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दलहनी फसलों में रोग की पहचान और प्रबंधन, पढ़ें पूरी जानकारी

दलहनी फसलों में जड़ एवं कॉलर सड़न और हरदा रोग प्रमुख समस्याएं हैं, जो उत्पादन को प्रभावित करती हैं. जड़ सड़न में पौधे के जड़ व तना काले हो जाते हैं, जबकि हरदा रोग में पत्तियों व तने पर सफेद-भूरे फफोले बनते हैं. प्रबंधन के लिए बीज उपचार (कार्बेन्डाजिम, ट्राईकोडरमा) और पौध संरक्षण दवाओं का छिड़काव जरूरी है.

लोकेश निरवाल
Disease identification and management in pulse crops
दलहनी फसलों में जड़ एवं कॉलर सड़न और हरदा रोग की समस्या, सांकेतिक तस्वीर

दलहनी फसलें भारतीय कृषि की रीढ़ मानी जाती हैं, लेकिन इन फसलों में लगने वाले रोग समय-समय पर किसानों के लिए गंभीर समस्या बन जाते हैं. सही समय पर इन रोगों की पहचान और उनका उचित प्रबंधन फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बनाए रखने में मदद करता है. ऐसे में आइए आज के इस लेख में हम  दलहनी फसलों में लगने वाले प्रमुख रोग की पहचान और प्रबंधन के बारे में जानते हैं.

दलहनी फसलों में लगने वाले दो प्रमुख रोग

दलहनी फसलों में जड़ एवं कॉलर सड़न और हरदा रोग लगने की संभावना सबसे अधिक होती है. दरअसल, जड़ एवं कॉलर सड़न और हरदा रोग दलहनी फसलों के उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं. समय पर पहचान और प्रबंधन की सही विधियों का पालन करके किसान इन समस्याओं से बच सकते हैं और फसल की उपज को बढ़ा सकते हैं. जागरूकता और सही तकनीक अपनाना ही रोगमुक्त और स्वस्थ फसल का राज है.

जड़ एवं कॉलर सड़न रोग

इस रोग के कारण पौधों के जड़ और तने के निचले हिस्से पर प्रभाव पड़ता है. पौधे को बीच से फाड़ने पर निचले भीतरी ऊतक काले नजर आते हैं. यह रोग फसल की वृद्धि में बाधा डालता है और उत्पादन को प्रभावित करता है.

रोग का प्रबंधन

  1. बीज उपचार:
    • ट्राईकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या
    • कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार कर बोआई करें.
  2. रोग के लक्षण दिखने पर:
    • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (50%) का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ क्षेत्र में पटवन करें.
    • कैप्टान (70%) + हेक्साकोनाजोल (5%) का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ क्षेत्र में छिड़काव करें.

हरदा रोग

यह रोग अधिक नमी, ठंडे तापमान और पौधे की वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा होने पर होता है. रोग के लक्षणों में पत्तियों, टहनियों और फलियों पर गोलाकार सफेद-भूरे रंग के फफोले दिखते हैं. तने पर ये फफोले काले हो जाते हैं और पौधे सूखने लगते हैं.

रोग का प्रबंधन

  1. बीज उपचार:
    • कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें.
    • राइजोबियम कल्चर 20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज पर लगाकर बोआई करें.
  2. छिड़काव:
    • कार्बेन्डाजिम और मैन्कोजेब का संयुक्त उत्पाद 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.

सावधानियां और अतिरिक्त जानकारी

  • रोग के शुरुआती लक्षण दिखते ही उचित कदम उठाएं.
  • खेत में पानी के जमाव से बचें और फसल की उचित देखभाल करें.

नोट:  दलहनी फसलों से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए किसान कॉल सेंटर (टोल फ्री नंबर: 18001801551) पर संपर्क करें या अपने जिले के सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण से परामर्श लें.

English Summary: Disease identification and management in pulse crops Published on: 27 December 2024, 01:58 PM IST

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