ग्वार फली स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी लाभदायक मानी जाती है. इसकी फलियां गुच्छों में आती हैं. ग्वार फली को अंग्रेजी में "क्लस्टर बीन" कहा जाता है. इसकी खेती से किसानों को काफी लाभ पहुंचता है, इसी को देखते हुए आज हम किसानों को ग्वार फली की खेती की जानकारी देने जा रहे हैं.
ग्वार फली की उन्नत किस्में
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली ने 'पूजा सदाबहार' तथा 'पूसा मौसमी' किस्मों को विकसित किया है. बाद में इन दोनों के संकरण से 'पूसा नव बहार' विकसित किया है. इन किस्मों से किसानों को बंपर उत्पादन मिलता है.
ग्वार फली की बुवाई
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ग्वार फली को गर्मी के मौसम की फसल के लिए फरवरी - मार्च में तथा वर्षाकालीन फसल के लिए जून-जुलाई में बोया जाता है.
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फसल से अच्छी पैदावार के लिए 30 जुलाई तक बुवाई कर देनी चाहिए.
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प्रति हैक्टेयर 15-20 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. सिंचित व सब्जी की किस्मों में बीज की बुवाई में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. बीज 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी बोनी चाहिए.
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वर्षा ऋतु में अधिक बढ़वार के कारण कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर गर्मी में यह दूरी 45 सेंटीमीटर रखें.
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ग्वार फली का बीजोपचार
अंगमारी रोग से बचाव के लिए बुवाई से पूर्व प्रति किलोग्राम बीज को 250 पी.पी.एम. एग्रोमाईसिन के घोल में पांच मिनट भिगोकर उपचारित करें.
ग्वार में कीट व्याधि नियंत्रण
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कातरा - पतंगों को प्रकाश पाश पर आकर्षित कर नष्ट करें.
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मोयला, सफेद मक्खी, तेला- मोनोक्रोटोफोस 36 डबल्यू एस सी या मिथाइल डीमाटॉन 25 ई सी. को उपयोग में लाएं.
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झुलसा रोग - झुलसा नियंत्रण हेतु 2 से 3 किलो तांबायुक्त फफूंदनाशी का प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
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छाछया रोग -25 किलोग्राम गंधक चूर्ण अथवा एक लीटर केराथेन एस सी का प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
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