Fall Armyworm: भारत में बड़े पैमाने पर केले की खेती होती है. यह एक ऐसा फल है जो कई चीजों में इस्तेमाल किया जाता है. पकने से पहले इसका इस्तेमाल चिप्स और सब्जी बनाने में किया जाता है, जबकि पके हुए केले को साबुत ही खाया जाता है. केला कैल्शियम, फास्फोरस और कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा सोर्स है.
इतना ही नहीं भारत में केले के पत्ते का भी भरपूर उपयोग किया जाता है, जिसे पूजा और भोजन परोसने के लिए इस्तेमाल में लिया जाता है. लेकिन, केले की खेती करना इतना भी आसान नहीं है. अगर केल की फसल में कोई बीमारी लग जाए या कीट हमला कर दे तो पूरी फसल बर्बाद हो जाती है. ऐसे में किसानों को समय रहते इसकी रोकथाम के लिए उपाय कर लेने चाहिए ताकि उन्हें नुकसान न उठाना पड़े.
केले की फसल में नए नाशीकीट की पहचान
हाल ही समय में वैज्ञानिकों ने केले की फसल में एक नए नाशीकीट की पहचान की है. जिसे फॉल आर्मीवर्म (स्पोडोप्टेरा फुजीपर्डा) कहा जाता है. यह एक आक्रामक कीट है, जो मुख्य तौर पर मक्के की फसल में पाए जाते हैं. लेकिन, वैज्ञानिकों ने इसे केले के पत्तों को खाता हुआ पाया है. इस कीट को आक्रामक इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये टिड्डियों की तरह झुंड बनाकर फसल को सफा चट कर देते हैं.
केले की इस किस्म पर मिला कीट
वैज्ञानिकों ने इसे केले पर अपना जीवनचक्र पूरा करते हुए पाया है. इसे तमिलनाडु के त्रिची जिले में मक्का के खेतों के आसपास केले के पौधों पर पाया गया है. यह संभावित है कि यह मक्का से केले में आया हो. तमिलनाडु के करूर और तिरुचिरापल्ली जिलों में केले के पौधों पर बोंडार नेस्टिंग व्हाइटफ्लाई नामक एक विदेशी आक्रामक कीट का संक्रमण हाल ही में भारत में अधिसूचित किया गया है. इसी प्रकार बैगवर्म का गंभीर संक्रमण केले की कर्पूवल्ली किस्म पर देखा गया और इस प्रजाति से कुल मिलाकर 108 जननद्रव्यों की प्राप्तियों को इससे प्रभावित पाया गया है.
रोकथाम के लिए शोध में जुटे वैज्ञानिक
केले पर इस कीट के प्रकोप की यह पहली रिपोर्ट है. इसे सुपारी, नारियल और तेल-ताड़ सहित विभिन्न प्रकार के ताड़ वृक्षों के एक गंभीर कीट के रूप में जाना जाता है. वैज्ञानिकों द्वारा इसकी रोकथाम के लिए शोध आधारित प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि केले की फसल को इसके प्रकोप से समय रहते बचाया जा सके.
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