नारियल का उपयोग भारत के उत्तर से दक्षिण सीमाओं में पूर्णरूप से किया जाता है. धार्मिक कार्यों से लेकर दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों तक, इसके कई तरह के उपयोग हैं. नारियल का पेड़ 80 साल तक फलता-फूलता रहता है, इसलिए इसकी खेती करना काफी फायदेमंद हो सकती है.
नारियल के पौधे को 'कल्पवृक्ष' या 'स्वर्ग का पौधा' भी कहा जाता है, क्योंकि यह 10 मीटर से अधिक लंबा होता है. भारत नारियल उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर आता है. नारियल की खेती में ज्यादा मेहनत नहीं लगती है. नारियल की खेती (coconut cultivation) से आप बहुत कम निवेश में लाखों में कमा सकते हैं. इसका अलावा इसकी खेती में कीटनाशकों और महंगे उर्वरकों की आवश्यकता भी नहीं होती है. हालांकि, सफेद मक्खियां नारियल के पौधों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. इसलिए किसानों को इस संबंध में सावधानी बरतनी चाहिए.
नारियल बोने का समय (Coconut Planting Time)
नारियल के पौधे उगाने का सही समय वर्षा ऋतु के बाद का होता है. नारियल का पेड़ 4 साल में फल देना शुरू कर देता है. जब इसके फल का रंग हरा हो जाता है तो इसे तोड़ लिया जाता है. इसके अलावा फल को पकने में 15 महीने से अधिक का समय लगता है.
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नारियल की खेती के लिए रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है. काली और पथरीली मिट्टी में इसकी खेती नहीं की जा सकती है. इसकी खेती के लिए खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. फलों को पकने के लिए सामान्य तापमान और गर्म मौसम की आवश्यकता होती है. वहीं, इसमें ज्यादा पानी की भी जरूरत नहीं होती है. बारिश के पानी से पानी की आपूर्ति पूरी हो जाती है.
नारियल की खेती में सिंचाई प्रक्रिया (Irrigation Process In Coconut Cultivation)
ड्रिप विधि से नारियल के पौधों की सिंचाई की जाती है, क्योंकि वे पानी के प्रति संवेदनशील होते हैं और अत्यधिक पानी के कारण मर भी सकते हैं. नारियल के पौधों की जड़ों को शुरुआत में हल्की नमी की जरूरत होती है. गर्मी के मौसम में पौधे को तीन दिनों के अंतराल पर पानी देना चाहिए. जबकि सर्दी के मौसम में साप्ताहिक एक सिंचाई पर्याप्त होती है.
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