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Kalmegh Cultivation: काल मेघ की खेती और प्रबंधन

कालमेघ एक आयुर्वेदिक एवं होम्योपैथिक पौधा है. इसके तने, पत्ती, फूल को दवा के रुप में उपयोग किया जाता है.

रवींद्र यादव
काल मेघ की खेती
काल मेघ की खेती

कालमेघ एक औषधीय पौधा है. इसे कडू चिरायता व भुईनीम के नाम से भी जाना जाता है. कालमेघ के विकास के लिए शुष्क जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. यह एक शाकीय पौधा होता है, जिसकी ऊँचाई 1 से 3 फीट तक होती है. इसकी छोटी–छोटी फलियों में बीज लगते हैं, जो आकार में छोटे व भूरे रंग के होते हैं. इसका उपयोग आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाईयों के निर्माण में किया जाता है. यह यकृत विकारों तथा मलेरिया रोग से निदान के लिए एक औषधी का काम करता है. खून साफ करने, जीर्ण ज्वर एवं विभिन्न चर्म रोगों को दूर करने में भी इसका उपयोग किया जाता है.

खेती का तरीका

जलवायु

इसको गर्म नम तथा पर्याप्त सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है. मानसून के समय इसकी काफी वृद्धि होती है. सितम्बर के समय जब मौसम न ज्यादा गर्म और न ही ठंडा होता है तब इसके पौधों पर फूल आने लगते हैं. फूल तथा फलियों का बनना दिसम्बर के मध्य तक होता है. दक्षिण भारत में इस तरह की जलवायु अक्टूबर से फरवरी या मार्च के बीच होती है, जो कालमेघ की खेती के लिए उपयुक्त होती है.

भूमि

मध्यम उर्वरता तथा उचित जल निकास युक्त बलुई दोमट, दोमट भूमि में इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है. इसको छायादार स्थानों पर भी उगाया जा सकता है. इसके खेत की तैयारी के लिए एक जुताई के बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल कर देना चाहिए. इससे भूमि भुरभुरी भी हो जाती है.

खाद तथा उर्वरक

कालमेघ को कम तथा मध्य उर्वरता वाली भूमि में उगाया जा सकता है. मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए 10 से 15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग किया जा सकता है. कालमेघ को 80 किलो नत्रजन तथा 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देने की आवश्यकता होती है, जिससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है तथा उपज भी बढ़ जाती है. नत्रजन की मात्रा को दो भागों में 30 से 45 दिन के अंतराल पर डालना चाहिए.

निराई-गुड़ाई

फसल के उचित रूप से बढ़ने हेतु एक या दो निकाई गुड़ाई की आवश्यकता होती है. मानसून के समय फसल पर्याप्त रूप से बढ़ती है तथा जमीन को घेर लेती है जिससे खरपतवार दब जाते हैं और निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

कटाई

कालमेघ के पेड़ 90 से 100 दिन के बाद जब अपनी पत्तियां गिराना शुरु कर दे तब इसकी कटाई शुरु कर देनी चाहिए. इसकी कटाई को 100 से 120 दिन तक का समय लग जाता है. यदि एकवर्षीय रूप में फसल को मई-जून में उगाया गया हो तो उसकी कटाई सितम्बर में करनी चाहिए. इसके लिए कृषि क्रियाओं का उचित प्रबन्ध आवश्यक है. जाड़ों के मध्य में फसल सुषुप्तावस्था में रहती है. फूल निकलने के समय पत्तियों में ऐंड्रोग्रफेलाइट की मात्रा अधिक होती है तथा यह पौधों के सम्पूर्ण भागों में पाया जाता हैं. इसलिए सम्पूर्ण पौधे के ऊपरी भाग को काट कर छाया में सुखाना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः औषधीय पौधे कालमेघ की खेती कैसे करें, आइए जानते हैं पूरी जानकारी

पैदावार

कालमेघ की खेती में प्रति एकड़ 5 से 6 टन सूखी कालमेघ की उपज प्राप्त की जा सकती है. बाजर में इसकी कीमत 70 से 80 हजार प्रति टन कीमत है. जिसकी खेती कर आप अच्छी कमाई कर सकते हैं.

English Summary: Cultivation and Management of Kalmegh Published on: 25 January 2023, 03:29 PM IST

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