मिर्च भारत के अनेक राज्यों पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में उगायी जाती है. इसकी खेती मुख्यत: नगदी फसल के रूप में की जाती है. इसमें अनेक औषधीय गुण भी होते हैं इसलिए इसका प्रयोग औषधि के रूप में भी होता है. इसके स्वाद में तीखापन पाया जाता है. इसमें मौजूद कैप्सिसिन नामक एक उड़नशील एल्केलॉइड के कारण होता है. इसका प्रयोग हरी मिर्च की तरह एवं मसाले के रूप में किया जाता है. इसे सब्जियों और चटनियों में डाला जाता है.
मिर्च की खेती से दोगुनी कमाई (Double income from chilli cultivation
अगर किसान जलवायु क्षेत्र के अनुसार मिर्च की उन्नत प्रजातियों का प्रयोग करने के साथ ही फसल सुरक्षा के उचित उपाय करे तो लागत की तुलना में दोगुनी कमाई कर सकते हैं. फैजाबाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से संबद्ध 'कृषि विज्ञान केंद्र' बेलीपार के सब्जी वैज्ञानिक डा.एसपी सिंह के मुताबिक,'मिर्च की 1 एकड़ खेती की लागत औसतन 35-40 हजार रुपये आती है. जिसमें इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल तक हो जाती है. बाजार में यह 20 रुपये प्रति किलो के भाव से भी बिके, तो भी किसान को 35-40 हजार रुपये की लागत में करीब 1 लाख 20 हजार रुपये मिलेंगे. जो की लागत के दोगुना से भी ज्यादा हैं.
मिर्च की खेती के लिए सही जलवायु (Right climate for chilli cultivation)
मिर्च की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में बहुत अच्छी होती है. लेकिन फलों के पकते समय शुष्क मौसम का होना आवश्यक है. गर्म मौसम की फ़सल होने के कारण इसे उस समय तक नहीं उगाया जा सकता, जब तक कि मिट्टी का तापमान बढ़ न गया हो और पाले का प्रकोप टल न गया हो. बीजों का अच्छा अंकुरण 18-30 डिग्री से. ग्रे. तापामन पर होता है. यदि पौधें में फल बनते समय खेत में नमी की कमी हो जाती है, तो फलियाँ और छोटे फल नीचे गिरने लगते हैं. मिर्च के फूल व फल आने के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 25-30 डिग्री से. ग्रे. है. पौधे में मिर्च फूलते समय ओस गिरना या तेज़ वर्षा होना फ़सल के लिए नुकसानदेह होता है. क्योंकि इसके वजह से फल और छोटे फल टूटने लगते हैं.
मिर्च की किस्में (chili varieties)
कल्याणपुर -1 : यह किस्म 215 दिन में तैयार हो जाती है तथा 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है.
सिंदूर : यह किस्म 180 दिन में तैयार होती है तथा इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टर 13.50 क्विंटल है.
आन्ध्र ज्योति : यह किस्म पूरे भारत में उगाई जाती है. इस किस्म का उपज क्षमता प्रति हैक्टेयर 18 क्विंटल है.
पूसा ज्वाला : इसके पौधे छोटे आकार के और पत्तियॉ चौड़ी होती हैं. फल 9-10 सें०मी० लम्बे ,पतले, हल्के हरे रंग के होते हैं जो पकने पर हल्के लाल हो जाते हैं. इसकी औसम उपज 75-80 क्विंटल प्रति हेक्टेअर, हरी मिर्च के लिए तथा 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेअर सूखी मिर्च के लिए होती है.
पूसा सदाबाहर : इस क़िस्म के पौधे सीधे व लम्बे ; 60 – 80 सें०मी० होते हैं. फल 6-8 सें मी. लम्बे, गुच्छों में, 6-14 फल प्रति गुच्छा में आते हैं तथा सीधे ऊपर की ओर लगते हैं पके हुए फल चमकदार लाल रंग ले लेते है. औसत पैदावार 90-100 क्विंटल, हरी मिर्च के लिए तथा 20 क्विंटल प्रति हेक्टेअर, सूखी मिर्च के लिए होती है. यह क़िस्म मरोडिया, लीफ कर्लद्ध और मौजेक रोगों के लिए प्रतिरोधी है.
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इसकी खेती बैंगन और टमाटर की तरह की जाती है. हालांकि इसकी खेती के लिए मिट्टी हल्की, भुरभुरी व पानी को जल्दी सोखने वाली होनी चाहिए. खेत में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों का होना बहुत जरूरी है. इसकी नर्सरी में पर्याप्त मात्रा में धूप का आना भी जरूरी है. इसको पाले से बचाने के लिए, नवंबर-दिसंबर में बुआई के दौरान पानी का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए.
मिर्च की खेती के लिए सिंचाई (For chilli cultivation Irrigation)
पहली सिंचाई पौध प्रतिरोपण के तुरन्त बाद की जाती है. बाद में गर्म मौसम में हर 5-7 दिन तथा सर्दी में 10-12 दिनों के अंतराल पर फ़सल को सींचा जाता है.
मिर्च की खेती के लिए बुआई (For chilli cultivation Sowing)
मैदानी और पहाड़ी, दोनो ही इलाकों में मिर्च बोने के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल-जून तक का होता है. बडे. फलों वाली क़िस्में मैदानी में अगस्त से सितम्बर तक या उससे पूर्व जून-जुलाई में भी बोई जा सकती है. पहाडों में इसे अप्रैल से मई के अंत तक बोया जा सकता है.
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