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सोयाबीन की आधुनिक तरीके से खेती करने का तरीका, बुवाई का सही समय और उन्नत किस्में

अगर आप खेती करने की सोच रहे हैं तो ऐसे में आप सोयाबीन की खेती कर सकते हैं. तो आइये जानते हैं, आधुनिक तरीके से खेती करने का तरीका...

अशोक परमार
सोयाबीन  की खेती करने का तरीका
सोयाबीन की खेती करने का तरीका

सोयाबीन को पीला सोना कहा जाता है. किसानों का मानना है कि सोयाबीन की खेती से निश्चित रूप से लाभ मिलता है. इसमें नुक़सान की गुंजाइश कम होती है. मध्य प्रदेश काला सोना(अफ़ीम) और पीला सोना (सोयाबीन) के लिए जाना जाता है. विश्व में 60% अमेरिका में सोयाबीन पैदा होती है उसके अलावा भारत में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन होता है. सोयाबीन रिसर्च सेंटर इंदौर में है. सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ‘ग्लाइसीन मेक्स’ है. 

इसमें अधिक प्रोटीन होता है शाकाहारी मनुष्यों के लिए मांस के समान प्रोटीन मिलता है. मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा होता है. सोयाबीन में 38-40 प्रतिशत प्रोटीन,22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 12 प्रतिशत नमी तथा 5 प्रतिशत भस्म होती है. सोयाबीन दलहन की फसल है, इसमें अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है.

सोयाबीन की खेती लगभग 53.00 लाख है क्षेत्रफल में की जाती है. मप्र मे सोयाबीन सबसे ज़्यादा होने वाली फसल है. जो 50 से 55 प्रतिशत के मध्य है. उत्पादन पर नज़र डाले तो हमारे देश की उत्पादकता 10 की./हेक्ट. है एशिया की औसत उत्पादन 15 की./हेक्ट की तुलना में काफी कम है. मालवा क्षेत्र की जलवायु क्षेत्र में सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग 23/25 लाख है.
इससे प्रदेश में भविष्य क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होता है .उज्जैन जिले में सोयाबीन की खेती लगभग 4.00 से अधिक क्षेत्र में की जाती है.

सोयाबीन के खेत की तैयारी

संतुलित उर्वरक व मृदा स्वास्थ्य हेतु मिट्टी में मुख्य तत्व- नत्रजन, फासफोरस, पोटाश, द्वितीयक पोषक तत्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, तांबा, लोहा, मैंगनीज, मोलिब्डेनम, बोरॉन साथ ही पी.एच., ई.सी. एवं कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण करायें.

सोयाबीन की खेती का उपयुक्त समय

ख़रीफ की फ़सल की तैयारी शुरू कर दी है जुलाई माह में इसकी बुवाई के लिए खेत तैयार  है। इसमें सोयाबीन की फ़सल को अधिक मात्रा मप्र मे बोया जाता है।सोयाबीन को सबसे उपयुक्त माना गया है ये समय सोयाबीन को बोने के समय अच्छे अंकुकरण के लिए भूमि में 8/10 सेमी भूमि मे नमी की ज़रूरी है। खेत की तैयारी अगर बुवाई मेन देरी हो जाती है तो 5/10 प्रतिशत बीज को बड़ा कर डाले.

सोयाबीन के पौधों की संख्या

सोयाबीन के पौधो के संख्या की 3/4 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर में उपयुक्त है

सोयाबीन की खेती के लिए तैयारी व भूमि

सोयाबीन को बोने से पहले ध्यान रखें खेत समतल होना ज़रूरी है. जुलाई में बारिश का मौसम शुरू होने पर पानी का खेत में ठहराव ना हो सके. खेत में पानी भर जाने से सोयाबीन की फ़सल ख़राब हो सकती है. पथरीली भूमि को छोड़कर कर सभी जगह सोयाबीन को बोया जा सकता है. समतल होने से पानी का निकास होगा ओर पैदावार भी अच्छी हो सकती है. चिकनी ओर दोमट भूमि उपयुक्त होती है. खाली खेतों की ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से अप्रैल से 15 मई तक 10 से 12 इंच गहराई तक करें.

* मृदा में वातायन, पानी सोखने एवं जल धारण शक्ति, मृदा भुरभुरापन, भूमि संरचना व मृदा भौतिक गुणो में सुधार होगा.
* खरपतवार नियंत्रण में सहायता प्राप्त होगी. 
* कीड़े मकोड़े तथा बिमारियों के नियंत्रण में सहायक होता है . 
* उर्वरक प्रबंधन एवं जिवांश पदार्थ के विघटन में लाभकारी.

