भारत में पहली बार हींग की खेती शुरू हुई है. पालमपुर स्थित इंस्टीच्यूट ऑफ़ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी के प्रयासों से हींग की खेती हिमाचल प्रदेश के सुदूर लाहौल घाटी में इसकी खेती की जा जाएगी. दरअसल, हिमाचल के इस क्षेत्र में काफी बंजर भूमि है जिसका उपयोग अब हींग की खेती में किया जाएगा. यहां ठंडी और रेगिस्तानी परिस्थितियों की जमीन है जो हींग की खेती के लिए उपयुक्त है.
740 करोड़ की हींग आयात करता है भारत
हींग एक प्रमुख मसाला है जिसका उपयोग दालों, सब्जियों समेत अनेक खाद्य पदार्थों में किया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हींग काफी महंगा मसाला माना जाता है. इसके लिए भारत हर साल 740 करोड़ रुपये खर्च करता है. देश में हींग का आयात ईरान, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से किया जाता है. भारत में सालाना 1200 टन कच्ची हींग मंगाई जाती है.
हींग का पहला पौधा रोपा -
हाल ही में लाहौल घाटी के क्वारिंग नाम के गांव में किसान के खेत में हींग के पौधे रोपे गए है. इसका पहले पौधे की रोपाई सीएसआईआर–आईएचबीटी के डायरेक्टर डॉ. संजय कुमार ने की. गौरतलब है कि भारत में फेरूला असाफोटिडा पौधों को रोपने की सामग्री में अभाव के कारण इसकी खेती संभव नहीं हो पा रही थी. इसकी खेती के लिए सीएसआईआर–आईएचबीटी संस्थानों अथक प्रयास किए उसके बाद ही देश में हींग की खेती संभव हो पाई. वहीं ईरान से भी हींग के बीजों के 6 गुच्छों को लाया गया है.
कैसा होता है पौधा
हींग का पौधा ठंडी और शुष्क परिस्थितियों में ग्रोथ करता है. वहीं इसके पौधे की जड़ों इ ओलियो-गम नाम के राल के पैदा होने में ही 5 साल लग जाते हैं. भारत का हिमालयी क्षेत्र ठंडा और रेगिस्तानी है इस कारण से यह हींग की खेती के लिए उपयुक्त माना जा रहा है. बता दें कि हींग एक तरह से ओलियो-गम होता है जिसे फेरुला अस्सा-फोसेटिडा की मांसल जड़ों से निकाला जाता है. दुनियाभर में फेरुला की तक़रीबन 130 किस्में है. लेकिन हींग के लिए फ़ेरुला अस्सा-फ़ेटिडिस ही सबसे उपयोगी किस्म है.
कैसे बनती है हींग -
हींग के जानकर श्याम प्रसाद का कहना है कि भारत में हींग अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान से रेजीन यानी दूध के रुप में आता है. यह दूध एक पौधे से निकलता है. यहां से आए इस दूध को मैदा के साथ प्रोसेस किया जाता है. जिससे हींग तैयार होती है. इसकी प्रोसेस दिल्ली के खारी बाबली इलाके में होती है. यहां इसके लिए कई यूनिट बनी हुई है.
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