Mustard Cultivation: सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है जिसका भारत की अर्थव्यवस्था में एक विशेष स्थान है. सरसों (लाहा) कृषकों के लिए बहुत लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि इससे कम सिंचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त होता है. किसान इसकी खेती मिश्रित रूप में और बहु फसलीय फसल चक्र में आसानी से कर सकते है. भारत वर्ष में क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी खेती प्रमुखता से राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड़, बिहार एवं पंजाब में की जाती है. अन्य फसलों की तरह से सरसों की फसल को स्वस्थ जीवन पूरा करने और अच्छी उपज देने के लिए 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. अगर इसमें से किसी एक पोषक तत्व का भी कमी हो जाये तो पौधे अपनी पूरी क्षमता से उपज नहीं दे पाते हैं. नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और गंधक सल्फर के साथ ही पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म तत्व (कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, लोहा, तांबा और मैंगनीज) भी ग्रहण करते हैं.
सरसों वर्ग के पौधे अन्य तिलहनी फसलों के विपरीत अधिक मात्रा में सल्फर ग्रहण करते हैं. राई-सरसों की फसल में शुष्क एवं सिंचित दोनों ही अवस्थाओं में खादों एवं उर्वरकों के प्रयोग के अनुकूल परिणाम प्राप्त हुए हैं.
रासायनिक उर्वरकों की मात्रा
राई-सरसों से भरपूर पैदावार लेने के लिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में उपयोग करने से उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना अधिक उपयोगी होगा. राई-सरसों को नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश जैसे प्राथमिक तत्वों के अलावा गंधव तत्व की आवश्यकता अन्य फसलों की तुलना में अधिक होती है. सामान्य सरसों में उर्वरकों का प्रयोग सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन 120 किग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा. तथा पोटाश 60 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है. फास्फोरस का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में अधिक लाभदायक होता है. क्योंकि इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है. यदि सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग न किया जाए तो सल्फर की उपलब्धता करने के लिए 40 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहिए तथा असिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त उर्वरकों की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग की जाए. यदि डी.ए.पी. का प्रयोग किया जाता है तो इसके साथ बुआई के समय 200 किग्रा. जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिए लाभदायक होता है तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 60 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए. सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय कूड़ों में बीज से 2-3 सेमी. नीचे नाई या चोगों से दिया जाए. नाइट्रोजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई (बुवाई के 25-30 दिन बाद) के बाद टाप ड्रेसिंग द्वारा दी जाए.
सरसों में तेल की मात्रा बढ़ाने गंधक की भूमिका ?
गंधक का प्रयोग सरसों का दाना चमकदार, मोटा एवं इसमें तेल की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है. फसल में सल्फर की मात्रा की पूर्ति के लिए, आप किसान बेंटोनाइट सल्फर या सल्फर का इस्तेमाल कर सकते हैं. गंधक बीजों में तेल की मात्रा बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिये सरसों सहित सभी तिलहनी फसलों में इसका उपयोग आवश्यक है. यदि भूमि में गंधक की मात्रा कम है तो आप इसे उर्वरक के रूप में दे. यदि फास्फोरस की आपूर्ति सुपर फास्फेट द्वारा कर रहे हैं तो आप 12 प्रतिशत गंधक इससे प्राप्त कर लेंगे. नत्रजन के लिए अमोनियम सल्फेट का उपयोग करने पर 24 प्रतिशत गंधक भी मिल जाता है जो पानी में अति घुलनशील रहता है. गंधक, गंधक युक्त अमीनो अम्ल के निर्माण का अनिवार्य तत्व है. बायोटिन व थायमिन में जो पौधों की वृद्धि को नियंत्रित करते हैं, गंधक तत्व पाया जाता है. अधिकतर तेलों के अन्दर भी गंधक का अंश होता है. पौधों में सुगंध तेल बनाने के लिये भी गंधक का होना आवश्यक है, तिलहन फसलों में तेल की 4-9% मात्रा बढ़ाता है. पौधों में अमीनो एसिड प्रोटीन बनाने के लिये भी आवश्यक है. साथ में पौधों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल के निर्माण के लिये भी यह आवश्यक तत्व है. यदि आपके खेत में गंधक की कमी है तो पौधा नत्रजन का अवशोषण भी नहीं कर पाता है.
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केंचुआ, गोबर एवं कम्पोस्ट खाद का उपयोग जरूरी है
भरपूर उत्पादन प्राप्त करने हेतु रासायनिक उर्वरकों के साथ केंचुए की खाद, गोबर या कम्पोस्ट खाद का भी उपयोग करना चाहिए. सिंचित क्षेत्रों के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अथवा केंचुआ की खाद 25 क्विंटल/प्रति हेक्टेयर बुवाई के पूर्व खेत में डालकर जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला दें. बारानी क्षेत्रों में देसी खाद (गोबर या कम्पोस्ट) 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से वर्षा के पूर्व खेत में डालें और वर्षा के मौसम मे खेत की तैयारी के समय खेत में मिला दें.
डॉ शिशुपाल सिंह, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विभाग, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
राजेश कुमार, मेजर एसडी सिंह विश्वविद्यालय, फर्रुखाबाद
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