केंद्र सरकार ने इस वर्ष के मध्य में किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत दिलाने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए प्राइस डेफिशियेंसी पेमेंट सिस्टम( पीडीपीएस) योजना शुरू की थी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और बाजार की कीमतों के बीच के अंतर की पूर्ति करना इस योजना का मकसद है. गेहूँ तथा चावल जैसी मुख्य फसलों को इसके दायरे में रखा गया है. हालाँकि इसमें बाकी फसलों को भी शामिल किया गया है. इसके अंतर्गत एमएसपी तथा बाजार कीमतों के बीच के दस फीसदी तक अंतर का सरकार भुगतान करेगी. इसका लाभ उठाने के लिए किसानों को अपने नजदीकी एपीएमसी मंडी में संपर्क करना होगा। यहाँ रजिस्टर करने वाले किसानों को सब्सिडी डीबीटी के माध्यम से सीधे उनके बैंक खाते में जाएगी.
इस योजना से सरकार को अनाज भण्डारण, रखरखाव, ढुलाई तथा पीडीएस में उसके जमा करने जैसी कवायदों से निजात मिलेगी. साथ ही एमएसपी और बाजार भाव के बीच के अंतर मूल्य का किसानों को नकद भुगतान भी किया जा सकता है. इस योजना से देश की खाद्यान पर दी जाने वाली सब्सिडी को कम करने में मदद मिलेगी. सनद रहे कि राशन वितरण में अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी देकर सरकार हर साल भारी भरकम रकम खर्च करती है. विश्व व्यापार संगठन(डब्लूटीओ) ने भारत की इस नीति को उसके चार्टर के खिलाफ बताया है. चूँकि, भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है इसलिए उसके नियमों और निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है. इस साल मार्च में डब्लूटीओ की सालाना बैठक में भी यूरोपीय संघ, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे मुल्कों ने भारत के न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित व्यवस्था पर सवाल उठाये थे.
इन देशों के मुताबिक भारत की यह व्यवस्था व्यापार नियमों का उल्लंघन करती है. पिछले कुछ सालों से सरकार गोदामों में बफर स्टॉक की जरुरत से भी अधिक खाद्यान्न जमा कर रही है. इसके भण्डारण और रखरखाव के खर्च को जोड़कर कुल सब्सिडी खर्च बढ़ जाता है.
ऐसे में यह योजना एमएसपी आधारित व्यवस्था से ज्यादा प्रभावी हो सकती है. साथ ही इस योजना से, अधिक किसानों को कीमतों में लाभ मिल सकता है. मौजूदा एमएसपी व्यवस्था में कई खामियां हैं मसलन इसकी भौगोलिक तथा फसल, दोनों ही मामलों में एक निश्चित सीमा है. फिर भी हर सीजन से पहले बीस से अधिक फसलों के एमएसपी में वृद्धि की घोषणा कर दी जाती है. जबकि यह महज़ चावल और गेंहूं जैसी प्रमुख फसलों तक ही सीमित कर दी जाती है ऐसे में बाकी फसलों का सही दाम किसान को नहीं मिल पाता है. लिहाजा किसान इन्हीं चुनिंदा फसलों को ज्यादा तवज्जो देते हैं क्योंकि इनसे उचित कीमतें मिलना सुनिश्चित होता है. नतीजतन, पिछले करीब तीन दशकों से भारत में गेहूं और चावल का उत्पादन जरुरत से कहीं ज्यादा पहुँच गया है.
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इन फसलों से ज्यादा उत्पादन की चाह में किसान गैरजरूरी मात्रा में उर्वरक, रसायनों और पेस्टीसाइडस का इस्तेमाल करते हैं. जो जमीन की उर्वरता को तो नुकसान पहुंचा ही रहा है साथ ही पर्यावरण की बिगड़ती हालत में भी उत्तरदायी होता है. गेहूं, चावल और गन्ना की फसल की सिँचाई के लिए अधिक मात्रा में पानी की जरुरत होती है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि जमीन में पानी की उपलब्धता लगातार कम हो रही है.
एमएसपी व्यवस्था ना तो किसान हित में सार्थक साबित हुई और ना ही कंज्यूमर के लिहाज से. ऐसे में जाहिर तौर पर सरकार की यह नई 'पीडीपीएस योजना' किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी ही साथ ही सरकार को सालाना सब्सिडी के बेहिसाब खर्च से बचने में भी मददगार हो सकती है.
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