भारतीय मसालों की तो दुनियाभर में तारीफ की जाती है. विदेशों में भी भारतीय मसालों से व्यंजनों को बहुत ही चाव के साथ खाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मसालों की रानी किसे कहा जाता है. अगर नहीं तो बता दें कि मसालों की रानी इलायची को कहा जाता है. इसके बहुत सारे औषधीय गुण होते हैं, जिसके चलते इसे कई तरह की चीजों में इस्तेमाल किया जाता है.
बाजार में भी इलायची की मांग साल भर बनी रहती है. ऐसे में किसान भाई इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं. लेकिन इसकी खेती के लिए फसल में लगने वाले रोग और प्रबंधन के बारे में जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है.
इलायची की फसल में लगने वाले रोग और प्रबंधन
इलायची की फसल (Cardamom Crop) में कई तरह के रोग लगते हैं, लेकिन तीन रोग सबसे अधिक देखने को मिलते हैं, जिनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं. कट्टे रोग, कैप्सूल सड़ांध, भीगना या प्रकंद सड़ांध रोग आदि. आइए इन रोगों के बारे में विस्तार से जानते हैं...
कट्टे रोग: यह रोग फसल की नई पत्तियों पर दिखाई देता है. यह आकार में स्पिंडल और पतला क्लोरोटिक फ्लीक्स होता है. कुछ दिनों के बाद यह पीली हरी असंतुलित धारियों में बदल जाता है, जिससे पत्तियां नष्ट होने लगती हैं.
कट्टे रोग से बचाव: इस रोग से बचने के लिए खेत में हमेशा स्वस्थ पौध का ही इस्तेमाल करें.
कैप्सूल सड़ांध (Capsule Rot): यह रोग भूरे-काले रंग का होता है. इसके प्रभाव में फसल आने से उन्हें बहुत ही ज्यादा हानि पहुंचती है.
कैप्सूल सड़ांध रोग से बचाव: जितना हो सके मानसून के दौरान फसल की देखरेख करें. किसी भी तरह के वायरस या फिर कीड़ों को देखते हैं, तो उसे तुरंत बाहर निकाल दें. कैप्सूल सड़ांध के बचाव के लिए 1% बोर्डो मिश्रण का सही तरीके से छिड़काव करें.
प्रकंद सड़ांध (Rhizome Rot): यह रोग पत्तियों के ऊपरी सिरे से शुरू होकर नीचे तक फैल जाता है. कुछ दिनों के बाद इसके परिणाम यह होते हैं कि पत्तियों सहित पूरा पौधा खराब होने लगता है. इस दौरान आप पत्तियों को हाथ लगायेंगे तो आपको पिलपिला पन महसूस होगा.
प्रकंद सड़ांध रोग से बचाव : इलायची फसल की नर्सरी के दौरान 1:50 फॉर्मेल्डिहाइड डालें. इसके बाद मिट्टी में 0.2% कॉपर ऑक्सीक्लोराइड डालें. ताकि इससे मिट्टी में मौजूद रोग नष्ट हो जाएं और फसल की पैदावार अच्छी हो सके.
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