे ऊपर से बिल्कुल पीले हो जाते हैं और फिर पूरे खेत में फैल जाते हैं. इसके बाद इस रोग की वजह से पौधों में नरमपन आ जाता है, साथ ही पौधे ऐंठ जाते हैं और सिकुड़ भी जाते हैं. कभी-कभी पत्तियां भी खुरदरी हो जाती हैं. इसके अलावा सलवटे भी पड़ जाती हैं.
पीला मोजेक रोग का समाधान (Yellow Mosaic Disease Solution)
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किसान भाई खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं. इस रोग फैलता नहीं है.
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संक्रमित पौधों को उखाड़कर दूर गड्ढा खोदकर दबा दें.
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किसान कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं.
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इसके अलावा, किसानों को सोयाबीन की नई विकसित किस्मों की बुवाई करना चाहिए.
सोयाबीन की फसल से जुड़ा नया शोध (New research related to soybean crop)
सोयाबीन की फसल में लगने वाले रोगों के समाधान के लिए कृषि वैज्ञानिक नई किस्मों को विकसित करते रहते हैं. इस क्रम में पुणे स्थित अघरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा सोयाबीन की 2 खास किस्में विकसित की गई हैं. इन्हें MACS 1407 और स्वर्ण वसुंधरा का नाम दिया है. इन किस्मों की खास बात यह है कि इनके पौधे कीट प्रतिरोधी हैं. इसकी पैदावार भी काफी कम समय में तैयार हो जाती है.
क्या कहते हैं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक (What do the scientists of Krishi Vigyan Kendra say?)
कृषि जागरण ने सोयाबीन की फसल में लगने वाले पीला मोजेक रोग की रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र धार मध्य प्रदेश के वैज्ञानिक डॉ. जी.एस गाठिये से बातचीत की. उन्होंने बताया कि सोयाबीन की फसल में पीला मोजेक रोग सफेद मक्खी (White Fly) की वजह से फैलता है. इस रोग की वजह से पत्तियों की नसों में उभार आ जाता है. इसके साथ ही पौधों पर पीलापन आ जाता है.
इस स्थिति में किसान भाईयों को खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगा देना चाहिए. इससे रोग फैलता नहीं है. इसके साथ ही संक्रमित पौधो को उखाड़कर गड्डा खोदकर दबा देना चाहिए. अगर फसल में रोग का प्रकोप ज्यादा है, तो कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं. उन्होंने सलाह दी कि किसान भाई इमिडाक्लोप्रिड, थायमिथोक्सम या लेम्बडा सायहेलोथ्रिन को 125 मिली/हेक्टेयर के हिसाब से छिडक़ सकते हैं. इसके अलावा, सोयाबीन की नई विकसित किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
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