कम्पोस्ट को ‘कूड़ा खाद’ कहते हैं. पौधों के अवशेष पदार्थ, घर का कूड़ा कचरा, मनुष्य का मल, पशुओं का गोबर आदि का जीवाणु द्वारा विशेष परिस्थिति में विच्छेदन होने से यह खाद बनती है. अच्छा कम्पोस्ट खाद गन्द रहित भूरे या भूरे काले रंग का भुरभुरा पदार्थ होता है. इसके 0.5 से 1.0 प्रतिशत पोटाश एवं अन्य गौण पोषक तत्व होते हैं.
कम्पोस्ट खाद बनाने की विधियाँ :-
पिछले अध्याय में जैविक खादों के लाभ, घटक तथा कुछ जैविक खाद का प्रबन्धन कैसे किया जाएँ, के बारे में बताया गया है. कम्पोस्ट खाद भी जैविक खाद है, अतः कम्पोस्ट खाद बनाने की आसान विधियाँ विकसित हो चुकी हैं वे इस प्रकार हैः-
1. गड्ढा विधि:- ऊँची जगह पर जहाँ पानी स्रोत पास हो गड्ढे का आकार 3 मीटर लम्बा X 2 मीटर चौड़ा X 1 मीटर गहरा रखें. खोदने के बाद गड्ढे को गोबर से लीप दें. इसके बाद पोषक तत्वों को सोखने के लिये 10 से 12 सेमी. की सेन्द्रीय पदार्थों की आधार परत बिछाएँ. इस आधार परत पर 20 सेमी मोटी पहली परत गौशाला की बिछावन डालें, गोबर एवं गोबर से सना हुआ पुआल गन्ने का छिलका, अन्य कचरा तथा पत्तियाँ बिछाएँ. 50 प्रतिशत गोबर एवं गोमूत्र का पानी सोखने की क्षमता का उपयोग हो सके. अब 100 किग्रा. भुरभुरी मिट्टी में 3 किग्रा. अधपका गोबर कम्पोस्ट तथा 250 ग्राम सुपर फॉस्फेट या 3-5 किग्रा राक फॉस्फेट मिलाकर मिश्रण बनाएँ. इस मिश्रण की 2-3 सेमी परत बिछाएँ और पानी से गीला कर दें. इन परतों की पुनरावृत्ति जब तक करते रहें, तब तक गड्ढे की पूरी सामग्री अच्छी तरह हिलाते हुए पलटें.
2. ढेर विधि:- इस विधि में कम्पोस्ट बनाने के लिये जमीन के ऊपर कोठी बनाते हैं. ऊँची व समतल भूमि पर 3 मीटर लम्बी x 2 मीटर चौड़ी x 1 मीटर ऊँची कोठी, अनुपयोगी लकड़ी की पट्टियाँ, चटाइयाँ एवं ईंटों से बनाई जा सकती है. 2 सेमी. ईंटों की तह जमा देने से ढेर लगाने में सुविधा होती है. इस विधि में भी भरने का तरीका गड्ढा विधि जैसे ही है लेकिन इस विधि में गोबर के घोल की अधिक आवश्यकता होती है. ऊपर का हिस्सा ढाल देते हुए भरें तथा मिट्टी, भूसे के मिश्रण के 5 सेमी प्लास्टर कर गोबर से लीप दें. हर 4-6 सप्ताह में खाद को पलटते रहें और नमी बनाए रखने हेतु पानी का छिड़काव करते रहें और पुनः लीप कर बन्द कर दें इस प्रकार 3 माह में कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाता है.
3. इन्दौर विधि :- यह पद्धति सर्वप्रथम 1931 में अलबर्ट हावर्ड और यशवंत बाड ने इन्दौर में विकसित की थी एवं इसी आधार पर इसे इन्दौर विधि/पद्धति नाम से जाना जाता है.
संरचना :- इस पद्धति में कम्पोस्ट खाद बनाने के लिये कम-से-कम 9 फीट लम्बा, 5 फीट चौड़ा एवं 3 फीट गहरा गड्ढा बनाया जाता है, गड्ढे की लम्बाई सुनिधानुसार 21 फीट तक रखी जा सकती है. इस गड्ढे को लम्बवत 3 से 6 समान भागों में बाँट दिया जाता है. प्रत्येक हिस्सा अलग-अलग भरा जाता है एवं अन्तिम हिस्सा खाद पलटने के लिये खाली छोड़ा जाता है. गड्ढों की भराई :- गड्ढों की प्रत्येक भाग में कचरा अलग-अलग परतों में भरा जाये. पहली परत में पशु कोठों से लाया गया फसल अवशेष एवं कचरे की एक समान 3 इंच मोटी परत बिछाई जाती है. इसके पश्चात पशु कोठों से एकत्रित किया हुआ पशु मूत्र मिश्रण (कीचड़) की एक तह उसके ऊपर फैला दी जाती है. दूसरी परत के रूप में 2 इंच गोबर और पशु कोठों की मूत्र मिश्रित मिट्टी की एक समान परत बिछाकर पर्याप्त पानी का छिड़काव करें.
