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Bottle Gourd Diseases: लौकी में लगने वाले इन रोगों के कारण होता है नुकसान, जानें इसके प्रबंधन के तरीके

लौकी में होने वाले प्रमुख रोगों में डाउनी मिल्ड्यू, पाउडरी मिल्ड्यू या चिट्टा रोग, एन्थ्रक्नोज व स्कैब और मोजेक रोग प्रमुख होते हैं. आज हम आपको इन रोगों के बारे में और इसके प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे. तो चलिए पढ़ते हैं यह लेख.

प्रबोध अवस्थी
These diseases of bottle gourd cause loss
These diseases of bottle gourd cause loss

भारत में सब्जियों की उत्पादकता मौसम आधारित्त होती है. मौसम के अनुसार ही किसान सब्जियों की पैदावार को आगे बढ़ाते हैं. आज हहम आपको लौकी के में होने वाले प्रमुख रोगों के बारे में जानकारी देंगे. लौकी में कई तरह के रोग होते हैं जिनके चलते किसानों को कई बार बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है.

लौकी में होने वाले प्रमुख रोगों में डाउनी मिल्ड्यू, पाउडरी मिल्ड्यू या चिट्टा रोग, एन्थ्रक्नोज व स्कैब और मोजेक रोग प्रमुख होते हैं. आज हम आपको इन रोगों के बारे में और इसके प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे.

प्रमुख रोग एवं उनके लक्षण

डाउनी मिल्ड्यू: स्यूडोपेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस कवक जनित डाउनी फफूंदी रोग लौकी के सबसे विनाशकारी रोगों में से एक है, जिससे दुनिया भर में खेतों और ग्रीनहाउस में लौकी की पैदावार में काफी नुकसान होता है. पत्तों की ऊपरी सतह पर हरा क्षेत्र पहले पीला दिखाई देना शुरू होता है, जो पीले कोणीय या आयताकार धब्बों में बदल जाता है. पत्ता पर बनने वाले धब्बे दिखने में अनियमित या अवरुद्ध होते हैं और पत्तों की शिराओं द्वारा सीमांकित होते हैं. मौसम में ज्यादा नमी के कारण कई बार पत्तों की निचली सतह पर थोड़ी बैंगनी कॉटनी परत भी देखी जा सकती है. रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्ते सूख जाते हैं.

पाउडरी मिल्ड्यू या चिट्टा रोग: पाउडरी फफूंदी (पॉडोसफैरा फ्यूलीजीने) के लक्षण आमतौर पर पत्तियों की सतहों और पेटीओल्स दोनों पर गोलाकार सफेद कवक के रूप में विकसित होते हैं. सबसे पुरानी पत्तियों पर, कवक पाउडर की तरह जम जाती हैं जो अक्सर पत्तियों की पूरी सतह को ढक लेती है. इससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है जिससे पौधों में पीलापन आ जाता है और अंततः मृत्यु हो जाती है.

एन्थ्रक्नोज व स्कैब: एन्थ्रक्नोज रोग लौकी के प्रमुख रोगों में से एक है जो कोलेटोट्राइकम लैजिनेरियम कवक द्वारा होता है. पहले चरण में पत्तों पर छोटे गोलाकार धँसे हुए पीले से भूरे रंग के धब्बे विकसित होते हैं, जो बाद में बड़े भूरे से काले रंग के धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं. रोग के उच्च चरण में ज्यादा नमी के कारण धब्बों के केंद्र गुलाबी बीजाणुओं से ढके हुए होते हैं जो चिपचिपे गोंद जैसे दिखाई देते हैं.

मोजेक रोग: मोजेक रोग कुकुम्बर मोजेक विषाणु द्वारा जनित है. इस रोग में प्रभावित लौकी के पौधों की पत्तियों पर हरे व् पीले रंग की पच्चीकारी, शिरा-बंधन, फफोले, पीलेपन और पत्ती विकृति के लक्षण प्रदर्शित होते हैं. पौधों की ऊंचाई कम हो जाती है और प्रभावित पौधे अक्सर विकृत फल देते हैं.

रोकथाम

  • स्वस्थ बीज का उपयोग करें व खेत की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें.
  • मंजरियों के रुग्ण भागों को उखाड़ कर नष्ट कर दें.
  • लौकी प्रजाति के सभी खरपतवारों को नष्ट कर दें, ताकि फसल की अनुपस्थिति में रोगजनकों को पनपने का मौका न मिले.
  • चिट्टा रोग ग्रसित लौकी के सभी भागों पर गंधक का धूड़ा (10 किलोग्राम प्रति एकड़) या घुलनशील गंधक (सलफेक्स) (500 ग्राम प्रति एकड़) का छिड़काव करें.
  • डाउनी मिल्ड्यू व एन्थ्रक्नोज के प्रबंधन के लिए इंडोफिल एम 45 फफूंदीनाशक का 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव कर सकते हैं.
  • डाउनी मिल्ड्यू रोग को नियंत्रित करने के लिए ब्लाइटोक्स 50 (2 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करना भी कारगर है.
  • मोजेक के संक्रमण से निजात पाने के लिए इसके वाहक ‘अल‘ को रोकना जरूरी है.
  • जिसके लिए नियमित रूप से कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है.
English Summary: Bottle gourd diseases and their management vegetable insects insecticides Published on: 15 October 2023, 02:41 PM IST

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