राजस्थान के कुंवारिया क्षेत्र में जहां कुछ वर्ष पूर्व तक चारों तरफ गन्ने के खेतों की हरियाली दिखाई पड़ती थी और पूरे क्षेत्र में गुड़ की महक वातावरण में बिखरती थी वहीं आज क्षेत्र में लगातार गिरते भू-जल स्तर से गन्ने का रकबा भी घटता जा रहा है। इसके अलावा नील गाय और सियार जैसे जंतुओं से फसल के बचाव को लेकर कोई प्रबंध नहीं होने की वजह से खेती प्रभावित हो रही है। इसके बावजूद किसानों के लिए बड़ी बातें करने वाले प्रशासन की तरफ से भी कोई गंभीरता नहीं बरती जा रही है।
गन्ना एक ऐसी फसल है जो तुरंत नकदी देने वाली फसल मानी जाती है। लेकिन पानी के साथ ही अन्य समस्याओं के चलते गन्ना उत्पादक किसानों का इस फसल के प्रति मोहभंग होता जा रहा है। गन्ने की फसल के सिमटने के साथ ही गुड़ बनाने का धंधा भी धीरे-धीरे ठप्प पड़ने लगा है। आज से करीब ढाई दशक पहले तक क्षेत्र में सैंकड़ों चरखियां अक्टूबर माह में चलना शुरू हो जाती थी। वही गत वर्ष स्थिति यह रही है. करीब पच्चीस चरखियों में गुड़ बनाया गया है। अगर जनवरी की बात करें तो इस महीने केवल चार चरखियां ही चल पाई हैं।
कभी चलती थी शुगर मिल
इस क्षेत्र में तीन दशक पहले तक गन्ने की बंपर पैदावार होती थी। गन्ने के इस बंपर उत्पादन को देखते हुए कुंवारिया मार्ग पर शुगर मंडी को लगाया गया था। कई वर्षों तक इसमें उत्पादन भी हुआ, लेकिन गन्ने की पैदावार के लागतार कम होने के चलते मिल के लिए पर्याप्त गन्ना नहीं मिल पाने की वजह से मिल बंद हो गई थी। वहां के किसानों ने बताया कि क्षेत्र की गुणवत्ता के कारण ही शक्कर मिल की स्थापना की गई है। अच्छी गुणवत्ता होने से शक्कर काफी अच्छी बनती है।
पानी की ज्यादा जरूरत
किसानों का कहना है कि गन्ने की फसल में पानी की जरूरत है। वर्तमान में पानी की कमी के चलते फसल उत्पादन में गिरावट आई है। इसीलिए बेहतर जल प्रबंधन के सहारे इस फसल की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है।
घट रहा है मुनाफा
गन्ना उत्पादक किसान भंवरलाल गुर्जर और कालूराम जाट का कहना है कि गन्ने की फसल वार्षिक होती है। सालभर में एक ही बार इस तरह की फसल का उत्पादन किया जाता है। पानी की कमी, फसल में रोग और साल भर की कमाई पर पानी फिरने का खतरा बना रहता है। वहीं दूसरी फसलों में किसान दो-तीन दूसरी फसलों को कर लेते है। ऐसे में गन्ने की जगह किसान अब अन्य फसलों की बुवाई करने में रूचि लेने लगे है.
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