भारत एक खेती किसानी करने वाला देश है यहाँ के किसानों के द्वारा गेहूं से लेकर गन्ना तक और धान से लेकर ज्वार तक सब कुछ उगाया जाता है और साथ ही दुनिया के तमाम देशों को निर्यात कर वहां के लोगों का पेट भरने का काम करता है. भारत में अगर सिर्फ धान की बात की जाये तो इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है और यहाँ की 15 चावल की किस्मों को तो जीआई टैग भी मिल चुका है.
जिसके चलते भारत में पैदा होने वाले धान की मांग पूरे विश्व में हमेशा बनी रहती है. इन्हीं पॉपुलर किस्मों में से एक है आसाम का लाल चावल. यह ब्रह्मपुत्र वैली में उगाया जाता है और इसकी खास बात ये है कि पूरी तरीके से केमिकल मुक्त है. आज के इस लेख में बात करेंगे लाल चावाल और उसकी विशेषताओं के बारे में.
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लाल चावल की क्या है ख़ासियत
असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में उगाए जाने वाले इस चावल को 'बाओ-धान' कहा जाता है. यह पूरी तरीके से बिना केमिकल फ़र्टिलाइज़र के उगाया जाता है और असम के फूड कल्चर में अनिवार्य रूप से इसका इस्तेमाल किया जाता है. इसकी ख़ासियत की अगर बात करें तो इसमें आयरन की मात्र भरपूर होती है. जोकि हमारे सेहत के लिए जरुरी है.
अमेरिका में भी है इसकी मांग
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के द्वारा दी गयी एक जानकारी के अनुसार मार्च, 2021 में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में पैदा होने वाले रेड राइस को अमेरिका एक्सपोर्ट किया गया था. जिसे हरियाणा में उगाया गया था. अमेरिका में इस चावल का उपयोग करने के बाद वहां की सरकार द्वारा काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी गयी.
किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित होगा
रेड राइस एक्सपोर्ट पर एपीडा (APEDA) अध्यक्ष डॉ एम अंगमुथु ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 'लाल चावल' का निर्यात बढ़ने पर किसानों की आय बढ़ेगी. क्योंकि रेड राइस की मार्केट में डिमांड बहुत अच्छी है. और साथ ही अंगमुथु ने उम्मीद जताते हुए यह भी कहा कि रेड राइस की बिक्री बढ़ने से ब्रह्मपुत्र के बाढ़ वाले मैदानी इलाकों के किसान परिवारों की आय में बढ़ोत्तरी होगी.
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