लहसुनकंद रूपी फसलों में से एक खास फसल है, जिसकी ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी बहुत मांग है. जिसका उपयोग सब्जी और मसलों के रूप में प्रमुखता से किया जाता है.इतना ही नहीं, यह फसल देश के लिए एक महत्त्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जित करती है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy)को बढ़ावा मिलता है.भारत में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश,राजस्थान,गुजरात और उत्तर प्रदेश में लहसुन का उत्पादन बड़े स्तर (large scale)पर किया जाता है. यह फसल ज्यादातर सिंचित क्षेत्र में की जाती है. मसालेदार भोजन खासकर मांसाहारी भोजन में लहसुन का इस्तेमाल जरूर किया जाता है.लहसुन से निर्मित पेस्ट, पाउडर, फ्लेक्स, लहसुन कैप्सूल,लहसुन तेल, लहसुन आचार आदि उत्पाद बाजार में काफी लोकप्रियहै.कटाई के समय लहसुन का बाजार मूल्य कम होता है और भंडारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण किसान को उपज औने पौने दाम पर बेचनी पड़ती है क्योंकि लहसुन को सही तरीके से भंडारण नहीं करने पर ये सड़ने लगता है. अतः किसान को खुद का सस्ते और अच्छे भंडारण क्षमता की संरचना की आवश्यकता होती है.
लहसुन कंद को पतियों के साथ लहसुन को अच्छे हवादार कमरे में लटकाकर भंडारित किया जा सकता हैलेकिन इस विधि का प्रयोग व्यवसायिक स्तर पर करना संभव नहीं है और इससे ज्यादा स्थान की जरूरत पड़ती है. लहसुन के कंद शीघ्र अंकुरण, उच्च सापेक्ष आर्द्रता के कारण कारण सड़न औरफफूंद के शिकार होकर खराब हो जाते हैं.
कटाई के बाद लहसुन में होने वाले रोग और समाधान क्या हैं? (Technique to control diseases arising in garlic after harvesting)
लहसुन में भंडारण और विपणन के समय ब्लू मोल्ड रॉट, बल्ब की क्षति, एस्परजिलस रॉट, फ्यूसेरियम रॉट, ड्राइ रॉट एवं ग्रे मोल्ड रॉट रोग लगते हैं. इसमें सबसे ज्यादा कंद ब्लू मोल्ड रॉट रोग के कारण खराब होती है, जिसमें लहसुन में घाव और चकते बन जाते हैं. बाद वाली अवस्थाओं में इसके फांके मुलायम, स्पंजी और पेनिसिलियमफफूंद के पाउडर से भर जाते हैं. शुष्क रॉट रोग से ग्रसित फांके अंकुरण करने पर भी अंकुरित नहीं होती.ऐसे रोग दिखाई देने पर किसानों या व्यापारियों को कई तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत है. ऐसे में रोगों को फैलने से रोकने के लिए जिनेब,बोरडेक्स मिक्स्चर और नबम नमक दवाई का छिड़काव करें. इसके अलावा मकड़ी की समस्या को रोकने के लिए मिथाइल ब्रोमाइड की गैस 32 ग्राम/मीटरकी दर से उपयोग करनी चाहिए.
कम लागत की भंडारण संरचना (Low cost storage structure)
कमरे के तापमान पर लहसुन के कंद रखने पर 43-50% तक नुकसान होता है.लहसुन की यह भंडारण संरचना लगभग एक लाख रुपए की कम लागत में तैयार होती है. यह एक छप्पर वाली बांस की लहसुन भंडारण संरचना है. जिसे केवीके बाराँ, राजस्थान ने विकसित किया है.सीमेंट फर्श के साथ बांस की छड़ से बनाई गई यह संरचना में ढांचा 15फीट चौड़ा,30 फीट लम्बा और 12 फीट ऊंचा आकार का होता है.इस संरचना में 10 टन लहसुन रखने की क्षमता विकसित की गई है.
भंडारण संरचना की विशेषताएं (Features of storage structure)
इस संरचना में लहसुन को पूरे पौधे के रूप में भंडारण किया जाता है तथा इसकी लम्बी अवधि बढ़ाने के लिए वायुमार्ग को विकसित किया जाता है.उचित वायु-संचार के कारणलहसुन की उपज क्षमता भी बढ़ती है.लहसुन के ढ़ेर की ऊंचाईबढ़ने के साथ लहसुन कंद के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है अतः 3 फीट ऊंचाई रखने पर कंद का वजन कम होता है, साथ ही पूरे लहसुन के पौधों का भंडारण में सड़न कम आंकीजाती है. इसलिए लहसुन के लंबे समय तक भंडारण के पीछे उचित वायु संचार और 3 फीट ऊंचाई तक लहसुन का विभाजन करना उचित माना गयाहै.
सम्पर्क सूत्र (For contact)
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इस संरचना की अधिक जानकारी के लिए केवीके बाराँ –राजस्थान जाकर या 07457 – 244862 पर फोन करके सम्पर्क किया जा सकता है.
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लहसुन की भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए देश के प्रतिष्ठित प्याज और लहसुन अनुसंधान निदेशालय, पुणे जाकर या 02135-222026पर फोन करके सम्पर्क किया जा सकता है.
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भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलौर या निदेशक 080-28466471 या 080-28466353 से सम्पर्क किया जा सकता.
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