हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के किसानों ने मक्का, धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों से अतिरिक्त अपनी आय को बढ़ाने के लिए नए आजीविका विकल्पों की तलाश की है. दरअसल सुगंधित पौधों की खेती ने किसानों को अतिरिक्त आमदनी उपलब्ध कराई है.
किसानों ने उन्नत किस्म के जंगली गेंदे (टैगेट्स मिनुटा) के पौधों से सुगन्धित तेल निकाला है और जंगली गेंदा के तेल से होने वाले लाभ ने पारंपरिक मक्का, गेहूं और धान की फसलों की तुलना में किसानों की आय को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है.
सुगंधित पौधों की खेती और प्रसंस्करण का कार्य हुआ शुरू
सोसाइटी फॉर टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट (एसटीडी), मंडी कोर सपोर्ट ग्रुप, बीज विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किए गए विभिन्न उपायों के माध्यम से किसानों के जीवन और आजीविका में सकारात्मक परिवर्तन लाया गया है. सोसाइटी फॉर टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट ने सीएसआईआर- हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के साथ मिलकर तकनीकी सहयोग से एक आकांक्षी जिले चंबा के भटियात ब्लॉक के परवई गांव में किसान समुदाय को शामिल करते हुए सुगंधित पौधों (जंगली गेंदा, आईएचबीटी की उन्नत किस्म) की खेती और प्रसंस्करण कार्य शुरू किया है.
ग्रीन वैली किसान सभा परवई का गठन
बता दें, कि 40 किसानों के एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) जिसे ग्रीन वैली किसान सभा परवई कहा जाता है, उसका गठन किया गया है और वित्तीय मदद के लिए इसे हिमाचल ग्रामीण बैंक परछोड़ से जोड़ा गया है. परवाई गांव में 250 किलोग्राम क्षमता की एक आसवन इकाई स्थापित की गई और किसानों को जंगली गेंदा की खेती, पौधों से तेल की निकासी, पैकिंग तथा तेल के भंडारण की कृषि-तकनीक में प्रशिक्षित किया गया और इसके बाद जंगली गेंदा की खेती एवं उससे तेल निकलने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. निकाले गए तेल को 9500 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा जा रहा है और इसका इस्तेमाल दवा उद्योगों द्वारा इत्र और अर्क तैयार करने में किया जाता है.
किसानों की आय में हुई बढ़ोतरी
पहले किसानों की आय जो परंपरागत फसलों से प्रति हेक्टेयर लगभग 40,000-50,000 रुपये होती थी, वहीं अब जंगली गेंदे की खेती और तेल के निष्कर्षण द्वारा प्रति हेक्टेयर लगभग 1,00,000 रुपये की वृद्धि हुई है.
न्यूज़ स्रोत-विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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