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बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में भी की जा सकती है खेती, जानिए 3 आसान तकनीकें

बरसात के दिनों में पूर आयी नदियां, उफनते नाले, परेशान होते लोग, और सड़कों पर भरा हुआ पानी ये दृश्य आम बात है. बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसके कारण आम जनमानस के साथ ही किसानों का जीवन भी प्रभावित होता है. देश के कई राज्य ऐसे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है.

कंचन मौर्य
Cultivation
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बरसात के दिनों में पूर आयी नदियां, उफनते नाले, परेशान होते लोग, और सड़कों पर भरा हुआ पानी ये दृश्य आम बात है. बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसके कारण आम जनमानस के साथ ही किसानों का जीवन भी प्रभावित होता है. देश के कई राज्य ऐसे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है.

इसमें बिहार का नाम भी शामिल है. बिहार में बाढ़ एक बड़ी मुसीबत लेकर आती है, जिससे हर साल हजारों हेक्टेयर में लगी फसल पानी में डूबकर बर्बाद हो जाती है. बता दें कि हर साल बिहार में बाढ़ के कारण लगभग 60 प्रतिशत जमीन डूब जाती है. इस कारण किसानों को भारी नुकसान भी होता है, पर एक विशेष ख़बर कृषि जागरण आपके लिए लाया है, किसान बाढ़गस्त क्षेत्रों में भी खेती कर मुनाफा कमा सकते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ते रहिए.

बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में खेती योग्य किस्में  (Cultivate these varieties in waterlogged areas)

जब बिहार में बाढ़ आती है, तब कई क्षेत्रों में पानी भर जाता है और लंबे समय तक जलजमाव की स्थिति बनी रहती है. कभी-कभार अक्टूबर में भरा बाढ़ का पानी जनवरी फरवरी तक सूखता है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा धान की खास किस्म तैयार की गई हैं, ताकि इन क्षेत्रों में धान की फसल बर्बाद न हो. बता दें कि किसान जलनिधि और जलमग्न किस्मों की बुवाई कर सकते हैं, जिन्हें जलजमाव की स्थिति में भी नुकसान नहीं होता है.

कर सकते हैं रबी फसल की खेती (Can do Rabi crop cultivation)

बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों के कई किसान धान की खेती कर पाते हैं या नहीं भी करते हैं, लेकिन अगर किसान जमीन के सूखने का इंतजार करेंगे, तो उन्हें रबी सीजन की फसल लगाने में भी देर होगी. ऐसे में किसान कृषि की नई तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं. इन क्षेत्रों में किसान गेंहू, मसूर और चना की बुवाई कर सकते हैं.

खेती के लिए ये 3 तकनीक है उत्तम  (These 3 techniques are best for farming)

  • जीरो ट्रिलेज तकनीक

  • सीधी बुवाई की विधि

  • उटेरा फसल की तकनीक

जीरो ट्रिलेज तकनीक   (Zero tillage technology)

इसका मतलब शून्य जुताई से होता है. इसमें ट्रैक्टर के पीछे एक मशीन लगी होती है, जिससे जुताई नहीं की जाती है, बल्कि जमीन में सिर्फ एक चीरा लगाया जाता है. इनमें ड्रिल लगी होती है, जिससे बीज उसमें गिर जाता है. किसान इस तकनीक से गेंहू, चना और मसूर की खेती कर सकते हैं, तो वहीं कुछ क्षेत्रों में मटर की भी खेती की जा सकती है.

जीरो ट्रिलेज तकनीक करते समय ध्यान रखने वाली बातें  (Things to keep in mind while doing zero tillage technique)

  • जीरो ट्रिलेज के दौरान जमीन में बुवाई तब होती है, जब नमी की ज्यादा हो.

  • प्रति हेक्टेयर 125-150 किलोग्राम बीज की बुवाई करनी पड़ती है.

  • इस तकनीक से बुवाई करने पर गेंहू की शाखाएं कम आती हैं.

सीधी बुवाई की विधि (Direct Sowing Method)

बुवाई की इस विधि में किसान इस बात का ध्यान रखें कि बुवाई से पहले बीजोपचार जरूर कर लें. इसके लिए फंगीसाइड और कीटनाशक से बीजोपचार कर सकते हैं. इसके बाद बीज को लाल रंग की डाई से रंग दें, ताकि चिड़ियां बीजों को न खाएं, साथ ही उनमें कीड़े भी न लगें.

उटेरा तकनीक (Utera technology)

यह बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में खेती करने की तीसरी तकनीक है. इसके तहत जब खेत की फसल तैयार हो जाए, तब कटाई से लगभग 2 दिन पहले खड़ी फसल के बीच में ही बीज खेसारी या मसूर के बीज की बुवाई की जाती है. इससे फायदा यह है कि जब फसल की कटाई होगी, तब पैर से बीज दबकर अंदर चले जाएंगे.

बाढ़ का पानी सूखने के बाद फायदा  (Benefits after the flood water dries up)

जब बाढ़ का पानी सूख जाता है, तब जमीन पर आधा इंच से लेकर 2 से 3 तीन इंच तक गाद जम जाती है, जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है. इसके साथ ही जमीन में माइक्रोब्स की संख्या बढ़ती है और यह लंबे समय तक जलजमाव के कारण होता है.

इस तरह हमारे किसान भाई बाढ़ की स्थिति में भी आसान तरीके से खेती कर सकते हैं. इससे उन्हें फसलों का अच्छा उत्पादन भी प्राप्त होगा. कृषि संबंधित ऐसी ही जरूरी जानकारियों के लिए पढ़ते रहिएं कृषि जारण हिंदी पोर्टल .

English Summary: cultivation in flood prone area with 3 techniques Published on: 09 July 2021, 03:13 PM IST

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