सोयाबीन के लिए भूमि अनुसार उपयुक्त किस्में:

मध्य प्रदेश में सोयाबीन की निम्न क़िस्मों का उपयोग किया है

किस्म

पकने की अवधि (दिन)

विवरण

जे.एस. 203 

 87से 88

सफेद फूल शीघ्र पकने वाली चारकोल रोड एवं गर्डन बीटल प्रतिरोधी

जे.एस. 202

 90से 95

सफेद फूल पीला मोजाइक एवं चारकोल राट प्रतिरोधी

आर.वी.एस.2001-4

  90से 95

सफेद फूल गर्डन बीटल एवं सेमीलूपर कीट एवं रोगों के प्रति सहनशील

ये भी पढ़ें: Soybean Cultivation And Production: सोयाबीन की उन्नत खेती से कमाएं मुनाफा, पढ़ें संपूर्ण जानकारी

सोयाबीन की अन्य क़िस्में:

लेकिन वर्तमान में पैदावार कम होने से नई क़िस्में का उपयोग किसानों  द्वारा किया रहा है जिससे पैदावार अधिक होती है   

किस्म

पकने की अवधि (दिन)

विवरण

जे.एस. -95-60

90- 95

सफेद फूल गर्डन बीटल एवं सेमीलूपर कीट एवं रोगों के प्रति सहनशील

जे.एस.- 1050

85-90

सफेद फूल गर्डन बीटल एवं सेमीलूपर कीट एवं रोगों के प्रति सहनशील अधिक पैदावार

 

चिन्हित

अवधि मध्यम

उपज

विशेषताएं

जे.एस. 20-29 2014

90-95 दिन

25-30 क्विंटल/हैक्टेयर 100 दाने का वजन 13 ग्राम से ज्यादा

बैंगनी फूल, पीला दाना, पीला विषाणु रोग, चारकोल राट, बेक्टेरिययल पश्चूल एवं कीट प्रतिरोधी बेक्टेरिययल पश्चूल एवं कीट प्रतिरोधी

 

चिन्हित

अवधि मध्यम

उपज

विशेषताएं

जे.एस. 20-34 2014

90-95 दिन87-88 दिन

22-25 क्विंटल/हैक्टेयर

100 दाने का वजन 12-13 ग्राम

बैंगनी फूल, पीला दाना, चारकोल राट, बेक्टेरिययल पश्चूल, पत्ती धब्बा एवं कीट प्रतिरोधी, कम वर्षा में उपयोगी

 

चिन्हित

अवधि मध्यम

उपज

विशेषताएं

एन.आर.सी-86 2014

90-95 दिन

20-25 क्विंटल/हैक्टेयर

100 दाने का वजन 13 ग्राम से ज्यादा

सफेद फूल, भूरा नाभी एवं रोये, परिमित वृद्धि, गर्डल बीटल और तना-मक्खी के लिये प्रतिरोधी, चारकोल रॉट एवं फली झुलसा के लिये मध्यम प्रतिरोधी जल्दी तैयार होने वाली किस्में-किसानों  से जानकारी में पाया की सोयाबीन को अधिक मात्रा में उत्पादन करने के लिए 95/60 ओर 1025 क़िस्म का उपयोग करने से पैदावार अधिक होती और किसानों को निश्चित लाभ भी मिलता है. एक बीघा में सोयाबीन का उत्पादन 5/6 कुंतल हो जाती है.

 

सोयाबीन के बीज (Soyabean Seeds) 

80/85 किलो बीज प्रती हेक्टेयर का उपयोग किया जाए. अंकुरण प्रतिशत 75/80 से कम नही होना चाहिए.

उपचार-  बोने से पूर्व प्रति किलोग्राम बीज को थीरम व 1.0 ग्राम बोने से कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के मिश्रण से शोधित कर लेना चाहिए अथवा कार्बेन्डाजिम 2.0 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करना चाहिए. बोने से पहले बीज को सोयाबीन के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करें. एक पैकेट 10 कि.ग्रा. बीज के लिये पर्याप्त होता है. एक पैकेट कल्चर को 10 कि.ग्रा. बीज के ऊपर छिड़क कर हल्के हाथ से मिलायें जिससे बी के ऊपर एक हल्की पर्त बन जाये. इस बीज की बुवाई तुरन्त करें. तेज धूप से कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है, ऐसे खेतों में जहां सोयाबीन पहली बार या काफी समय बाद बोई जा रही हो, कल्चर का प्रयोग अवश्य करें.  

सोयाबीन किसान 228 की नई प्रजाति है यह एक कम अवधी में सोयाबीन क़िस्म हैं जो सभी क़िस्मों से अधिक उत्पादकता दूसरों की तुलना में बेहतर है. इस क़िस्म के पौधा 75/80 सेंटीमीटर की ऊँचाई होती है.

बीज कंपनियों के नाम (Seed Companies Name)

  • Shine Brand Seeds Research Certified Soybean Seed

  • Malwa Soybean Seeds, For Agriculture

  • Organic soybean meal for agriculture 

  • Krashi soybeans agriculture 

English Summary: Modern soybean cultivation method, right timing of sowing and improved varieties Published on: 20 May 2020, 05:38 PM IST

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