रेशम उद्योग में रोजगार की काफी अच्छी संभावनाएं रहती हैं. पिछले कुछ सालों में भारत में रेशम उद्योग में काफी बढ़ोतरी हुई है. भारत ने रेशम के उत्पादन के मामले में जापान और पूर्व सोवियत संघ जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है.
भारत में मलबरी, टसर, ओक टसर, एरि और मूंगा जैसे रेशम की किस्मों का उत्पादन किया जाता है. रेशम की खेती करने में कीटों का पालन होता है और इन कीटों के लिए भोजन की व्यवस्था भी करनी होती है. इन कीटों को पालने के लिए अधिक जगह की आवश्यकता नहीं होती है.
खेती का तरीका
रेशम की खेती के लिए एस से दो एकड़ खेत में रेशम के कीट के लिए शहतूत की पत्तियों की व्यवस्था कर दें. शहतूत की पत्तियां ही इनका भोजन होती हैं, जिन्हें खाकर यह रेशम का निर्माण करते हैं. किसान भाइयों को रेशम की खेती करने से पहले इसके बारे में प्रशिक्षण लेना बहुत ही आवश्यक होता है.
शहतूत की रोपाई
शहतूत के पौधों को क्यारियों में लगाना चाहिए. इन क्यारियों में बीच की दूरी 6 इंच रखनी चाहिए. शहतूत के पौधों की कटिंग को चारों तरफ की मिट्टी को अच्छी तरह से दबा दें, ताकि हवा से कटिंग बिल्कुल ही न सुखे. इसके बाद आप गोबर की भुरभुरी खाद की एक पतली पर्त क्यारी में फैलाकर इस पर सिंचाई कर दें.
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खाद
पौधों को लगाने के लगभग 2 से 3 महीने के बाद खाद और उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए. एक एकड़ के खेत में 50 किग्रा नाइट्रोजन का प्रयोग हिसाब से किया जाना चाहिए. इसके पश्चात् सितम्बर और अक्टूबर के बीच गैपफिलिग़ कर लेनी चाहिए. पौधे लगाने के ठीक 3 महीने के बाद हल्की निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए.
सिंचाई
मानसून के दौरान लगाये गये पौधों में प्राकृतिक वर्षा के कारण सिंचाई की कम आवश्यकता होती है. वर्षा के सीजन में यदि 15 से 20 दिनों के बीच बारिश नही होती है, तो पौधौ की सिंचाई करना अत्यंत आवश्यक पड़ जाती है.
उपयोगी यंत्र
रेशम की खेती के लिए विद्युत स्प्रेयर, कीट पालन का स्टैंड, कीट पालन ट्रे, फोम पैड, पैराफिन कागज, नायलॉन की जाली, पत्ते रखने के लिए टोकरी, चटाई बैग और बांस के माउंटेजया नेट्राइक की आवश्यकता होती है.
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