किसानों ने जायद सीजन में होने वाली उर्द की खेती की शुरुआत कर दी है. वैसे उर्द की बुवाई जायद और खरीफ, दोनों मौसम में की जाती है. किसान इसकी बुवाई अगस्त तक कर सकते हैं. भारत में उर्द को एक प्रमुख दलहनी फसल माना जाता है. इसकी खेती जलवायु, मिट्टी, खेत की तैयारी समेत कई प्रबंध पर निर्भर होती है. इनमें उर्द की उन्नत किस्में भी शामिल हैं. अगर उर्द की उचित किस्मों का चयन न किया जाए, तो इसका असर फसल की पैदावार पर पड़ता है. ऐसे में उर्द की उन्नत किस्मों का चयन करना जरूरी है, तो आइए आपको उर्द की कुछ उन्नत किस्मों और उनकी विशेषताओं के बारे में बताते हैं.
पंत यू 19
यह खरीफ और जायद, दोनों मौसम के लिए उपयुक्त मानी जाती है. यह एक मध्यम कद की किस्म है, जिसका दाना छोटा और काला होता है. उर्द की यह किस्म करीब 70-75 दिन में पक जाती है, जिससे करीब 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टर तक पैदावार प्राप्त हो सकती है.
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ये किस्में भी खरीफ और जायद, दोनों मौसम के लिए उपयुक्त हैं. ये करीब 75-80 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं, जो करीब 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार देती हैं.
कृष्णा
उर्द की इस किस्म को मध्यम कद के पौधों में शामिल किया गया है. यह 90-110 दिन में पक जाती है. इसका दाना बड़ा और भूरे रंग का दिखाई देता है. यह 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टर तक पैदावार देती है. इसको भारी मिट्टी के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है.
खारगोन 3
इस किस्म को करीब 80 दिन में पक जाती है. इसके दाने काले रंग होते हैं. यह करीब 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार देती है.
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उर्द की यह किस्म मध्यम कद के पौधों की होती है, जिसका दाना मोटा और काला होता है. यह किस्म 75-80 दिन में पकजाती है. इससे 9-13 क्विंटल प्रति हेक्टर तक पैदावार मिल जाती है. इसको दोमट मिट्टी के लिए उपयुक्त माना जाता है, साथ ही यह जायद सीजन के लिए सबसे अच्छी किस्म है.
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इस किस्म के दाने छोटे और काले होते हैं, जो करीब 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इससे 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टर की पैदावार मिल जाती है.
जवाहर उड़द 2
उर्द की यह उन्नत किस्म 60-70 दिन में पकती है. इसकी औसत पैदावार 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसका दाना बड़ा और काला होता है.
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यह किस्म 7-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है, 70-75 दिन में पकती है.
शेखर 2
यह उर्द की काफी उन्नत किस्म मानी जाती है. इसकी औसत पैदावार 10-14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसको प्रमुख रूप से महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब में सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है.
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