इस प्रकार 8 से 10 परत में गड्ढा जमीन से 1 फीट ऊपर तक भर जाएगा. सबसे ऊपर की परत पशु मूत्र एवं राख मिश्रित पशुकोठों की गीली मिट्टी की होती है. इस प्रकार एक हिस्से को खाद पलटने के लिये छोड़ दें एवं शेष हिस्से को भर दें. गड्ढे भरने का कार्य दो तीन दिन में पूर्ण कर लिया जाता है. सुबह शाम पानी का छिड़काव करते रहें, ताकि नमी बनी रहे.
4. रायपुर विधि :- गाँव में परम्परागत तरीके से जमीन में गड्ढा खोदकर उसमें गोबर व कूड़ा डाला जाता है, जिन्हें डालने का कोई क्रम नहीं होता तथा बेतरकीब विधि से डाला जाता है जिससे उसे सड़ने में अधिक समय लगता है. इन्हें भरते समय पानी छिड़कने का भी ध्यान नहीं दिया जाता है. सूखे के मौसम में जहाँ एक ओर खाद के गड्ढों में पानी बिल्कुल नहीं डाला जाता वहीं दूसरी ओर वर्षा ऋतु में गाँव में गली/सड़क के किनारे बने खाद के गड्ढों में अत्यधिक मात्रा में पानी भरा रहता है, जिससे अच्छी सड़ी हुई उत्तम क्वालिटी की खाद तैयार नहीं होती बल्कि वर्षा ऋतु में गली व सड़क के किनारे जगह-जगह खाद के गड्ढों में गन्दा पानी भरा रहने से गन्दगी का वातावरण निर्मित होता है, जिससे विभिन्न बीमारियों के फैलने की सम्भावना बनी रहती है. किन्तु रायपुर विधि से भू- नाडेप खाद बनाने के तरीके से परम्परागत तरीके के विपरीत बिना गड्ढा खोदे जमीन पर एक निश्चित आकार का 12 फीट लम्बा, 5 फीट चौड़ा अथवा उपलब्ध जगह के अनुसार भी लम्बाई का किन्तु 5 फीट चौड़ा ले-आउट देकर उस पर 6 इंच मोटी 4-5 प्रतिशत गोबर के घोल में डूबा हुआ जीवांश कचरा बिछाएँ. उस पर अच्छी तरह चलना चाहिए ताकि वह अच्छे से दब सके.
प्रत्येक परत पर खेत की बारीक भुरभुरी मिट्टी 50-60 किलो की परत बिछाएँ. जहाँ बायोमास सिर्फ पानी में भिगोकर डाला जाता है, उसके ऊपर पूर्ववत गोबर घोल निर्मित बायोमास की परत बिछाई जाती है. इस तरह लगभग 5 फीट ऊँचाई तक गीले बायोमास की परत भिछाई जाती है. इसके बाद इस आयताकार ढेर को सब तरफ से मिट्टी से लेप कर दिया जाता है. बन्द करने के दूसरे तीसरे दिन जब गीली मिट्टी कुछ सख्त हो जाएँ तब गोलाकार या आयताकार टीन के डिब्बे से ढेर की लम्बाई व चौड़ाई में 9-9 इंच के अन्तर से 7-7 इंच के छेद करें. उक्त छिद्रों से हवा का आवागमन होगा और आवश्यकता पड़ने पर पानी भी डाला जा सकता है. ताकि बायोमास में पर्याप्त नमी रहे और सड़न क्रिया अच्छी तरह से हो सके.
कम्पोस्ट खाद के लाभ :-
1. यह सस्ता है, क्योंकी यह फसल के अवशेषों, गोबर, घास और अन्य घरेलू कचरे से बनती है.
2. पौधे इसके पोषक तत्वों को अधिक दुटने की बजाय सीधे ग्रहण कर लेते है.
3. इससे फसल की पैदावार में तुरंत प्रभाव पड़ता है.
4. मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है जिससे फसल को समर्थन मिलता है और पानी की बचत होती है.
5. भूमि की पोषण शक्ति प्रभावित नही होती है.
प्रभुसिंह1 व शीषपाल चौधरी2
विद्यावाचस्पति शोध छात्र (मृदा विज्ञान विभाग)1
विद्यावाचस्पति शोध छात्र (सस्य विज्ञान विभाग)2
श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर- 303329
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